अब तो यह साबित हो गया कि गाँधी जी के प्रति संघ परिवार और मोदी सरकार का प्रेम एक ‘मजबूरी’ का नाम है। लेकिन विनायक सावरकर के प्रति श्रद्धा ‘सहज और स्वाभाविक’ है। पिछले दिनों गाँधी का जाप संघ परिवार की तरफ़ से काफ़ी ज़ोर-ज़ोर से किया गया। दो अक्टूबर को सरकारी स्तर पर उनके जन्म दिन की 150वीं वर्षगाँठ मनायी गयी। प्रधानमंत्री मोदी ने गाँधी की भूरि-भूरि प्रशंसा की। मोदी ने ‘न्यूयॉर्क टाइम्स’ के अपने कॉलम में गाँधी को एक ऐसे महापुरुष के रूप में पेश किया जिसने दुनिया के तमाम बड़े राजनेताओं को प्रेरित किया। उन्होंने यह भी लिखा था कि गाँधी की नज़र में भारतीय राष्ट्रवाद भेदभाव नहीं करता। अब सवाल यह उठता है कि आख़िर बीजेपी क्यों ऐसे शख़्स को ‘भारत रत्न’ देने की बात अपने संकल्प पत्र में करती है जो हिंदू मुसलमान के बीच भेदभाव की विचारधारा के जनक हैं। उनका राष्ट्रवाद गाँधी के राष्ट्रवाद से बिल्कुल अलग है। वह सबको साथ लेकर चलने की बात नहीं करते। हक़ीक़त यह है कि सावरकर और गाँधी एक साथ नहीं चल सकते। भारत देश में एक ही विचारधारा चलेगी या तो गाँधी की या फिर सावरकर की।

28 मई, 1883 को महाराष्ट्र के भागपुर में जन्म लेने वाले विनायक दामोदर सावरकर बीजेपी के केंद्र की सत्ता में आने के बाद से लगातार चर्चा के केंद्र में हैं। संघ से जुड़े लोग उन्हें भारत रत्न देने की पैरवी भी कर रहे हैं। सवाल है, उन्होंने ऐसे क्या किया था कि उन्हें देश का सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार से नवाज़ा जाए?
पत्रकारिता में एक लंबी पारी और राजनीति में 20-20 खेलने के बाद आशुतोष पिछले दिनों पत्रकारिता में लौट आए हैं। समाचार पत्रों में लिखी उनकी टिप्पणियाँ 'मुखौटे का राजधर्म' नामक संग्रह से प्रकाशित हो चुका है। उनकी अन्य प्रकाशित पुस्तकों में अन्ना आंदोलन पर भी लिखी एक किताब भी है।