न कोई ओपिनियन पोल, न कोई एग्ज़िट पोल, न कोई ज्योतिषीय गणना, न कोई सर्वे। बिना इन सबके भी मैं आज यह भविष्यवाणी करता हूँ कि 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को बिहार से उतनी सीटें नहीं मिलेंगी जितनी 2014 में मिली थीं। और मेरी इस भविष्यवाणी को कोई नहीं झुठला सकता। पूछिए क्यों?
अपने से आधी साइज़ वाले के नख़रे क्यों सह रहे हैं अमित शाह?
- चुनाव 2019
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- 24 Dec, 2018
बिना ओपिनियन-एग्ज़िट पोल या ज्योतिषीय गणना के मैं यह भविष्यवाणी करता हूँ कि 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को बिहार से उतनी सीटें नहीं मिलेंगी जितनी 2014 में मिली थीं। पूछिए क्यों?

इसलिए कि एनडीए का बिहार में लोकसभा के लिए सीटों का तालमेल हो गया। कुल 40 सीटें हैं और दोनों बड़े दल 17-17 सीटों पर उम्मीदवार उतारेंगे और रामविलास पासवान की पार्टी को 6 सीटें मिलेंगी। पहले बीजेपी, जनता दल (युनाइटेड) और लोक जनशक्ति पार्टी में 18:17:5 के हिसाब से सीटों का विभाजन हुआ था लेकिन पासवान और नीतीश दोनों ख़ुश नहीं थे। पासवान इसलिए कि उनके हिसाब से उन्हें 6 सीटें मिलनी चाहिए थी और नीतीश कुमार इसलिए कि इस बँटवारे से जेडीयू बीजेपी से एक सीट ही सही, नीचे रह जाता। संशोधित बँटवारे से पासवान भी ख़ुश और नीतीश भी। और बीजेपी? बीजेपी पर तो केवल तरस खाया जा सकता है। एक पार्टी जिसे पिछले लोकसभा चुनाव में क़रीब 30% वोट मिले थे और जो 22 सीटें जीत कर राज्य में सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरी थी, वह आज इतनी मजबूर है कि 40 में से केवल 17 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारेगी। मतलब यह कि यदि वह अपने हिस्से की सारी सीटें जीत जाए तब भी उसके सांसदों की संख्या पहले से 5 कम ही होगी।
चुनावी राजनीति का छोटा-मोटा जानकार भी समझ पा रहा होगा कि ये दोनों नेता, ख़ास कर नीतीश कुमार बीजेपी के साथ ज़्यादती कर रहे हैं क्योंकि यदि जनसमर्थन की बात की जाए तो आज की तारीख़ में बीजेपी राज्य की सबसे ताक़तवर पार्टी है। और यह कोई हवा-हवाई बात नहीं है। - यदि हम पिछले दो चुनावों - 2014 का लोकसभा और 2015 का विधानसभा चुनाव - का हिसाब देखें तो यह स्पष्ट हो जाएगा कि किस पार्टी को कितना जनसमर्थन हासिल हुआ था। 2014 का चुनाव इस लिहाज़ से बेहतर है कि उसमें बीजेपी और जेडी (यू) दोनों अलग-अलग लड़े थे और उन दोनों की ताक़त पहचानने का वह सबसे अच्छा ज़रिया है।