साल 1990 के बिहार विधानसभा चुनाव में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) –लिबरेशन (या स्थानीय लोगों के लिए माले) विनोद मिश्रा की सदारत में पहली बार अपने टू-लाइन सिद्धांत के तहत सशस्त्र संघर्ष-जनित भूमिगत स्थिति से बाहर निकल कर चुनावी राजनीति में पूरी तरह आ रहा था। माले ने पहली बार इंडियन पीपुल्स फ्रंट (आईपीएफ़) के बैनर तले 7 सीटें जीती थीं। अगले चुनाव में यानी सन 1995 में इस धुर वामपंथी संगठन में जोश था।