'सर्वविद्या की राजधानी' कहलाने वाली बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी (बीएचयू) के संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय में असिस्टेंट प्रोफ़ेसर पद पर हुई फ़िरोज़ ख़ान की नियुक्ति अब राष्ट्रव्यापी बहस का मुद्दा है। बीएचयू के छात्रों का एक समूह इसके विरोध में धरना दे रहा है जबकि प्रशासन इस नियुक्ति को पूरी तरह नियमसम्मत बता रहा है।
बीएचयू: फ़िरोज़ का विरोध संस्कृत नहीं, ‘वर्ण-व्यवस्था’ बचाने के लिए!
- विचार
- |
- |
- 23 Nov, 2019

बनारस सनातन धर्म में उदारता और कट्टरता का अखाड़ा हमेशा से ही रहा है। बीएचयू में फ़िरोज़ ख़ान को संस्कृत का असिस्टेंट प्रोफ़ेसर चुने जाने का विरोध हो रहा है। यहाँ पता चला कि धरने पर जो पोस्टर लगे हैं उनमें वर्णाश्रम धर्म को बचाने की बात लिखी गई है। यानी आंदोलनकारी छात्र संस्कृत नहीं ‘वर्ण-व्यवस्था’ को बचाने के लिए उतरे हैं। वे शिक्षक के लिए जिस योग्यता की माँग कर रहे हैं उसका सीधा अर्थ 'ब्राह्मण' है।
ज़ाहिर है, विरोध करने वाले छात्रों की जमकर लानत-मलामत हो रही है। सोशल मीडिया पर ‘सद्भाव के सिपाही’ भाषा और धर्म के अलग-अलग होने के उदाहरणों के तीर छोड़ रहे हैं। रसखान, रहीम से लेकर दारा शिकोह तक के हवाले दिए जा रहे हैं। वहीं दूसरी तरफ़ इसे हिंदू धर्म के साथ खिलावड़ क़रार देने वालों की कमी नहीं है जो सवाल उठा रहे हैं कि एक मुसलिम कर्मकांड कैसे पढ़ाएगा? क्या किसी हिंदू से इसलाम की शिक्षा लेने के लिए मुसलिम तैयार होंगे? बेवजह इस बहस में घसीट लिए गए मुसलमान भी कह रहे हैं कि छात्रों की आपत्ति सही है। यहाँ तक कि अलीगढ़ मुसलिम यूनिवर्सिटी के संस्कृत विभाग के अध्यक्ष प्रो. मुहम्मद शरीफ़ भी मानते हैं कि फ़िरोज़ ख़ान की नियुक्ति में थोड़ी ‘चूक’ तो हुई है।