इंसान को तमाम तरह की सुख-सुविधाओं के साजो-सामान देने वाले सतर्कताविहीन या ग़ैर-ज़िम्मेदाराना विकास कितना मारक हो सकता है, इसकी जो मिसाल भोपाल में साढ़े तीन दशक पहले देखने को मिली थी, उसे वहाँ अभी अलग-अलग स्तर पर अलग-अलग रूपों में देखा जा सकता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब भी मध्य प्रदेश के दौरे पर होते हैं तो वह अपने भाषण में कांग्रेस को निशाने पर लेते हुए भोपाल गैस कांड का ज़िक्र करना नहीं भूलते हैं। मोदी अपने भाषण में उस भयावह गैस कांड के लिए ज़िम्मेदार अमेरिकी बहुराष्ट्रीय कंपनी यूनियन कार्बाइड के तत्कालीन अध्यक्ष वॉरेन एंडरसन के भारत से भाग निकलने के लिए कांग्रेस को दोषी ठहराते हैं। लेकिन उस गैस त्रासदी के बाद जो त्रासदी वहाँ आज तक जारी है, उसका ज़िक्र वह कभी नहीं करते।

भोपाल में साढ़े तीन दशक पहले जो गैस त्रासदी हुई थी उसकी जितनी लापरवाही उस समय रही, उसके बाद भी उतनी ही जारी रही। कौन हैं इसके लिए ज़िम्मेदार?
आज से ठीक 35 वर्ष पहले दो और तीन दिसंबर 1984 की दरम्यानी रात को यूनियन कार्बाइड के कारखाने से निकली ज़हरीली गैस (मिक यानी मिथाइल आइसो साइनाइट) ने अपने-अपने घरों में सोए हज़ारों लोगों को एक झटके में हमेशा-हमेशा के लिए सुला दिया था। जिन लोगों को मौत अपने आगोश में नहीं समेट पाई थी वे उस ज़हरीली गैस के असर से मर-मर कर ज़िंदा रहने को मजबूर हो गए थे। ऐसे लोगों में कई लोग तो उचित इलाज के अभाव में मर गए और और जो किसी तरह ज़िंदा बच गए उन्हें तमाम संघर्षों के बावजूद न तो आज तक उचित मुआवजा मिल पाया और न ही उस त्रासदी के बाद पैदा हुए ख़तरों से पार पाने के उपाय किए जा सके हैं।