विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के भोजन-सुरक्षा विशेषज्ञ पीटर एंवारेक ने कहा है कि मांसाहार से कोरोना के फैलने का ख़तरा ज़रूर है लेकिन हम लोगों को यह कैसे कहें कि आप मांस, मछली, अंडे मत खाइए? चीन के वुहान शहर में कोरोना विषाणु को फैलाने में इन मांसाहारी वस्तुओं की भूमिका पर सभी इशारा कर रहे हैं लेकिन दुनिया के करोड़ों लोगों का खाना और रोज़गार मांसाहार के दम पर ही चल रहा है।
कोरोना फैलने का ख़तरा है तो मांसाहार से क्यों न बचें?
- विचार
- |
- |
- 11 May, 2020

शाकाहार मनुष्य का स्वाभाविक भोजन है, यह उसके दाँत और आँत से पता चलता है। दुनिया के किसी भी धर्मशास्त्र- वेद, जिंदावस्ता, त्रिपिटक, बाइबिल, कुरान, गुरु ग्रंथ साहब आदि में कहीं भी नहीं लिखा है कि मांस खाए बिना मुक्ति नहीं मिलेगी और मांसाहार यदि हमें कोरोना के कराल गाल में ठूँसता है तो हम इससे क्यों न बचें?
एंवारेक का यह तर्क दक्षिण एशिया के देशों के साथ-साथ सारे संसार के संपन्न देशों पर लागू होता है, ख़ास तौर से यूरोप और अमेरिका के देशों पर, क्योंकि इन देशों की बहुत कम जनता आजकल खेती पर निर्भर रहती है। वहाँ खेती का काम काफ़ी हद तक यंत्रीकरण हो गया है लेकिन भारत-जैसे दक्षिण एशियाई और अफ्रीकी देशों में अभी भी करोड़ों लोग खेती और बागवानी पर निर्भर हैं।