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‘भारत रत्न’ की माँग से पहले मनमोहन सिंह से माफ़ी माँगेंगे केजरीवाल?

तो केजरीवाल के आंदोलन का हासिल क्या रहा? यही न कि बेदाग़ चरित्र वाले मनमोहन सिंह बुरी तरह बदनाम हुए और केजरीवाल को मुख्यमंत्री बनने का मौक़ा मिल गया। केजरीवाल और उनकी पार्टी के शब्दबाणों से घायल मनमोहन सिंह ने कभी कोई जवाब नहीं दिया।
पंकज श्रीवास्तव

पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पर बनी और 2019 में रिलीज़ हुई फ़िल्म ‘एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर’ के क्रियेटिव डायरेक्टर हंसल मेहता ने मान लिया है कि यह फ़िल्म पूर्व प्रधानमंत्री को बदनाम करने के लिए बनायी गयी थी। उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म एक्स पर मशहूर पत्रकार वीर सांघवी की इस टिप्पणी को सौ फ़ीसदी से ज़्यादा सही बताया है कि “यह फ़िल्म ‘झूठ’ पर आधारित अब तक बनी सबसे ख़राब हिंदी फ़िल्मों में से एक है। यह फ़िल्म उदाहरण है कि कैसे किसी शरीफ़ आदमी को बदनाम करने के लिए मीडिया का इस्तेमाल किया जा सकता है।” फ़िल्म में मनमोहन सिंह की भूमिका निभाने वाले और पीएम मोदी के मशहूर प्रशंसक अभिनेता अनुपम खेर ने जब इस पर भड़कते हुए हंसल मेहता को याद दिलाया कि वे भी इस फ़िल्म से जुड़े थे, इसलिए उनका सांघवी की टिप्पणी से सहमति जताना ‘पाखंड’ है तो मेहता ने बिना किसी लाग-लपेट के कहा, “जाहिर है मैं अपनी ग़लतियों का मालिक हूँ। मैं स्वीकार कर सकता हूँ कि मुझसे ग़लती हुई।”

लेकिन आम आदमी पार्टी में हंसल मेहता जैसा साहस नहीं है। वरना इस पार्टी के नेता दिवंगत मनमोहन सिंह के लिए ‘भारत रत्न’ की माँग करने से पहले एक बार उनके साथ किये गये अपने व्यवहार के लिए माफ़ी माँगते। यह कैसी उलटबाँसी है कि मनमोहन सिंह को ‘भ्रष्टतम प्रधानमंत्री’ क़रार देने वाले भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन के गर्भ से निकली पार्टी आज उन्हें ‘ईमानदार' और ‘देश को दिशा’ देने वाले प्रधानमंत्री के रूप में याद करते हुए ‘भारत रत्न’ देने की माँग कर रही है। पार्टी के राज्यसभा सांसद संजय सिंह ने समाचार एजेंसी पीटीआई को दिये एक इंटरव्यू में कहा, ‘मनमोहन सिंह जी का निधन भारत के लिए अपूरणीय क्षति है। इतिहास उन्हें एक महान और ईमानदार नेता के तौर पर याद रखेगा। उनमें भारत रत्न पाने की सभी योग्यताएं हैं। भारत सरकार को इस पर विचार करना चाहिए।’

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जिन लोगों को 2011 से 2013 के बीच दिल्ली में अन्ना हज़ारे के चेहरे और अरविंद केजरीवाल के बनाये नक़्शे पर हुए जन-लोकपाल आंदोलन की याद होगी उन्हें मनमोहन सिंह के देहांत के बाद आ रहे ऐसे बयानों को देखकर निश्चित ही हैरान होगी। आंदोलन के समय गाँधी का ‘अवतार’ प्रचारित किये गये अन्ना हजारे ने कहा, "मनमोहन सिंह के लिए समाज और देश सबसे पहले आता था। उनकी वजह से हमारे देश को एक नई दिशा मिल गई और देश प्रगति पथ पर आज भी चल रहा है।” वहीं, अरविंद केजरीवाल ने कहा है कि ‘डॉ. सिंह एक दूरदर्शी नेता थे जिनके आर्थिक सुधारों ने आधुनिक भारत को आकार दिया और जिनकी विनम्रता ने अनगिनत लोगों के जीवन को प्रभावित किया।’

इन बयानों को सुनने के बाद यह यक़ीन करना मुश्किल है कि इन लोगों ने कभी जंतर-मंतर से लेकर रामलीला मैदान तक मनमोहन सिंह और उनकी कैबिनेट के कथित भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाकर तूफ़ान खड़ा कर दिया था। आंदोलन की माँग एक ‘जन-लोकपाल’ बनाने की थी जिसके पास इतनी ताक़त हो कि वह प्रधानमंत्री को भी तलब कर सके और सीबीआई भी उसके अधीन हो। आंदोलन में गीत-संगीत और लहराते तिरंगों से बँधे समाँ को कॉरपोरेट नियंत्रित न्यूज़ चैनलों ने घर-घर पहुँचाया जिससे मनमोहन सरकार की छवि अखिल भारतीय स्तर पर ‘भ्रष्ट’ बन गयी। अन्ना आंदोलन के नेताओं का कहना था कि 'जन लोकपाल’ बनते ही सारे भ्रष्टाचारी जेल में होंगे। तब अरविंद केजरीवाल ने कहा था, ‘अगर सीबीआई स्वतंत्र हो तो हमारे प्रधानमंत्री भी 2जी या कोयला घोटाले में जेल जा सकते हैं।’

यानी केजरीवाल को पूरा यक़ीन था कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह टेलीकॉम और कोयला घोटाले के पीछे हैं और अगर सीबीआई स्वतंत्र हो तो उनका जेल जाना तय है। उस समय मीडिया एक लाख छिहत्तर हज़ार करोड़ के टेलीकॉम घोटाले का आकलन करने वाले सीएजी विनोद राय की बात को ब्रह्म-वाक्य की तरह प्रचारित कर रहा था। कभी कोयला घोटाला तो कभी कॉमनवेल्थ घोटाला, कभी टूजी घोटाला, 2009 में दूसरी बार चुनाव जीतने के बाद जो मीडिया ‘सिंह इज़ किंग’ की धुन बजा रहा था, अचानक उनकी सरकार के ख़िलाफ़ विस्फोटक सामग्रियों से भर गया था।
बारह साल बाद वे तमाम आरोप हवा हो चुके हैं। टेलीकॉम घोटाले के आकलन पर सीएजी विनोद राय पर टिप्पणी करते हुए सीबीआई की कोर्ट ने कहा, 'कुछ लोगों ने इस मामले में कुछ चुनिंदा तथ्‍य उठाए और अपने हिसाब से इसे स्‍कैम करार दे दिया।’

सीएजी विनोद राय ने इस मामले को लेकर किताब लिखी थी जिसमें कहा गया था कि कांग्रेस सांसद संजय निरुपम ने पीएसी या जेपीसी की बैठकों में मनमोहन सिंह का नाम न लेने के लिए दबाव बनाया था। लेकिन जब संजय निरुपम ने मानहानि का दावा किया तो उन्होंने मान लिया कि यह उनकी ग़लतबयानी थी। 

यह बात आसानी से समझी जा सकती है कि तब मनमोहन सरकार के ख़िलाफ़ व्यापक षड्यंत्र रचा गया जिसका कांग्रेस को भारी नुक़सान झेलना पड़ा। अन्ना आंदोलन में भीड़ और अन्य सुविधाएँ जुटाने में आरएसएस ने पूरी ताक़त लगायी थी जो लोकसभा चुनाव में बीजेपी के लगातार दूसरी बार हारने से परेशान था। उसने केजरीवाल को अपना ही प्यादा समझा था जो कभी उसके ‘विवेकानंद फ़ाउंडेशन’ में रणनीति बनाने जुटते थे लेकिन केजरीवाल ने अलग पार्टी बनाकर गच्चा दे दिया। पर क्या इस पार्टी ने सरकार बनाने के बाद अपने ‘जनलकोपाल’ को लेकर कोई गंभीरता दिखाई जिसे वह एक ज़माने में हर मर्ज़ का इलाज बताती थी?

arvind kejriwal aap demands bharat ratna award for manmohan singh - Satya Hindi
विनोद राय

केजरीवाल ने केंद्र की मनमोहन सरकार और दिल्ली की शीला दीक्षित सरकार पर भ्रष्टाचार के तमाम आरोप लगाते हुए दिसंबर 2013 में हुए चुनाव में दिल्ली में 28 सीटें जीती थीं। बहुमत के लिए उन्हें उसी कांग्रेस से समर्थन लेना पड़ा जिसे रात-दिन गाली देते आये थे। उस समय उन्होंने अपने ‘जन लोकपाल बिल’ को स्वीकार न किये जाने को मुद्दा बनाते हुए दो महीने बाद ही इस्तीफ़ा दे दिया और फिर 2015 में दिल्ली की 70 में से 67 सीटें जीतकर रिकार्ड बना दिया। इसी के साथ जन-लोकपाल को भूलने की शुरुआत भी हो गयी। दिल्ली विधानसभा में जनलोकपाल बिल पारित करके केंद्र को भेज दिया गया और चुप्पी साध ली गयी।

दिल्ली के पूर्ण राज्य न होने या सरकार के पास पूरे अधिकार न होने की उसकी दलील इसलिए बेकार है कि पंजाब में पूरी शक्ति वाली सरकार होने के बावजूद आज तक जनलोकपाल बिल पारित नहीं किया गया। सरकार तो छोड़िए, पार्टी में भी कोई लोकपाल नहीं है। एक समय एडमिरल रामदास जैसे प्रतिष्ठित व्यक्ति को पार्टी पर नज़र रखने के लिए लोकपाल बनाया गया था लेकिन दिल्ली में पूर्ण बहुमत की सरकार बनते ही उनसे छुटकारा पा लिया गया। लोकतंत्र वग़ैरह का सवाल उठाने वाले प्रशांत भूषण और योगेंद्र यादव जैसे लोग भी पार्टी से बाहर कर दिये गये।

मनमोहन सरकार ने 2013 में लोकपाल अधिनियम पास कर दिया था। तब अरविंद केजरीवाल ने उसे ‘जोकपाल’ बताया था लेकिन जब मोदी सरकार ने 2016 में लोकपाल अधिनयम को कमज़ोर करते हुए कई संशोधन किये तो केजरीवाल को अपने धरना-प्रदर्शन की याद नहीं आयी।

वे कभी इस क़ानून को लेकर की जा रही हीलाहवाली पर भी मुखर नहीं हुए। मोदी सरकार ने देश का पहला लोकपाल 2019 में नियुक्त किया यानी क़ानून बनने के छह साल बाद और सीबीआई ने लोकपाल के कहने पर पहला केस मार्च 2022 में दर्ज किया। अन्ना आंदोलन के दौरान सूख कर काँटा हो गये केजरीवाल पर अब सेहत की देवी मेहरबान है लेकिन लगता है कि उनकी स्मृति काफ़ी कमज़ोर हो गयी है, वरना उन्हें भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन के दौरान लिए गये अपने तमाम संकल्पों की याद ज़रूर होती।

2014 के बाद भ्रष्टाचार क्यों बढ़ा?

भ्रष्चाचार विरोधी अन्ना आंदोलन का पूरा लाभ स्वाभाविक तौर पर उस समय की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी को मिला और मोदी की बयानबाज़ियों ने राजनीतिक रंगमंच पर ताली लूटने वाला नायक बना दिया। मोदी प्रधानमंत्री बन गये। लेकिन बीते दस सालों में भ्रष्टाचार में कमी आने के बजाय बढ़ गया। 2014 में ट्रांसपरेंसी इंटरनेशन द्वारा जारी की जाने वाली भ्रष्ट देशों की सूची में भारत की रैंकिंग 85वीं थी।  2024 में उसका स्थान गिरकर 93वाँ हो गया है। 2023 में भारत का भ्रष्टाचार धारणा सूचकांक (सीपीआई) 39 रहा जबकि 180 देशों की इस सूची में सबसे कम भ्रष्ट देश का ख़िताब पाने वाले डेनमार्क का सीपीआई 90 और सबसे अधिक भ्रष्ट देश कहे जाने वाले सोमालिया का सीपीआई 18 है।

विचार से और

आज आम आदमी पार्टी वाक़ई एक ‘आम’ पार्टी बन चुकी है। केजरीवाल समेत उसके कई नेता भ्रष्टाचार के आरोपों में जेल जा चुके हैं। सादगी का नारा देने वाले केजरीवाल पर शराब नीति में घोटाला करने और मुख्यमंत्री रहते अपने आवास पर 52 करोड़ खर्च कर उसे ‘शीशमहल’ बना देने का आरोप है। मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद आतिशी सिंह कुर्सी पर उनका खड़ाऊँ लेकर शासन कर रही हैं। यानी सामूहिक नेतृत्व, पारदर्शिता और ईमानदारी का उसका दावा सवालों के घेरे में है। केजरीवाल कभी अपने मंच से ‘इंसान से इंसान में हो भाईचारा’ जैसा गीत गाते थे, लेकिन सीएए और एनआरसी के ख़िलाफ़ दिल्ली में हुए आंदोलन और हिंसा पर पार्टी और सरकार के रवैये ने धर्मनिरपेक्षता के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को भी संदिग्ध बना दिया है।

तो केजरीवाल के आंदोलन का हासिल क्या रहा? यही न कि बेदाग़ चरित्र वाले मनमोहन सिंह बुरी तरह बदनाम हुए और केजरीवाल को मुख्यमंत्री बनने का मौक़ा मिल गया। केजरीवाल और उनकी पार्टी के शब्दबाणों से घायल मनमोहन सिंह ने कभी कोई जवाब नहीं दिया। उल्टा जब दिल्ली सरकार के अधिकार कम करने के लिए मोदी सरकार ‘दिल्ली सर्विसेज़ बिल’ ले आयी, मनमोहन सिंह इसके ख़िलाफ़ वोट देने के लिए व्हील चेयर पर राज्यसभा पहुँचे थे। यह मनमोहन सिंह का बड़प्पन था। केजरीवाल चाहते तो उनसे मिलकर उन पर लगाये अपने आरोपों पर माफ़ी माँग सकते थे, लेकिन चूक गये। मनमोहन सिंह को ‘भारत रत्न’ देने की माँग में छिपा हुआ है कि आम आदमी पार्टी अपने आरोपों को ग़लत मानती है। केजरीवाल चाहें तो सार्वजनिक रूप से खेद प्रकट करके पिछली चूक को ठीक कर सकते हैं।

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