25 दिसंबर 1927: भारत में अंग्रेज़ सम्राट किंग जॉर्ज पंचम के प्रतिनिधि बतौर वायसराय लॉर्ड इरविन का शासन था। डॉ. आंबेडकर ने महाराष्ट्र के कोलाबा में मनुस्मृति का सार्वजनिक रूप से दहन किया। कट्टरपंथियों ने इसका विरोध किया। पत्र-पत्रिकाओं में डॉ. आंबेडकर के ख़िलाफ़ लेख लिखे गये, लेकिन सरकार ने इसे अपराध नहीं माना।
क्या ‘मनुस्मृति दहन’ के लिए डॉ. आंबेडकर को भी जेल भेजते योगी?
- विचार
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- पंकज श्रीवास्तव
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- 5 Jan, 2025


पंकज श्रीवास्तव
अमित शाह के संसद में डॉ. आंबेडकर को दिये बयान को अपमान मानते हुए देश भर में लोग पहले से आंदोलित हैं, ऐसे में योगी सरकार का डॉ. आंबेडकर के अनुयायियों को जेल भेजना उसके दलित, स्त्री और संविधान विरोधी रवैये पर मुहर की तरह है।
यानी अंग्रेज़ी राज में डॉ. आंबेडकर शूद्र और स्त्रियों की ग़ुलामी के दस्तावेज़ मनुस्मृति का सार्वजनिक दहन कर सकते थे, लेकिन 97 बरस बाद मोदी-योगी राज में मनुस्मृति पर विश्वविद्यालय के छात्र-छात्राएँ चर्चा भी नहीं कर सकते। दिलचस्प बात है कि बीएचयू के संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय में मनुस्मृति पर रिसर्च के लिए फ़ेलोशिप प्रोग्राम चलता है। इसकी आलोचना का जवाब यह कहते हुए दिया गया था कि विश्वविद्यालय में हर विषय पर अध्ययन और शोध होना चाहिए। लेकिन मनुस्मृति पर चर्चा करने वाले छात्र-छात्राओं पर पुलिसिया कार्रवाई का अर्थ यह है कि यूपी में मनुस्मृति की ‘प्रतिष्ठा’ तो की जा सकती है, उसकी आलोचना नहीं।
पंकज श्रीवास्तव
डॉ. पंकज श्रीवास्तव स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।