भारत में सिर्फ़ एक प्रतिशत लोग सरकारी नौकरियों पर निर्भर हैं। मंडल कमीशन की रिपोर्ट लागू होने के बाद जितनी सरकारी नौकरियाँ थीं, अब उससे भी कम रह गई हैं। धीरे-धीरे सब कुछ निजी हाथों में जा रहा है। यहाँ तक कि रेलगाड़ियों का निजीकरण करने के बाद रेल ट्रैक बेचने पर भी विचार हो रहा है। बीमा, दूरसंचार, बैंकिंग, शिक्षा, चिकित्सा सहित हर प्रमुख क्षेत्रों में अब प्राइवेट नौकरियाँ सरकारी की तुलना में ज़्यादा हैं। सरकार बहुत तेज़ी से निजीकरण करके देश का औद्योगिक विकास कराने में लगी है। इसके बावजूद जातीय हिंसा, जातीय उत्पीड़न, जातीय भेदभाव की ख़बरों से अख़बार पटे पड़े हैं।