भारत में सिर्फ़ एक प्रतिशत लोग सरकारी नौकरियों पर निर्भर हैं। मंडल कमीशन की रिपोर्ट लागू होने के बाद जितनी सरकारी नौकरियाँ थीं, अब उससे भी कम रह गई हैं। धीरे-धीरे सब कुछ निजी हाथों में जा रहा है। यहाँ तक कि रेलगाड़ियों का निजीकरण करने के बाद रेल ट्रैक बेचने पर भी विचार हो रहा है। बीमा, दूरसंचार, बैंकिंग, शिक्षा, चिकित्सा सहित हर प्रमुख क्षेत्रों में अब प्राइवेट नौकरियाँ सरकारी की तुलना में ज़्यादा हैं। सरकार बहुत तेज़ी से निजीकरण करके देश का औद्योगिक विकास कराने में लगी है। इसके बावजूद जातीय हिंसा, जातीय उत्पीड़न, जातीय भेदभाव की ख़बरों से अख़बार पटे पड़े हैं।
आरक्षण बहस: पूजा कराने वाला ब्राह्मण और नाली साफ़ करने वाला दलित ही क्यों?
- विचार
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- 29 Mar, 2025

जाति आधारित आरक्षण ख़त्म करने की वकालत क्यों की जाती है? क्या इससे जाति व्यवस्था का उन्मूलन होगा, आरक्षण विवाद ख़त्म होगा? औद्योगिक विकास के बीच जातीय हिंसा, उत्पीड़न, भेदभाव क्यों होते हैं?
यह अंतरराष्ट्रीय समस्या बन चुकी है। ऐसा कोई उदाहरण या अध्ययन सामने नहीं आया है कि औद्योगिक देशों में नौकरियाँ करने जाने वालों ने अपनी जातीय गंदगी त्याग दी है।