इससे पहले 18 जून को सुप्रीम कोर्ट ने कोरोना वायरस के संक्रमण के कारण रथ यात्रा पर रोक लगा दी थी। लेकिन ओड़िशा और केंद्र सरकार की अपील के बाद चीफ़ जस्टिस एस.ए. बोबडे इस मामले में तीन जजों की एक बेंच बनाने पर सहमत हो गए थे।
सोमवार को सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि यह करोड़ों लोगों की आस्था का सवाल है। उन्होंने कहा, ‘अगर भगवान जगन्नाथ कल (23 जून को) बाहर नहीं निकल पाएंगे तो परंपरा के मुताबिक़ वे 12 साल तक बाहर नहीं आ पाएंगे।’
सदियों से हर साल जगन्नाथ पुरी में रथयात्रा महोत्सव बेहद भव्य तरीके से आयोजित होता है। इसमें शामिल होने के लिए राज्य के लाखों श्रद्धालुओं के साथ देश के अन्य राज्यों और विदेशों से भी हजारों की संख्या में जगन्नाथ प्रेमी भाग लेते हैं।
रथों को खींचने की है परंपरा
प्रभु जगन्नाथ उनके भाई बलराम और देवी सुभद्रा तीन अलग-अलग विशाल रथों पर विराजमान होकर अपनी मौसी मां के घर 9 दिन के प्रवास पर जाते हैं। आषाढ़ माह के शुक्लपक्ष के द्वितीय दिन (इस बार 23 जून) होने वाली इस यात्रा में लाखों भक्त इन रथों को खींचकर अपने को धन्य मानते हैं। परंपरा के अनुसार, इस यात्रा के लिए तीनों रथों का निर्माण कार्य अक्षय तृतीया (गत 26 अप्रैल) से शुरू हो जाता है।
रथ का निर्माण नीम की लकड़ी से किया जाता है। इस साल रथ निर्माण के लिए नयागढ़, घुमसुर व बौद्ध जिले के वनों से 361 खंड लकड़ी लाई गई है।
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