“Not to have seen the cinema of Ray means existing in the world without seeing the sun or the moon." – Akira Kurosawa

सत्यजित राय जन्म शताब्दी वर्ष के बहाने उनकी फ़िल्मों पर ज़्यादा से ज़्यादा बात होनी चाहिए ताकि फ़िल्मों के दर्शकों की वर्तमान पीढ़ी क्लासिक सिनेमा का स्वाद ले सके, उसे समझ सके। सत्यजित राय के समूचे कृतित्व को एक लेख में बांध पाना न सिर्फ़ बेहद मुश्किल है बल्कि ऐसी कोशिश उनके साथ एक तरह की नाइंसाफी भी होगी। उनके जन्म शताब्दी वर्ष में उनके बारे में सिनेमा, साहित्य और कला प्रेमियों को अलग-अलग मंचों पर किस्तों में विस्तार से चर्चा करनी चाहिए।
एक बहुत मशहूर उपभोक्ता ब्रांड के विज्ञापन से जुड़ी लाइन है- ‘अच्छाई की एक अलग चमक होती है।’
इसे विज्ञापन से बाहर थोड़ा बदल कर यूँ भी कह सकते हैं - अच्छाई का, अच्छी चीज़ों का एक अलग जादू होता है जो देश-काल से परे होता है और कभी फीका नहीं पड़ता। यह बात कला माध्यमों के बारे में खरी उतरती है। सिनेमा में चूँकि सारे कला माध्यमों का समावेश होता है इसलिए अच्छी किताब, अच्छे संगीत और अच्छी पेंटिंग की ही तरह अच्छी फ़िल्में न सिर्फ़ हमेशा आत्मिक तृप्ति देती हैं बल्कि रुचियों को परिष्कृत करते हुए हमारे जीवन को भी जाने -अनजाने गढ़ती हैं। जीवन को गढ़ने वाले सिनेमा की जब बात होगी तो दुनिया भर के जिन चुनिंदा फ़िल्मकारों का नाम लिया जाएगा, सत्यजित राय उनमें निर्विवाद रूप से शामिल होंगे। सत्यजित राय जन्म शताब्दी वर्ष के बहाने उनकी फ़िल्मों पर ज़्यादा से ज़्यादा बात होनी चाहिए ताकि फ़िल्मों के दर्शकों की वर्तमान पीढ़ी क्लासिक सिनेमा का स्वाद ले सके, उसे समझ सके।