नरेंद्र कोहली के निधन की ख़बर सुनी तो सहसा उनके उपन्यास ‘दीक्षा’ के विश्वामित्र याद आए। 1975 में प्रकाशित इस उपन्यास में विश्वामित्र धरती पर राक्षस-राज के बढ़ रहे आतंक से मुक्ति के लिए सशस्त्र शक्ति के अभ्युदय का निश्चय करते हैं। या उसी उपन्यास के राम याद आए जो कहते हैं कि ‘राम मिट्टी में से सेनाएँ गढ़ता है क्योंकि वह केवल दमित और शोषित जन-सामान्य का पक्ष लेता है… न्याय का युद्ध करता है।’ तत्कालीन राजनीतिक परिस्थितियों और जेपी आंदोलन से इस उपन्यास के तार जुड़ने लगते हैं। अकारण नहीं है कि ‘दीक्षा’ के केंद्र में राम नहीं विश्वामित्र हैं जो कई बार जेपी लगने लगते हैं।
नरेंद्र कोहली: जिन्होंने तुलसी के बाद रामकथा को घर-घर पहुँचाया
- श्रद्धांजलि
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- 19 Apr, 2021

नरेंद्र कोहली का निधन हो गया। साहित्यकार प्रभात रंजन लिखते हैं कि उनके निधन की ख़बर सुनी तो सहसा उनके उपन्यास ‘दीक्षा’ के विश्वामित्र याद आए।
नरेंद्र कोहली ने अनेक विधाओं में लिखा, ख़ूब लिखा, बल्कि शायद सबसे अधिक व्यंग्य लिखे लेकिन उनकी अमर कीर्ति के पीछे रामकथा और महाभारत को आधार बनाकर लिखे गए उनके उपन्यास हैं। इसके पीछे यही कारण है कि उन्होंने मिथक-कथाओं को समकालीन संदर्भों के साथ ऐसे गूँथ दिया है कि सदियों पुरानी कथाएँ सहसा नवीन लगने लगती हैं। अपने आसपास के समाज से उसके तार जुड़ने लगते हैं। उन्होंने सनातन को समकालीन बना दिया।