नरेंद्र कोहली के निधन की ख़बर सुनी तो सहसा उनके उपन्यास ‘दीक्षा’ के विश्वामित्र याद आए। 1975 में प्रकाशित इस उपन्यास में विश्वामित्र धरती पर राक्षस-राज के बढ़ रहे आतंक से मुक्ति के लिए सशस्त्र शक्ति के अभ्युदय का निश्चय करते हैं। या उसी उपन्यास के राम याद आए जो कहते हैं कि ‘राम मिट्टी में से सेनाएँ गढ़ता है क्योंकि वह केवल दमित और शोषित जन-सामान्य का पक्ष लेता है… न्याय का युद्ध करता है।’ तत्कालीन राजनीतिक परिस्थितियों और जेपी आंदोलन से इस उपन्यास के तार जुड़ने लगते हैं। अकारण नहीं है कि ‘दीक्षा’ के केंद्र में राम नहीं विश्वामित्र हैं जो कई बार जेपी लगने लगते हैं।