हालांकि मैं ना तीन में हूं, ना तेरह में, लेकिन श्याम बेनेगल की विदाई पर निजी नुकसान महसूस हो रहा है। संसद की रिपोर्टिंग के दौरान उनके साथ हुई अनेक मुलाकातें याद आ रही हैं।
'श्याम बेनेगल एक चलता फिरता विश्वकोश हैं’
- श्रद्धांजलि
- |
- |
- 24 Dec, 2024

भारतीय समानांतर सिनेमा आंदोलन की शुरुआत करने वाले और भारतीय सिनेमा के महानतम दूरदर्शी फिल्म निर्माता श्याम बेनेगल का निधन हो गया। पढ़िए वरिष्ठ पत्रकार नीरज गुप्ता कैसे उनको याद करते हैं।
15 फरवरी, 2012 को बेनेगल साहब का राज्यसभा से कार्यकाल खत्म होने के बाद एक लंबा आर्टिकल न्यूज़18 की वेबसाइट पर लिखा था। वो साइट बदल गई और आर्टिकल गायब हो गया।
12 साल पहले लिखा ये संस्मरण एक रिपोर्टर का नहीं, एक प्रशंसक… एक फैन का है-
संसद एक खोज
लोकपाल पर बहस की चिल्ल-पौं के बीच संसद भवन के गेट नंबर 12 पर खड़ा में सोच रहा था- 'पिछले करीब 6 साल में इस गेट से कितने सांसद आए, कितने गए। दफ्तरी ज़रूरत के मुताबिक भाग-भाग कर उन्हें 'पकड़ने' से ज़्यादा कोई हिसाब मैंने कभी नहीं रखा। लेकिन संसद के इस हाई प्रोफाइल गेट की तरफ दौड़ कर जाने की एक अहम वजह अब कम हो गई।'
श्याम बेनेगल… एक कालजयी फिल्मकार और सौम्यता में लिपटा एक विनम्र, बेहतरीन इंसान। अपनी ग्रे रंग की सैंट्रो कार से संसद आना और लपकते कैमरों और हड़बड़ाए रिपोर्टरों पर निरपेक्ष नज़र फ़ेरते हुए अंदर चले जाना। यही उनका अंदाज़ रहा। शुरू-शुरू में तो मुझे लगता था कि उनकी फाइल से किसी फिल्म का कोई नया सीन गिरेगा, जो उन्होंने सदन में बैठे-बैठे शायद कुछ देर पहले ही लिखा होगा। फरवरी 2006 में मनोनीत सदस्य के तौर पर राज्यसभा की शपथ लेने के बाद, ज्यादातर सांसदों से उलट, बेनेगल उसे हूबहू निभाने में लग गए। संसद में अपनी मौजूदगी को लेकर किसी खांटी पार्लियमेंटेरियन से भी ज़्यादा संजीदा। हमेशा हाज़िर। हालांकि मैंने उन्हें सदन में सवाल पूछते या मुद्दा उठाते ज़्यादा नहीं देखा। लेकिन फिर भी संसद की कार्यवाही के वक्त वो भीतर ही मिलते। शायद सांसदों की हर छोटी-बड़ी हरकत को किसी अदृश्य कैमरे में कैद करने के लिए। कोई 'निजी' सियासी दिलचस्पी ना होने के बावजूद संसद ठप होने पर उनके चेहरे पर वही अफसोस होता जो किसी अहम शूटिंग के वक्त आई बारिश के चलते 'पैकअप' कहने में भी नहीं होता होगा- 'एक और कीमती दिन बरबाद हो गया।' बेफिक्र, बेदर्द और बेअंदाज़ फिल्मी दुनिया में भी बेहद अनुशासित 40 साल बिता चुके श्याम बेनेगल को उच्च सदन के तथाकथित 'माननीयों' का वो बेढंग रवैया रास आता भी तो आखिर कैसे। उनके लिए तो संसद आना जैसे एक कोर्स था जिसके हर लम्हे का वो तसल्लीबख़्श इस्तेमाल चाहते थे।