उत्तर-पूर्व के राज्यों के स्थानीय निवासियों में अपनी पहचान को बचाने की जो चिंता है उसकी वजह से हमेशा 'स्थानीय बनाम बाहरी' के टकराव की नौबत आती रहती है। मेघालय में समय-समय पर इसी बात को लेकर जातीय दंगे होते रहे हैं। हालात तब और बिगड़ जाते हैं जब ऐसे मुद्दों को संवाद के ज़रिये हल करने की जगह राजनीति करने की कोशिश की जाती है। राज्य के अल्पसंख्यक बंगालियों के ख़िलाफ़ स्थानीय खासी लोगों की नाराज़गी को समझने के लिए ज़मीनी हक़ीक़त को समझना ज़रूरी है।