असम विधानसभा चुनाव में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और कांग्रेस 1985 के असम समझौते और नागरिकता (संशोधन) अधिनियम को लागू करने के अपने रुख से जूझ रहे हैं।
असम जातीय परिषद (एजेपी) और राइजर दल (आरडी) ने सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के नेतृत्व वाले गठबंधन को चुनौती देने के लिए अपने गठबंधन में और अधिक दलों को शामिल करने की योजना बनाई है।
अगर बीजेपी असम को फिर से जीतती है, तो इसका मतलब होगा कि नरेंद्र मोदी और अमित शाह द्वारा नागरिकता (संशोधन) अधिनियम लागू करने से उन्हें ऐसे एक राज्य में नुक़सान नहीं होगा, जहाँ इस क़ानून के ख़िलाफ़ प्रबल आंदोलन शुरू हुआ था।
विवादास्पद सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम (अफस्पा), जो सुरक्षा बलों को कहीं भी ऑपरेशन करने और पूर्व वारंट के बिना किसी को भी गिरफ्तार करने की अनुमति देता है, की अवधि को नगालैंड और मणिपुर में बढ़ा दिया गया है।
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने असम विधानसभा चुनाव अभियान की शुरुआत करते हुए असम के लोगों को चेतावनी दी कि आंदोलन करने से कोई फर्क नहीं पड़ेगा, सिर्फ़ शहीदों की संख्या बढ़ेगी।
भारतीय जनता पार्टी जिस तरह धनबल और कई तरह के दबावों का प्रयोग कर कांग्रेस और दूसरे विरोधी दलों के निर्वाचित प्रतिनिधियों को अपनी ओर मिला कर सरकार गिराने-बनाने का खेल पूरे देश में खेलती है, असम में वह स्वयं उसका शिकार हो सकती है।
बीटीसी चुनाव में बीजेपी अपनी सहयोगी बीपीएफ़ के ख़िलाफ़ ही चुनाव लड़ रही है। चुनाव प्रचार में बीजेपी के मंत्री हिमंत विश्व शर्मा और बीपीएफ़ के मोहिलारी एक-दूसरे पर आक्रमण करते रहे।
असम में कछार ज़िला प्रशासन ने पुलिस से बजरंग दल के एक नेता द्वारा कथित तौर पर क्रिसमस के मौक़े पर चर्चों में जाने वाले हिंदुओं को पीटने की धमकी देने वाले भड़काऊ भाषण की जाँच करने को कहा है।
कांग्रेस के विधायक शेरमन अली अहमद द्वारा राज्य के संग्रहालयों के निदेशक को पत्र लिखने के बाद सवाल उठाया जा रहा है कि सरकारी फंडिंग के साथ राज्य में एक ‘मियाँ संग्रहालय’ कैसे स्थापित किया जा सकता है?
बाहरी लोगों द्वारा कथित भड़काऊ कृत्यों के मुद्दे पर मेघालय के स्थानीय खासी समुदाय और अल्पसंख्यक बंगालियों के बीच तनाव का वातावरण निर्मित हो गया है और हिंसा की आशंका को देखते हुए शिलांग में सत्ता के गलियारों में ख़तरे की घंटी बज गई है।
असम-मिज़ोरम के दो समूहों के बीच हिंसक झड़पों के बाद दोनों राज्यों की सीमा पर तनाव व्याप्त हो गया और कई लोग घायल हो गए। इस महीने दोनों राज्यों के निवासियों के बीच यह दूसरा ऐसा विवाद है।
असम में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर के अधिकारियों ने तैयार रजिस्टर से ‘अयोग्य’ नामों को हटाने का आदेश दिया है। आशंका है कि फ़ाइनल सूची से नाम कहीं चुनिंदा तरीक़े से न हटा दिया जाएँ।
बीजेपी अच्छी तरह जानती है कि वह शिक्षा, स्वास्थ्य और रोज़गार जैसे विकास के मुद्दों पर आम जनता से वोट नहीं माँग सकती। चुनाव जीतने के लिए उसके पास एक ही ब्रह्मास्त्र है- सांप्रदायिक ध्रुवीकरण।
असम के शिक्षा मंत्री हिमन्त विश्व शर्मा ने गुरुवार को कहा है कि असम में अगले नवंबर महीने से सरकारी सहायता से चलने वाले 614 मदरसे और 101 संस्कृत टोल (संस्कृत पाठशाला) बंद कर दिए जाएँगे।
बदरुद्दीन अजमल के नेतृत्व में एआईयूडीएफ़ ने अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों में बीजेपी को हराने के लिए कांग्रेस के साथ हाथ मिलाने पर सहमति जताई है।
गुवाहाटी हाई कोर्ट और मेघालय हाई कोर्ट में दो जनहित याचिकाएं (पीआईएल) दायर कर पूर्वोत्तर राज्यों में हिंदुओं को अल्पसंख्यक का दर्जा देने की मांग की गई है।
असम के धुबड़ी ज़िले में एक विदेशी ट्रिब्यूनल (एफ़टी) में सात मुसलिम असिस्टेंट गवर्नमेंट प्लीडर (एजीपी) को हटाकर जिस तरह हिंदू समुदाय के सात अधिवक्ताओं को नियुक्त किया गया है, उसकी तीव्र आलोचना हो रही है।