हम गाज़ियाबाद की पत्रकारों की एक सोसायटी में रहते हैं। वहाँ कई बड़े संपादकों और पत्रकारों (अपन के अलावा) के आवास हैं। इस सोसायटी में एक बड़े पत्र प्रतिष्ठान के ही पूर्व कर्मचारी अख़बार सप्लाई करते हैं। वह बताते हैं कि कोरोना से पहले लोग तीन-तीन अख़बार लेते थे। अब कुछ ने अख़बार एकदम बंद कर दिया है और कुछ ने घर में लड़ाई-झगड़े के बाद एक अख़बार पर समझौता किया है। एक दिन पहले एक बड़े अख़बार के बड़े पत्रकार ने बताया कि उनका वेतन एक तिहाई काट दिया गया है। यूरोप की फरलो (छुट्टी पर भेज दिए जाने) वाली कहानी यहाँ भी दोहराई जा रही है।