क्या जातिभेद ख़त्म करके ‘विशुद्ध भारतीय’ बनने की चुनौती के सामने भारतीय समाज के सभी अंगों ने आत्मसमर्पण कर दिया है? और मीडिया इसे किस रूप में ले रहा है?
यह धीरे-धीरे मरते हुए अख़बारों की एक अवस्था है जिसे कोरोना महामारी और उससे उपजी मंदी ने तेज़ कर दिया है। पूरी दुनिया में इस बात पर चर्चा हो रही है कि क्या कोरोना के बाद अख़बार बच पाएँगे या पूरी तरह समाप्त हो जाएँगे?