हिन्दी पट्टी का एक ‘बड़ा’ अखबार जिसे, स्वतंत्रता संघर्ष के चरम पर संभवतया जन-‘जागरण’ के उद्देश्य से शुरू किया गया था, आज हिन्दी पट्टी के करोड़ों भारतीयों की चेतना को हमेशा के लिए सुलाने में प्रतिबद्ध नजर आ रहा है। देश का यह सबसे बड़ा हिन्दी अखबार सत्ता के पीछे-पीछे चलने में मगन है। ऐसा करने के लिए इसके अपने कारण भी हैं।
क्या हिन्दी के अखबार ‘सिर्फ’ विज्ञापन दे रहे हैं?
- मीडिया
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- 15 May, 2022

हिन्दी के अखबार अब खबरों, सूचनाओं के लिए नहीं बल्कि विज्ञापनों के लिए छापे जा रहे हैं और पाठक उसे पढ़ रहे हैं। विज्ञापनों की लालच ने हिन्दी अखबारों के संपादकों को बौना बना दिया है। बहुत अजीबोगरीब हालात हैं। आखिर पाठक कब समझदार होंगे।
हांडी के एक चावल की तर्ज पर इस ‘बड़े’ अखबार के प्रमुख लक्षणों को जानने के लिए शनिवार, 14 मई का अखबार का ही विश्लेषण कर लें तो तथ्य और साजिश दोनों साफ नजर आने लगते हैं। 14 मई के इस अखबार के लखनऊ अंक (एडिशन) में लखनऊ परिशिष्ट के 4 पेज छोड़ दिए जाएँ तो लगभग 20 पेज का पेपर आपके हाथ में आएगा।