लाइव टीवी चैनलों पर अब अक्सर गालियों की भाषा क्यों इस्तेमाल हो रही है? क्या टीवी चैनलों पर गालियाँ ही आज की सच्चाई है? क्या टीआरपी की जद्दोजहद में चीखना-चिल्लाना और गालियाँ देना टीवी चैनलों की ज़रूरत का नतीजा है या फिर पत्रकारिता को ही तिलांजलि दे दी गई है? ये सवाल इसलिए कि अब डिबेट कार्यक्रम हो या लाइव कवरेज, गालियों का लाइव प्रसारण भी अक्सर हो जा रहा है। लाइव डिबेट में कांग्रेस के प्रवक्ता दिवंगत राजीव त्यागी द्वारा अभद्र भाषा का इस्तेमाल करने से इस पर हंगामा खड़ा हुआ था और फिर जनरल जीडी बख़्शी द्वारा माँ की गाली देने तक यह मामला पहुँच गया था। अब लाइव कवरेज के दौरान एक रिपोर्टर ने भी ऐसी ही गाली निकाल दी है। इस पर काफ़ी हंगामा मचा है।