रिपब्लिक भारत पर लाइव कवरेज के दौरान एक रिपोर्टर ने गाली दे दी। टीवी चैनलों पर लाइव प्रसारण में गालियों की भाषा अब अक्सर क्यों इस्तेमाल हो रही है? क्या यह टीआरपी का खेल है?
पत्रकारिता आज़ादी के दौर में मिशन थी, बाद में प्रोफ़ेशन बन गयी और अब टीवी चैनलों के शोर के दौर में प्रहसन हो चुकी है। इस पत्रकारिता का सूत्र वाक्य है - सनसनी सत्यं, ख़बर मिथ्या।
देश के सबसे प्रमुख पोर्टल द प्रिंट के एक लेख के शीर्षक में एंकरों को लकड़बग्घों की संज्ञा दी गई है। अमेरिका की रहवासी अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकारों की भारतीय मूल की एक वकील का कहना है कि भारतीय टीवी चैनलों में नरसंहार कराने की प्रतियोगिता चल रही है। ये कहाँ आ गए हम, पूछ रहे हैं शीतल पी सिंह।