पालघर में दो साधुओं और उनके साथ गाड़ी के एक चालक की लिंचिंग हुई। वहाँ बीजेपी की सदस्य और स्थानीय सरपंच थीं। एनसीपी नेता थे। पुलिसकर्मी थे। भीड़ ने उन्हें दो घंटे से ज़्यादा समय तक पकड़ रखा था। फिर अचानक दो घंटे बाद ऐसा क्या हो गया कि भीड़ ने तीनों को मार डाला? यह पूरी घटना कैसे हुई, क्या उन बीजेपी और विपक्ष के नेताओं को पता है जिसके आधार पर वे एक-दूसरे के ख़िलाफ़ राजनीतिक लड़ाई लड़ रहे हैं? किन कारणों से हुई लिंचिंग और कब क्या हुआ घटनाक्रम?
घटना महाराष्ट्र और दादर नगर हवेली की सीमा पर पालघर क्षेत्र के दहानु तालुका में हुई। हाईवे के पास का गडचिंचले गाँव दूर-दराज़ इलाक़े में है। महाराष्ट्र फ़ॉरेस्ट डिपार्टमेंट के चेकपोस्ट के बाहर जहाँ घटना हुई वहाँ दिन में भी मुश्किल से ही कभी कुछ लोग इकट्ठे होते हैं। लेकिन 16 अप्रैल की रात क़रीब 8 बजे कुछ मिनटों में ही क़रीब 400 लोगों की भीड़ जुट गई। गाड़ी में आए दोनों साधुओं और उस गाड़ी के चालक को पकड़ लिया गया। सवाल है कि इतनी जल्दी एक साथ इतने लोग कैसे इकट्ठे हो गए, क्या पहले से कुछ तैयारी थी?
ग्रामीणों, सरपंच और दूसरी रिपोर्टों की मानें तो ऐसा ही कुछ था। 16 अप्रैल की लिंचिंग से पहले आसपास के गाँवों में अपहरणकर्ताओं और शरीर के अंग निकालने की वाट्सएप पर अफवाह फैली थी। जबिक ऐसी कोई घटना उस क्षेत्र में हुई नहीं थी। 'द इंडियन एक्सप्रेस' की रिपोर्ट के अनुसार, इसी अफवाह के चलते दहानु तालुका के दूसरे गाँवों की तरह ही पाँच गाँवों- गडचिंचले, दिवशी, दभाडी, तलावी और रुदाणा के लोगों ने अपनी सुरक्षा के लिए योजना बनाई थी। वे रात भर गाँवों में पहरा दे रहे थे और उन्होंने एक-दूसरे को कह रखा था कि जैसे ही किसी ख़तरे का आभास हो वे सीटी और टॉर्च लाइट की रोशनी से इशारा करेंगे। जब 16 अप्रैल को रात क़रीब आठ बजे गडचिंचले में एक गाड़ी दिखी तब पाँच गाँवों के लोग पहले से ही टॉर्च लाइट और लट्ठ लेकर तैयार थे। ग्रामीणों का कहना है कि दिन में भी कभी-कभार ही वहाँ कार दिखती थी और रात में तो बिल्कुल ही नहीं।
उस गाड़ी में 70 वर्षीय महंत कल्पवरुक्ष गिरि, 35 वर्षीय सुशील गिरि महाराज और चालक नरेश येलगडे थे। कहा जाता है कि लॉकडाउन से बचने के लिए वे मुंबई गुजरात हाइवे को छोड़कर गाँवों के रास्ते से जा रहे थे।
अख़बार की रिपोर्ट के अनुसार महाराष्ट्र फ़ॉरेस्ट डिपार्टमेंट चेकपोस्ट से कुछ दूर रहने वाली गडचिंचले की सरपंच और बीजेपी की नेता चित्रा चौधरी कहती हैं कि उन्होंने कार के जाने की आवाज़ और कुछ लोगों को बोलते हुए सुना। जब उन्होंने देखा तो क़रीब दो दर्जन लोग हथियारों से लैस दिखे। उन्होंने कहा कि क़रीब 8:30 बजे हंगामा होने लगा तो वह मौक़े पर गईं। चित्रा ने 'द इंडियन एक्सप्रेस' से कहा, 'वहाँ हमारे गाँव और आसपास के गाँवों के लोग थे और वे कार के चारों ओर से चीख-चिल्ला रहे थे। उनके साथ कुछ भी बात करना मुश्किल था। जब मैंने उनमें से एक-एक कर लोगों को हटाकर आगे बढ़ने की कोशिश की तो वे लोग मेरे पर चीखने-चिल्लाने लगे। उन्होंने मुझे कहा कि कार में बैठे लोगों को तुम अपने बच्चे की किडनियाँ देना चाहती हो तो दे दो। इनके दिमाग़ में कोई संदेह नहीं था कि ये बाहरी लोग कौन थे। वाट्सएप मैसेज में यह भी लिखा था कि अपहरणकर्ता किसी भी भेष में हो सकते हैं, कलाकार, यहाँ तक कि पुलिसवाले की वर्दी में भी।'
अख़बार के अनुसार, सरपंच कहती हैं कि वह वहाँ क़रीब दो घंटे रहीं, भीड़ पत्थर बरसा रही थी, कार को इधर-इधर हिला रही थी, लेकिन गाड़ी के अंदर बैठे लोगों को तब तक कोई चोट नहीं पहुँची थी। बीजेपी की सदस्य और सरपंच चित्रा कहती हैं, "जैसे ही एनसीपी नेता आए लगा कि भीड़ सक्रिय हो गई और नारे लगाने लगी- 'दादा आला, दादा आला' (बड़े भाई आए)।' वह कहती हैं कि जब पुलिस पहुँची तो वह वहाँ से चली गई थीं।
चौधरी ने कहा कि उनके वहाँ जाने का मक़सद राजनीतिक नहीं था। उन्होंने यह भी कहा कि सरपंच ने भीड़ को शांत करने की पूरी कोशिश की थी, लेकिन पुलिस पर भी हमला किया गया और हम कुछ कर नहीं सके।'
सरपंच व एनसीपी नेता के अनुसार और जैसा कि वीडियो में दिख रहा है पुलिस के आने के बाद ही लोग ज़्यादा उग्र दिखे और साधुओं पर हमले किए।
बता दें कि पहले भी ऐसी अफवाहों के कारण 14 अप्रैल के आसपास उस क्षेत्र में ऐसी ही लिंचिंग की दो घटनाएँ होते-होते रही थीं। हालाँकि पुलिस ने अफवाहों पर भी कार्रवाई की थी और 9 अप्रैल को इसने ट्वीट किया था। सांप्रदायिक नफ़रत फैलाने की शिकायत मिलने पर 11 अप्रैल को एक वाट्सएप ग्रुप एडमिन के ख़िलाफ़ केस दर्ज किया गया था।
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