आज पूरे देश में हर राज्य सरकार जब कोरोना के ख़िलाफ़ एक जंग लड़ रही है तो क्या ऐसे में केंद्र सरकार की तरफ़ से सहायता निधि को लेकर कोई अलग रणनीति चलाई जा रही है? भारत सरकार के कंपनी मामलों के मंत्रालय के एक सर्कुलर को देखें तो कुछ ऐसा ही नज़र आ रहा है कि केंद्र सरकार राज्यों को औद्योगिक घरानों या संस्थान की तरफ़ से मिलाने वाली सहायता राशि पर अड़ंगा लगा रही है।
जनरल सर्क्युलर 15 /2020, F. No. CSR -01 /4 /2020 -CSR -MCA तो कुछ यही कहानी कह रहा है। इस सर्क्युलर में यह बात स्पष्ट रूप से लिखी गयी है कि कॉर्पोरेट या औद्योगिक संस्थान द्वारा जो पैसा 'PM Cares Fund' में दिया जाएगा उसे ही कंपनी अधिनियम 2013 के प्रावधान क्रमांक (viii) के तहत सीएसआर यानी कॉर्पोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी ख़र्च के तहत योग्य माना जाएगा। यदि कोई कॉर्पोरेट या औद्योगिक संस्थान मुख्यमंत्री सहायता निधि या राज्य सहायता निधि के तहत सहायता राशि देता है तो कंपनी अधिनियम के प्रावधान (vii) के तहत उसे सीएसआर ख़र्च में शामिल नहीं किया जा सकेगा।
केंद्र के कंपनी मामलों के मंत्रालय ने यह सर्क्युलर 28 मार्च 2020 को जारी किया है। इस सर्क्युलर में यह भी लिखा गया है कि यदि कोई कॉर्पोरेट या औद्योगिक संस्थान राज्य आपदा प्रबंधन अथॉरिटी को मदद देता है तो वह कंपनी अधिनियम 2013 के प्रावधान (xii) के तहत सीएसआर ख़र्च में शामिल किया जा सकता है। अब सवाल यह उठता है कि क्या केंद्र सरकार इस तरह का आदेश जारी कर इस आपदा से लड़ने के लिए प्राप्त निधि या सहायता को केंद्रीकृत करना चाहता है? क्या वह इस आदेश के माध्यम से राज्य सरकारों पर एक अंकुश लगाना चाहता है या निधि तथा सहायता के लिए अपने पास आने को मजबूर करना चाहता है?
PM Cares Fund को लेकर जारी किए गए इस सर्क्युलर को लेकर राष्ट्रवादी कांग्रेस के विधायक और शरद पवार के पोते रोहित पवार ने ट्वीट किया है। उन्होंने कहा है, ‘यदि यह ग़लती हुई है तो केंद्र सरकार इसे सुधारे। लेकिन यदि यह जानबूझकर किया गया है तो यह हमारे देश के संघीय ढाँचे के लिए अच्छी बात नहीं है।’ उन्होंने कहा कि आपदा की इस घड़ी में केंद्र सरकार की तरह ही राज्य सरकारों को भी पैसे की ज़रूरत है। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपने ट्वीट में टैग करते हुए लिखा है कि वे इस तरफ़ ध्यान दें।
उल्लेखनीय है कि PM Cares Fund पर इसकी घोषणा के समय से ही आरोप लगने लगे थे। कांग्रेस की कार्यकारी प्रमुख सोनिया गाँधी ने भी इसकी पारदर्शिता को लेकर सवाल उठाये थे और इसे प्रधानमंत्री सहायता कोष में समाहित कर देने की बात कही थी।
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