कोरोना की दूसरी लहर से देशभर में हाहाकार मचा हुआ है। अस्पतालों में ऑक्सीजन, दवा और अस्पताल बेड की कमी के चलते हर दिन हजारों लोगों की मौत। श्मशान और कब्रिस्तान में अंतिम संस्कार के लिए लम्बी-लम्बी कतारें। लकड़ी के अभाव में नदियों में शवों को बहाने के लिए मजबूर लोग आये दिन समाचारों में सुर्खियां बने हुए हैं। ऐसा लगता है कि सिर्फ स्वास्थ्य ढांचा ही नहीं पूरा सिस्टम और सरकार विफल हो गयी है। ऑक्सीजन और दवा के लिए अदालतों में याचिकाएँ दायर हो रही हैं। हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट सरकार से सवाल पूछ रहे हैं और निर्देश भी जारी कर रहे हैं लेकिन स्थिति में कोई सुधार नज़र नहीं आता। चारों तरफ़ निराशा के इस माहौल में जब देश के सुप्रीम कोर्ट ने मुंबई महानगरपालिका के काम की तारीफ़ करते हुए ‘मुंबई मॉडल’ की बात की तो यह सवाल उठने लगा कि क्या सही प्रबंधन से कोरोना को नियंत्रित किया जा सकता है या हराया जा सकता है?
कैसे मुंबई में एक अफ़सर ने सूझबूझ से बचाई हज़ारों ज़िंदगियाँ!
- महाराष्ट्र
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- 16 May, 2021

चारों तरफ़ निराशा के इस माहौल में जब देश के सुप्रीम कोर्ट ने मुंबई महानगरपालिका के काम की तारीफ़ करते हुए ‘मुंबई मॉडल’ की बात की तो यह सवाल उठने लगा कि क्या सही प्रबंधन से कोरोना को नियंत्रित किया जा सकता है या हराया जा सकता है?
दरअसल, कोरोना की पहली लहर रही हो या दूसरी मुंबई और पूरे महाराष्ट्र में कोरोना के आंकड़े हमेशा ही सर्वाधिक रहे हैं। देश में होने वाले कोरोना के कुल संक्रमण में महाराष्ट्र का हिस्सा 20 से 30 फ़ीसदी के आसपास रहता था। कोरोना की दूसरी लहर शुरू हुई तो मुंबई में प्रतिदिन संक्रमितों की संख्या आंकड़ा 11 हजार को पार कर चुका था और संक्रमण दर करीब 30 के पास थी। लेकिन आज यह दर 0.3 है जो यह दर्शाता है कि मुंबई जैसे भीड़ भाड़ वाले महानगर ने कोरोना पर जीत नहीं तो नियंत्रण तो पा ही लिया है।