देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में कोरोना संक्रमण के आँकड़े तो डर पैदा करने वाले हैं लेकिन कोरोना के ख़िलाफ़ लड़ाई में कुछ नतीजे ऐसे भी नज़र आने लगे हैं जिनको लेकर ये आशाएँ जगने लगी हैं कि शायद लड़ाई सही दिशा में जा रही है और आने वाले समय में इस बीमारी से राहत तो मिलेगी। यह सच है कि महानगर में आज भी क़रीब पचास लाख लोग कन्टेनमेंट ज़ोन में अपने घरों में कैद हैं लेकिन मध्य मुंबई के एक बड़े हिस्से में कोरोना का ग्राफ़ अब हर दिन नीचे गिरता जा रहा है। नए मामले जो आ रहे हैं अब वह उत्तर मुंबई या उसके उपनगरों से हैं और महानगर का कुल आँकड़ा कम नहीं हो रहा। मुंबई में प्रशासन को जो बड़ी सफलता मिली है वह है एशिया की सबसे बड़ी स्लम धारावी में। पहले की तुलना में कोरोना वायरस के मामले अब काफ़ी कम हो गए हैं।
एक समय यह झोपड़पट्टी संक्रमण का हॉटस्पॉट बन चुकी थी लेकिन अब धारावी ने कोरोना महामारी को कई तरीक़ों से पराजित किया है और दुनिया भर को एक आस दिखाई है कि यदि इच्छाशक्ति हो तो क्या नहीं किया जा सकता है। ढाई से तीन किलोमीटर के दायरे में बसी इस बस्ती में क़रीब 12 लाख लोग रहते हैं। ऐसे में अनुमान लगाया जा सकता है कि सोशल डिस्टेंसिंग यहाँ एक असंभव कार्य है। इसे देखते हुए अप्रैल महीने से अधिकारियों ने सिर्फ़ स्लम इलाक़े में ही 47500 घरों के दरवाज़ों को खटखटाया है और तकरीबन सात लाख लोगों की स्क्रीनिंग की गई। सरकार ने यहाँ बड़ी संख्या में फीवर क्लीनिक्स बनाई हैं। मई के शुरुआती समय से तुलना करें तो धारावी में पहले के मुक़ाबले अब महज बीस फ़ीसदी नए मामले सामने आ रहे हैं। इसके अलावा आधे से ज़्यादा मरीज़ महामारी से ठीक हो चुके हैं।
मुंबई के नगरपालिका में सहायक आयुक्त किरण दिघावकर कहते हैं कि ‘धारावी में सोशल डिस्टेंसिंग असंभव था, उसके बाद एकमात्र विकल्प यह बच जाता था कि वायरस का पीछा करें ना कि मामलों के आने की प्रतीक्षा करें। हम लोगों को शुरुआती समय में ही आईसोलेट कर रहे थे। धारावी में पहले हर रोज़ 90 के आसपास नए कोरोना के मामले सामने आ रहे थे, अब वह संख्या घटकर औसतन 20 हो गई है।'
वैसे, मुंबई में अब कोरोना संक्रमितों के आँकड़े दुगने होने की समयावधि 26 दिन की हो गयी है। लेकिन हॉटस्पॉट बने भायखला, धारावी, सायन, वडाला, गोवंडी, मानखुर्द, बांद्रा जैसे इलाक़ों, जहाँ बड़ी संख्या में झुग्गी बस्तियाँ हैं, में कोरोना संक्रमण के आँकड़े तेज़ी से बढ़ने का ख़तरा था।
गोवंडी मानखुर्द में अब 52 दिन, सायन वडाला में 51, धारावी में 48 और बांद्रा पूर्व में 43 दिन में कोरोना संक्रमण के आँकड़े दुगने हो रहे हैं। और इसका श्रेय राज्य सरकार और महानगरपालिका द्वारा शुरू की गई ‘चेजिंग द वायरस’ नामक योजना को दिया जा रहा है।
इसके लिए आठ आईएएस अधिकारी विशेष रूप से तैनात किये गए हैं। इन्हें लक्ष्य दिया गया था कि मुंबई में संक्रमण के दुगना होने की अवधि को कम से कम 20 दिन पर लाना है। आज मुंबई में हर दिन 2.76 फ़ीसदी की औसत दर से कोरोना मरीज़ों की संख्या बढ़ रही है, लेकिन ए विभाग (कुलाबा, चर्चगेट) में 1.2, जी उत्तर (धारावी, माहिम) में 1.4, एफ़ उत्तर (सायन, वडाला) में 1.4, एच पूर्व (सांताक्रुज, खार, बांद्रा) में 1.5 (भायखला, नागपाडा) में 1.6 की दर से मरीज़ बढ़ रहे हैं। जबकि कोरोना का संक्रमण अब महानगर के उत्तरी भाग में फैल रहा है। उत्तर (दहिसर) में 6.5 आर/दक्षिण (कांदिवली) में 4.8, आर मध्य (बोरीवली) में 4.7, पी उत्तर (मालाड) में 4.5 की दर से संक्रमण के मामले बढ़ रहे हैं।
दरअसल, मुंबई में जो परिणाम दक्षिण और मध्य मुंबई में आ रहे हैं उसके पीछे अधिकतम जाँच तथा संक्रमित के संपर्क के लोगों को क्वॉरेंटीन करने की नीति ही काम कर रही है। मनपा आयुक्त इक़बाल सिंह चहल ने एक संक्रमित के 15 क़रीबियों को क्वॉरेंटीन करने का फ़ॉर्मूला ‘चेजिंग द वायरस’ योजना में लागू किया है। मुंबई उपनगरों में जनसंख्या घनत्व एक बड़ा घटक है और उस हिसाब से प्रशासन व सरकार के पास स्वास्थ्य सेवाओं का ढाँचा नहीं था, लेकिन पिछले 70 दिनों में बहुत सी चीजें तैयार हुई हैं और इसको लेकर प्रशासन आशान्वित है कि वे शीघ्र ही स्थिति को नियंत्रण में कर पाने की स्थिति में होंगे। उनके इस आकलन के पीछे यह तर्क है कि दक्षिण और मध्य मुंबई का झुग्गी-झोपड़ीवाला क्षेत्र नियंत्रण में आ रहा है जो काफ़ी विस्फोटक बन सकता था। वैसे, मुंबई में 50 फ़ीसदी कोरोना पीड़ित ठीक होकर घर जा चुके हैं और यह आँकड़ा हर दिन बढ़ रहा है जो हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए अच्छी ख़बर है।
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