मध्य प्रदेश विधानसभा के 2 हजार 534 उम्मीदवारों के भाग्य को वोटरों ने ईवीएम में कैद कर दिया है। राज्य के गठन के बाद से पहली बार हुए रिकार्ड मतदान ने राजनैतिक दलों के साथ-साथ विश्लेषकों को ‘चक्कर’ में डाल दिया है।
अब बड़ा सवाल यह बन गया है कि बंपर वोटिंग राज्य में बीजेपी की वापसी में मददगार साबित होगी या इससे कांग्रेस की पौ बारह होगी?
बंपर वोटिंग के नफा और नुकसान की ‘पहेली का हल’ राजनैतिक दलों के साथ-साथ मीडिया वाले एवं विश्लेषक भी खोज़ रहे हैं।
मध्य प्रदेश में ट्रेंड रहा है कि जब भी 3 प्रतिशत या इससे ज्यादा वोट बढ़ता है तो सत्ता बदल जाती है। वोट परसेंट में उछाल कम हो और वोटिंग ट्रेंड पिछले वोट परसेंट के आसपास रहे तो सरकार को फायदा होता है।इस बार वोट परसेंट में डेढ़-दो परसेंट का उछाल नज़र आ रहा है। दरअसल वोट परसेंट का फाइनल आंकड़ा अभी अपेक्षित है। विश्लेषकों को महिला वोटरों के फाइनल वोट फिगर का भी बेसब्री से इंतजार है।
मध्य प्रदेश में भाजपा ने लाड़ली बहना का बड़ा दांव चुनाव के मद्देनज़र खेला था। करीब 6 महीने पहले लागू इस योजना के बाद कल हुए भारी मतदान और मतदान में महिलाओं की लंबी कतारों ने बीजेपी की बांछे खिलाई हुई हैं।दरअसल पिछले चुनावों की तुलना में इस बार महिलाएं बड़ी संख्या में मतदान के लिए घरों से निकली हैं।
साल 2018 के चुनावों की तुलना में इस बार 15 लाख से ज्यादा महिलाएं वोट डालने पहुंची हैं। साल 2018 के चुनाव में 1.78 करोड़ महिला वोटरों ने वोट डाले थे। जबकि इस बार इनका आंकड़ा 1.93 करोड़ के आसपास है।
महिलाओं के ‘उत्साह’ को सत्तारूढ़ दल भाजपा लाड़ली बहना स्कीम से जोड़कर नफा मान रहा है। सही भी है, लाड़ली बहना स्कीम ही भाजपा के लिए अंतिम अस्त्र मानी जा रही थी। लेकिन बीजेपी की इस योजना की काट के तौर पर कांग्रेस ने भी योजना लागू होते ही सरकार बनने पर महिला वर्ग को 1500 रुपये प्रतिमाह सीधे खाते में देने का एलान करते हुए काट का कार्ड खेल दिया था।
कांग्रेस के 1500 की घोषणा के बाद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान योजना के अंतर्गत 3 हजार रुपये देने की घोषणा के साथ आगे आ गए थे। हालांकि बीजेपी अभी महिलाओं को 1250 रुपये महीना दे रही है।राज्य में 2.92 करोड़ वोटर हैं। लाड़ली बहना योजना का लाभ 1.58 करोड़ महिलाओं को मिला है। ऐसे में कांग्रेस एवं प्रेक्षकों का मानना है कि महिलाओं का वोट सिर्फ लाड़ली बहना योजना भर का नहीं है।
गृहणियां कमर तोड़ महंगाई से त्रस्त रहा है। गैस सिलेंडरों के दाम से लेकर अन्य महंगाई बजट बिगाड़ते रहे हैं। कांग्रेस ने सरकार बनने पर महंगाई से निजात के साथ-साथ घरेलू गैस का सिलेंडर 500 रुपये में देने, 100 यूनिट बिजली मुफ्त और 200 यूनिट बिजली आधे दामों पर देने की घोषणा कर रखी है। अपनी योजनाओं के मद्देनज़र कांग्रेस तो मानने को तैयार नहीं है कि लाड़ली बहना योजना उसका गणित बिगाड़ रही है।
22 लाख युवा वोटर भी बीजेपी की उम्मीद
मध्य प्रदेश चुनाव में 22 लाख ऐसे वोटर थे, जिन्हें वोट का अधिकार हाल ही में ही मिला है। पहली बार के वोटर भी बड़ी तादाद में वोट डालने पहुंचे थे। इन वोटरों को भी बीजेपी अपने पक्ष में मानकर चल रही है।
बता दें, मध्य प्रदेश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर केन्द्र के अन्य नेताओं एवं राज्य के लीडरों ने भी नये वोटरों पर जमकर डोरे डाले हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तो अपनी हर सभा में पहली बार के वोटरों से अपील करते रहे, ‘अपने माता-पिता, दादा-दादी एवं अन्य परिजनों से पूछें कांग्रेस के राज में कितने कष्ट उन्होंने झेले हैं। बिजली, सड़क और पानी के क्या हाल थे? रोजगार था कि नहीं था? आदि-आदि।
युवा वोटर बीजेपी को फायदा देते रहे हैं। इस बार कितना फायदा देंगे? यह तो 3 दिसंबर को चुनावों के नतीजे आने पर ही साफ होगा।
मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में ‘सत्य हिन्दी’ ने लाड़ली बहना योजना की लाभार्थियों और युवा वोटरों को जमकर टटोला था। बातचीत में लाड़ली बहनाएं, महंगाई और महिला अत्याचार की घटनाओं पर ‘फट’ पड़ती थीं। उधर युवा भी रोजगार को लेकर प्रतिप्रश्न करता रहे थे।
कुल मिलाकर मध्य प्रदेश में भाजपा के पास लाड़ली बहना और युवा वोटर ही दो बड़े चुनावी हथियार नज़र आते रहे। चूंकि दोनों ही वोटर वर्ग की राय मिली-जुली एवं मिश्रित बनी हुई रही, लिहाज़ा बढ़ा हुआ वोट, महज और महज भाजपा के पक्ष में जा सकता है, तर्कसंगत नजर नहीं आ रहा है।
नहीं चला है सनातन का मुद्दा
बीजेपी ने मध्य प्रदेश के चुनाव को पोलराइज करने का प्रयास किया, लेकिन यह मसला क्लिक करता नहीं दिखा। चुनाव में भाजपा की ओर से सनातन आया, सिर तन से जुदा का मुद्दा आया, राम मंदिर का निर्माण आया, कश्मीर को धारा 370 से मुक्त करने का मसला लाया गया और तीन तलाक की भी बात हुई, हमास भी आया, लेकिन इन मसलों पर बहुत ज्यादा समर्थन मध्य प्रदेश में मिलता दिखा नहीं।
कांग्रेस ने भी चुनाव को सांप्रदायिक रंग देने वाले इन मसलों पर कोई बड़ा रिएक्शन अथवा बीजेपी को बैठे-बिठाये कोई अवसर नहीं दिया। कांग्रेस अपनी ही ‘पिच’ पर खेलती रही। केन्द्र और राज्य की सरकार को कथित नाकामियों को लेकर कांग्रेस ने भरपूर घेरा। रोजगार, महंगाई से निजात और जनता से जुड़े ऐसे सवालों को लेकर बार-बार घेरा।
राहुल गांधी ने पिछड़ा, अनुसूचित जनजाति और अनुसूचित जनजाति कार्ड जमकर खेला। जातिगत जनगणना को इश्यू बनाने में कांग्रेस सफल रही।
कांग्रेस ने एक दर्जन गारंटियां मध्य प्रदेश के लोगों को दी हैं। गारंटियों में किसानों की कर्ज माफी, किसानों को मुफ्त बिजली, घरेलू उपभोक्ताओं को निःशुल्क एवं सस्ती बिजली, महिला वर्ग को 1500 रुपये महीने खाते में भेजने, 500 रुपयों में सिलेंडर, ओपीएस (ओल्ड पेंशन स्कीम) और 25 लाख का स्वास्थ्य बीमा क्लिक करती दिखी हैं।वरिष्ठ पत्रकार और विश्लेषक अरूण दीक्षित ने ‘सत्य हिन्दी’ से कहा कि, ‘मतदान का प्रतिशत बदलाव की बयार को ज्यादा ध्वनित कर रहा है।’
दीक्षित कह रहे हैं, ‘केन्द्र और राज्य की सरकार की नाकामियों की लंबी फेहरिस्त है। किसान त्रस्त है। ब्लैक में खाद नहीं मिल रहा है। फसलें चौपट हो गईं हैं। व्यापमं और पटवारी भरती जैसे घोटाले हुए हैं। कानून-व्यवस्था बदहाल है। भ्रष्टाचार चरम पर है। इन सब हालातों के बाद बहने, बीजेपी का उद्दधार करेंगी! मुझे नहीं लग रहा है।’
भाजपा को 150 प्लस सीटें मिलेंगी
अरूण दीक्षित की प्रतिक्रिया के ठीक उलट बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव एवं इंदौर 1 विधानसभा सीट के भाजपा प्रत्याशी कैलाश विजयवर्गीय का दावा है कि ‘भाजपा 150 का आंकड़ा पार करते हुए मध्य प्रदेश में सरकार बनाने जा रही है।’मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान नंबर तो नहीं बता रहे हैं, लेकिन उनका भी दावा है, भाजपा की पुनः शानदार बहुमत के साथ सरकार बन रही है।
पूर्व मुख्यमंत्री और पीसीसी चीफ कमल नाथ की प्रतिक्रिया है, ‘सीटें कितनी मिलेंगी? नहीं बता सकता, लेकिन पूर्ण बहुमत से सरकार, कांग्रेस बना रही है।’
कांग्रेस नेता और पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी मध्य प्रदेश में प्रचार के दौरान कह गये हैं, ‘कांग्रेस को 140 से 145 सीटें मध्य प्रदेश में मिलने जा रही हैं।’
ग्वालियर-चंबल पर है देश की निगाहें
राजनीति में रूचि रखने वाले हरेक देशवासी की नज़र मध्य प्रदेश विधानसभा के चुनाव नतीजों पर सबसे ज्यादा लगी हुई हैं। नतीजें 3 दिसंबर को आयेंगे।
मध्य प्रदेश में सत्ता का रास्ता मालवा और निमाड़ से होकर गुजरता है। कुल 230 सीटों वाली राज्य विधानसभा में बहुमत का आंकड़ा 116 है। मालवा-निमाड़ रिजन में 66, महाकौशल में 38, मध्य भारत में 36, ग्वालियर-चंबल में 34, विंध्य में 30 और बुंदेलखंड में 26 सीटें हैं।
वोट के बाद पुराना गणित ही बरकरार रहने की संभावनाएं विश्लेषक व्यक्त कर रहे हैं। ग्वालियर-चंबल, विंध्य और बुंदेलखंड में कांग्रेस को आगे बताया जा रहा है। मालवा-निमाड़ में (2018 में करीबी स्थिति थी) और मध्य भारत में (2018 में 24 भाजपा एवं 12 कांग्रेस थी) यथावत स्थिति संभावित बतायी जा रही है। महाकौशल में कांग्रेस का प्रदर्शन 2018 (24 कांग्रेस की पास थीं और 13 बीजेपी ने जीती थीं) की तुलना में कमतर रहने की संभावनाएं चुनावी पंडित बतला रहे हैं।
हेवीवैट कैंडिटेड की धड़कनें तेज हैं
भाजपा ने जिन 7 सांसदों (तीन केन्द्रीय मंत्री भी इनमें शामिल हैं) को चुनाव मैदान में उतारा है उनमें 3 की सीटों पर पिछले चुनाव की तुलना में वोटिंग कम हुआ है। बाकी 4 की सीट पर बढ़ा है। जिन 4 की सीट पर बढ़ा, उनमें 2 केन्द्रीय मंत्री हैं।केन्द्रीय मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते के निर्वाचन क्षेत्र में 5 प्रतिशत से कुछ ज्यादा मतदान 2018 के चुनाव की तुलना में ज्यादा हुआ है। प्रहलाद पटेल के निर्वाचन क्षेत्र में पाइंट 45 परसेंट और तोमर की क्षेत्र में 2018 के चुनाव की तुलना में 2.6 परसेंट वोट कम पड़े हैं।
2018 में पड़े थे 76.22 प्रतिशत वोट
मध्य प्रदेश का गठन 1956 में हुआ है। राज्य में पहली बार विधानसभा के चुनाव 1957 में हुए थे। साल 1957 से 2018 के बीच हुए 15 चुनावों के बाद सोलहवीं विधानसभा चुनाव में वोटों का प्रतिशत 77 के पार (17 नवंबर की रात 11.30 बजे चुनाव आयोग ने 76.22 प्रतिशत वोटिंग का अधिकृत आंकड़ा देते हुए कहा था, फाइनल आंकड़ा 18 नवंबर शाम तक कम्पाइल हो सकेगा) या इसके करीब रहने की संभावनाएं हैं।
मध्य प्रदेश में 2018 में 75.63 प्रतिशत वोट पड़े थे और यह वोटिंग 1956 से लेकर 2018 तक के चुनाव में सर्वाधिक रही थी।
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