मध्य प्रदेश का बहुचर्चित व्यावसायिक परीक्षा मंडल भर्ती घोटाला एक बार फिर सुर्खियों में है। व्यापमं घोटाले के मुख्य आरोपी और शिवराज सरकार के पुराने मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा समेत उन आठ आरोपियों को सीबीआई ने शनिवार को ‘क्लीन चिट’ दे दी है जिन्हें मध्य प्रदेश की एसटीएफ़़ ने परिवहन आरक्षक भर्ती घोटाले में आरोपी बनाया था। लक्ष्मीकांत शर्मा इस मामले में भी मुख्य आरोपी थे। ‘क्लीन चिट’ देने पर सीबीआई की भूमिका पर सवाल उठाए जा रहे हैं। मध्य प्रदेश कांग्रेस ने पूरे मामले को लेकर देश के गृहमंत्री राजनाथ सिंह को भी निशाने पर लिया है।
व्यापमं घोटाला उजागर होने के बाद मध्य प्रदेश में एक के बाद एक कई भर्ती घोटाले सामने आए थे। व्यापमं की जाँच के दरमियान मध्य प्रदेश की एसटीएफ़़ ने 14 अक्टूबर 2014 को परिवहन आरक्षकों की भर्ती में घोटाले को लेकर भी शिवराज सरकार के मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा को मुख्य आरोपी बनाते हुए कुल 39 लोगों के ख़िलाफ़ नामजद प्रकरण दर्ज किया था।
जेल में रहे थे शर्मा
एसटीएफ़ ने शर्मा समेत तमाम आरोपियों के विरूद्ध भादवि की धारा 420, 467, 468, 471, 477 - बी, 477 - क और 120 बी लगाई थी। इस नए प्रकरण की वजह से लक्ष्मीकांत शर्मा समेत कई आरोपियों की व्यापमं घोटाला मामले में जमानत नहीं हो सकी थी। काफ़ी वक़्त तक इन्हें जेल में रहना पड़ा था।
शिवराज सरकार ने कांग्रेस के भारी दबाव के बाद पूरा मामला सीबीआई को सौंप दिया था। सीबीआई ने शनिवार को विशेष न्यायाधीश सुरेश सिंह की अदालत में पेश किए गए परिवहन आरक्षक भर्ती घोटाले से जुड़े मामले के चालान में लिखा है, ‘पूर्व मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा, उनके ओएसडी रहे ओमप्रकाश शुक्ला, आईजी स्टाम्प इंद्रजीत कुमार जैन, तरंग शर्मा, भरत मिश्रा, मोहन सिंह ठाकुर, सुरेन्द्र सिंह कुमार पटेल और संतोष सिंह उर्फ़ राजा तोमर के ख़िलाफ़ पर्याप्त सबूत नहीं होने की वजह से इनके ख़िलाफ़ चालान पेश नहीं किया जा रहा है।’
सीधे-सीधे देखा जाए तो पूर्व मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा समेत आठों आरोपियों को सीबीआई ने परिवहन आरक्षक भर्ती घोटाले से ‘पाक-साफ़’ घोषित कर दिया है।
जाँच पर खड़े हुए सवाल
सीबीआई ने अपने चालान में एसटीएफ़ की एफ़आईआर पर सवाल खड़ा करते हुए उसके ‘त्रुटिपूर्ण’ होने की तरफ़ भी इशारा किया है। सीबीआई के चालान के बाद एसटीएफ़ और उसकी जाँच से जुड़े बिन्दुओं पर न केवल सवाल खड़े हो गए हैं, बल्कि जानकार कह रहे हैं - ‘यदि एफ़आईआर त्रुटिपूर्ण है तो एसटीएफ़ के अधिकारियों को सीबीआई ने आरोपी बनाए जाने की पहल क्यों नहीं की है?’
ये सवाल भी खड़े किए जा रहे हैं -
- व्यापमं ने 198 परीक्षार्थियों के चयन की अधिसूचना जारी की थी, फिर 332 आरक्षकों का चयन किसके आदेश पर कर लिया गया?
- भर्ती अधिसूचना में संख्या 198 से 332 होने पर सीबीआई आख़िर क्यों खामोश रही?
- एसटीएफ़ की जाँच में जिन 10 परीक्षार्थियों के अस्थायी पते गलते पाए गए वे कौन थे?
- एसटीएफ़ में एफ़आईआर दर्ज़ होने के बाद 17 ‘चयनित’ आरक्षित पद के अभ्यर्थियों ने ज्वाईन न करते हुए एक ही दिनांक में एक साथ त्यागपत्र क्यों दे दिए?
- त्यागपत्र देने वाले 17 अभ्यर्थी आखिर कौन थे?
- परीक्षा परिणामों की प्रावीण्य सूची में आये अभ्यर्थियों को सूचना नहीं दिए जाने के कारण क्या थे?
- महिला आरक्षकों की चयन प्रक्रिया में तय आहर्ताओं के नियम क्यों और किसके आदेश पर बदले गए?
- मामला जब न्यायालय में विचाराधीन हो तब कोई जाँच एजेंसी (सीबीआई पर्याप्त साक्ष्य ना होने की बात कहते हुए) इस तरह की ‘क्लीन चिट’ दे सकती है?
अंतिम कॉलम में लिखे थे नाम
सीबीआई ने अपनी चार्जशीट में ख़ुलासा किया है कि नितिन महिन्द्रा (व्यापमं और आरक्षक भर्ती घोटाले समेत अन्य घपलों के एक बेहद अहम किरदार) के कार्यालय के कम्प्यूटर की हार्ड डिस्क में मौजू़द फ़ाइल के अंतिम कॉलम में कुछ नाम लिखे थे। जैन, टीएआर, सीकेएम, कोन, बीएम, पीआर और एसकेपी। इन उम्मीदवारों को प्रायोजित करने वाले बिचौलियों का संक्षिप्त उल्लेख किया गया था।
जाँच में सामने आया है कि यह संक्षिप्त विवरण 6 कथित बिचौलियों के संबंध में था। इन उम्मीदवारों के अवैध चयन में इंद्रजीत जैन, तरंग शर्मा, सीके मिश्रा, पंकज त्रिवेदी, भरत मिश्रा, प्रदीप रघुवंशी और सुरेंद्र कुमार पटेल शामिल हैं। जाँच में इनके ख़िलाफ़ कोई प्रमाण नहीं मिले।
ओएमआर शीट, डेटा से नहीं हुई छेड़छाड़
सीबीआई को एफ़आईआर में दर्ज़ बिचौलियों की जाँच में पता चला कि मोहन सिंह ठाकुर, संतोष गुप्ता, विक्रम रघुवंशी, संतोष सिंह उर्फ़ राजा तोमर ने उम्मीदवारों की ओएमआर उत्तर पुस्तिकाओं और इलेक्ट्रानिक डेटा में छेड़छाड़ नहीं की। यह भी सामने आया कि पंकज त्रिवेदी और अजय कुमार सेन को पहले ही एसटीएफ़ द्वारा 18 आरोपी उम्मीदवारों के अवैध चयन के मामले में आरोप पत्र सौंपा जा चुका है, जिनके मामले में ओएमआर उत्तर पुस्तिका और इलेक्ट्रानिक डेटा में छेड़छाड़ पाई गई थी। इसलिए उनके ख़िलाफ़ चालान पेश किया जा रहा है।
वरिष्ठ कांग्रेस नेता के.के. मिश्रा ने कहा कि कांग्रेस अपने आरोपों पर कायम है। हमारी सरकार नए सिरे से परिवहन आरक्षक भर्ती घोटाले की जाँच करवाकर दोषियों को बेनकाब करेगी।
फ़ाइनल चार्जशीट, औपचारिकताएँ शेष
शनिवार को सीबीआई ने परिवहन भर्ती आरक्षक घोटाले से जुड़ी अपनी फ़ाइनल चार्जशीट अदालत में पेश की है। मामले में अब अदालत को संज्ञान लेना है। भोपाल जिला बार एसोसिएशन के पूर्व वरिष्ठ कार्यकारिणी सदस्य और वरिष्ठ क्रिमिनल केस लॉयर ललित मीठवानी ने ‘सत्य हिंदी’ से कहा, ‘चार्जशीट में सीबीआई ने मुख्य आरोपी शर्मा समेत आठ आरोपियों को जिस तरह से संदेह का लाभ दिया है, उसके बाद इन सभी आरोपियों के न्यायालय से बरी होने की औपचारिकताएँ भर शेष बची हैं।’
कह दो, नहीं हुआ घोटाला
लंबे समय से व्यापमं और परिवहन आरक्षक भर्ती घोटाले की लड़ाई लड़ रहे मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी के वरिष्ठ नेता और अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सदस्य के.के. मिश्रा ने परिवहन घोटाले में शर्मा और अन्य आरोपियों को ‘क्लीन चिट’ दिए जाने पर कटाक्ष करते हुए ‘सत्य हिंदी’ से कहा, ‘सीबीआई को कह देना चाहिए कि व्यापमं घोटाला हुआ ही नहीं है।’
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सीबीआई को यही करना था!
के. के. मिश्रा ने लक्ष्मीकांत शर्मा को क्लीन चिट मिलने के बाद ‘सत्य हिंदी’ से बातचीत में यह भी कटाक्ष किया कि, ‘देश के गृहमंत्री राजनाथ सिंह के साथ जब मुख्य आरोपी घूमेगा तब सीबीआई से ऐसी ही (मुख्य आरोपी को छोड़ देने की) अपेक्षा होगी।’
फ़र्ज़ी निकले थे गोंदिया के पते
के. के. मिश्रा ने आरक्षक भर्ती घोटाले के तार गोंदिया से जुड़े होने का पुन: उल्लेख करते हुए कहा, एसटीएफ़ के मामला दर्ज़ किए जाने के बाद जिन आरक्षक अभ्यर्थियों ने चयन के बाद एक ही दिन में इस्तीफ़े दे दिए थे, उनमें से अधिकांश के अस्थायी पते गोंदिया के दिए गए थे। जांच में हरेक पता फ़र्ज़ी निकला था। मिश्रा ने कहा, ‘मुझे यह बताने की आवश्यकता नहीं है कि गोंदिया, मध्य प्रदेश में 13 सालों तक राज करने वाले शिवराज के किस निकटस्थ नातेदार का ठिकाना था।’
शिवराज ने किया था केस
यहाँ उल्लेखनीय है कि मिश्रा इस पूरे मामले को पहले भी उठाते रहे हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने उन्हें, उनके रिश्तेदारों और सरकार को बदनाम करने का आरोप लगाते हुए मिश्रा पर मानहानि का केस किया था। यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक गया था।
सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल मामले को इस आदेश के साथ खारिज किया था, ‘सरकार या मुख्यमंत्री की मानहानि जैसा इसमें कुछ नहीं है, व्यक्तिगत मानहानि का मामला बनता है। शिवराज चाहें तो व्यक्तिगत मानहानि का केस लगाएँ।’ सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद शिवराज सिंह चौहान ने मिश्रा के ख़िलाफ़ व्यक्तिगत तौर पर मानहानि का मुक़दमा लगाया है जो अभी कोर्ट में विचाराधीन है।
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