मध्य प्रदेश के बहुचर्चित व्यावसायिक परीक्षा मंडल (व्यापमं) घोटाले के आरोपी और इस पूरे कांड के सबसे ‘बड़े राजदार’ प्रदेश के पूर्व मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा (60 वर्ष) का सोमवार रात निधन हो गया। वे कोरोना से पीड़ित थे। शर्मा बीजेपी से निष्कासित थे।
शिवराज सरकार में मंत्री रहते हुए लक्ष्मीकांत शर्मा साल 2013 में भारतीय मीडिया की जमकर सुर्खियों में रहे थे। व्यापमं घोटाले के मुख्य आरोपियों में उनका नाम आया था।
व्यापमं घोटाले की परतें तो पहले ही खुलने लगीं थीं, लेकिन यह पूरा मामला लक्ष्मीकांत शर्मा का नाम प्रमुख आरोपियों की सूची में आने और उनकी गिरफ्तारी के बाद जमकर सुर्खियों में रहा था।
लक्ष्मीकांत शर्मा के निधन के बाद वे लोग खासे निराश बताये जा रहे हैं जो उम्मीद कर रहे थे कि बेहद चर्चित इस घोटाले के ‘कथित असली एवं अहम किरदारों’ को शर्मा देर-सबेर जरूर बेनकाब करेंगे।
बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता ने नाम ना छापने की शर्त पर कहा, ‘शर्मा की मृत्यु के साथ ही इस महाघोटाले से जुड़े अनेक बेहद अहम रहस्य दफ़न हो गये! शायद शर्मा अपना मुंह खोल देते...यह उम्मीद उनके निधन के बाद अब पूरी तरह से खत्म हो गई।’
राजनीतिक विश्लेषक और मध्य प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार राकेश दीक्षित भी वही बात कह रहे हैं जो बीजेपी नेता ने ऑफ़ द रिकॉर्ड कही। दीक्षित ने ‘सत्य हिन्दी’ से कहा, ‘लक्ष्मीकांत शर्मा जब जेल में थे और उन्हें इस मुद्दे पर कुरेदा जाता था तो वह यही कहते थे, मैंने मुंह खोल दिया तो सरकार (शिवराज की अगुवाई में बीजेपी सत्ता में थी) गिर जायेगी। राजनीतिक भूचाल आ जायेगा।’
कभी मुंह नहीं खोला
लक्ष्मीकांत शर्मा ने संकेतों में सब कहा लेकिन ‘असली नामों’ को लेकर कभी अपना मुंह नहीं खोला। वे जेल से छूटकर सक्रिय राजनीति से स्वयं दूर हो गये। पार्टी में वापसी के अथक प्रयास उन्होंने और उनके चाहने वालों ने गुपचुप ढंग से खूब किये, लेकिन पार्टी में वापसी नहीं हो पायी।
नहीं मिला टिकट
मध्य प्रदेश विधानसभा के साल 2018 के चुनाव में उनकी पार्टी में वापसी और सिरोंज से उम्मीदवार बनाये जाने की चर्चाएं खूब चलीं। इस चुनाव के दरमियान शर्मा ने खूब दबाव बनाया, लेकिन वे स्वयं की वापसी और टिकट संबंधी जुगतबाजी में सफल नहीं हो सके।
इतना जरूर हुआ कि बीजेपी को उनके भाई को सिरोंज से टिकट देना पड़ा। हालांकि लक्ष्मीकांत के भाई चुनाव नहीं जीत पाये। इस सीट को कांग्रेस ने जीत लिया। चुनाव में तमाम मुद्दों के अलावा व्यापमं ही सिरोंज सीट का मुख्य मुद्दा रहा।
कई बड़े नाम आये
व्यापमं घोटाले में आरएसएस के बड़े नेता और लक्ष्मीकांत के खैरख्वाहों में शुमार किये जाने वाले सुरेश सोनी का नाम आया। संघ के कुछ और नेताओं के नाम उछले। मध्य प्रदेश के राज्यपाल रहे रामनरेश यादव और उनके बेटे के खिलाफ व्यापमं गड़बड़ी में शामिल होने के सबूत भी मिले, खूब हंगामा और राजनीति हुई। बाद में यादव के बेटे का सुसाइड भी सुर्खियों में रहा।
उमा भारती का नाम
प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री और बीजेपी की वरिष्ठ नेता उमा भारती का नाम भी व्यापमं घोटाले से जुड़ा। उमा भारती ने व्यापमं में नाम आने को अपने जीवन का सबसे दुःखद क्षण बताया। उन्होंने कहा, ‘व्यापमं में नाम आने के पहले वह पूरे जीवनकाल में सबसे ज्यादा दो बार तब दुःखी हुईं जब मां और बाद में भाभी का निधन हुआ।’
साधना सिंह का भी नाम
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की पत्नी साधना सिंह के नाम को भी घसीटा गया। लक्ष्मीकांत शर्मा के सिपाहसालार और व्यापमं घोटाले के अन्य आरोपी एवं खनिज कारोबारी सुधीर शर्मा को कथित तौर पर साधना सिंह द्वारा भर्तियों के लिए भेजे गये एसएमएस संदेशों को पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने वायरल किया। इस पर खूब बवाल हुआ।
बाद में जांच में साधना सिंह समेत अनेक बड़े नामों को क्लीन चिट दी गई।
सुर्खियों में रहीं मौतें
घोटाले से जुड़े कई संदिग्धों की जांच के दौरान कथित तौर पर संदिग्ध परिस्थितियों में मृत्यु हो गई। विपक्षी दलों ने इस मुद्दे को उठाया। विशेष कार्य बल (एसटीएफ) ने साल 2015 में घोटाले से जुड़े लोगों की मृत्यु को अप्राकृतिक मानते हुए 23 मृतकों की सूची उच्च न्यायालय में प्रस्तुत की और बताया कि अधिकाँश की मृत्यु जुलाई 2013 को कार्यबल के गठन से पूर्व हो गयी थी। कुछ मीडिया रिपोर्ट्स का दावा है कि घोटाले से जुड़े 40 से अधिक लोगों को रहस्यमय परिस्थितियों में मृत्यु हुई है।
बयानबाजी तक रहा सीमित
विधानसभा के साल 2018 के चुनाव के वक्त कांग्रेस ने व्यापमं घोटाले को खूब उछाला। कमल नाथ की सरकार बनी तो भी मामला दावों तक ही सीमित रहा। नाथ सरकार इस दिशा में कुछ ठोस एक्शन नहीं ले पायी। पन्द्रह महीनों बाद नाथ सरकार चली गई।
शिवराज की अगुवाई में पुनः बीजेपी सत्ता में आ गयी। कुल मिलाकर इस मुद्दे का उपयोग राजनीतिक बयानबाजी तक ही सीमित बना रहा या यह भी कह सकते हैं - बना हुआ है।
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