मध्य प्रदेश के 89 परिवारों को कांग्रेस नेता राहुल गांधी के ‘दरबार’ में भी ‘न्याय’ नहीं मिल पाया! अनेक परिवार आज भी कोर्ट से न्याय की उम्मीद लगाये हुए हैं। कानूनी लड़ाई लड़ते-लड़ते कई लोग दुनिया से जा चुके हैं, जबकि अनेक याचिकाकर्ता बूढ़े हो गये हैं। लंबी लड़ाई लड़ते-लड़ते कई लोग आर्थिक तौर पर बदहाल हो चुके हैं। थक गये हैं। हार मान बैठे हैं।
यह मामला कांग्रेस के मुखपत्र रहे नवजीवन से जुड़ा है। एसोसिएट जनरल लिमिटेड (एजेएल) भोपाल से भी नवजीवन समाचार पत्र का प्रकाशन किया करता था। वर्ष 1992 में अचानक इसे बंद कर दिया गया था। बड़ी संख्या में लोग बेरोजगार हो गये थे।
भोपाल संस्करण में काम करने वाले 89 कर्मचारी एजेएल के फैसले के खिलाफ पहले श्रम न्यायालय और बाद में सिविल कोर्ट की शरण में गये थे। बछावत वेतनमान के अनुसार बकाया वेतन-भत्ते और अनायास तालाबंदी से जुड़े नियमों के अनुसार अन्य भुगतान की मांग को लेकर परिवाद दायर किये गये थे।
एजेएल ने भोपाल के अलावा देश के अन्य सूबों में निकलने वाले अपने प्रकाशनों को सिलसिलेवार बंद किया था। भोपाल में प्रेस कॉम्प्लेक्स में 1 एकड़ 14 डेसिमल जमीन पर चलने वाले अखबार को बंद कर जमीन को खुर्द-बुर्द करने का सिलसिला आरंभ हुआ था।
कर्मचारियों ने किया विरोध
भोपाल प्रेस कॉम्प्लेक्स की अखबार की जमीन पर आलीशान कॉम्प्लेक्स बनाने का, समाचार पत्र बंद होने से बेरोजगार हो गये कर्मचारियों ने विरोध किया था। धरने-प्रदर्शन हुए थे। हंगामा तब तेज हुआ था, जब अखबार के प्रकाशन के लिये यहां लगी एंटीक (महात्मा गांधी द्वारा उपयोग की गई) प्रिटिंग मशीन रहस्यमय ढंग से ‘गायब’ हुई थी।
मशीन चोरी की भोपाल पुलिस में रिपोर्ट लिखवाई गई थी। एजेएल के चेयरपर्सन और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मोतीलाल वोरा स्वयं मामले की पड़ताल के लिये भोपाल आये थे। कर्मचारियों ने उनसे मुलाकात कर अखबार का प्रकाशन बंद करने पर आक्रोश जताया था। इसके पुनः प्रकाशन का आग्रह भी किया गया था।
नवजीवन में 1990 से 1992 तक सहायक संपादक पद पर सेवाएं देने वाले संजय चतुर्वेदी ने ‘सत्य हिन्दी’ को बताया, ‘वे स्वयं वोरा जी से मिले थे। अखबार बंद होने से बेरोजगार और बदहाल हुए कर्मचारियों तथा उनके परिवारों की व्यथा-कथा से अवगत कराया था। वोरा जी ने आश्वस्त किया था, कर्मचारियों की पाई-पाई के बकाया का भुगतान किया जायेगा।’
चतुर्वेदी के अनुसार वे और उन जैसे अन्य बेरोजगार साथी एजेएल से लगातार खतो-खिताबत करते रहे। उन नेताओं जिनका सोनिया-राहुल से सीधा जुड़ाव था, मिलते रहे। कोई हल नहीं निकला।
संजय चतुर्वेदी आगे बताते हैं, ‘साल 2010 में राहुल गांधी भोपाल आये थे। पलाश होटल में प्रेस कांफ्रेंस हुई थी। प्रेस कांफ्रेंस के बाद तीन पेज का एक शिकायती पत्र उन्होंने अपने हाथों से राहुल गांधी को सौंपा था। नवजीवन अखबार का भोपाल संस्करण बंद होने के बाद बेरोजगार हुए कर्मचारियों की दुर्गति और आर्थिक तंगी का ब्यौरा इस पत्र में दिया गया था। न्याय की गुहार लगाई गई थी। राहुल गांधी ने भी भरोसा दिया था, कर्मचारियों को इंसाफ़ दिलायेंगे।’
बकौल संजय चतुर्वेदी अखबार को बंद हुए 30 साल पूरे हो गये हैं। तालाबंदी से बेरोजगार हुए 89 लोगों में अनेक लोग अब इस दुनिया में नहीं हैं। तीन दर्जन के आसपास लोग भर बचे हैं। लंबी कानूनी लड़ाई लड़ते-लड़ते इनमें से भी कईयों ने घुटने टेक दिये हैं। अब बहुत से साथी न तो कोर्ट आते हैं और ना ही कानूनी लड़ाई के लिये पैसा लगा पाते हैं।
वे बताते हैं, ‘हम सात-आठ कर्मचारी भर हैं, जो लड़ रहे हैं। इनमें भी कानूनी लड़ाई पर व्यय होने वाला पैसा दो-तीन कर्मचारी ही स्वयं और बच्चों का पेट काटकर अपनी जेबों से लगा रहे हैं।’
संजय कहते हैं, ‘अवसर मिलने पर हर दरवाजा बजाते हैं। भोपाल में कोर्ट-कचहरी के अलावा दिल्ली के उन्होंने पचासों चक्कर लगाये हैं। आज भी लगा रहे हैं। एजेएल के कर्ताधर्ताओं के अलावा कांग्रेस के अनेक बड़े नेताओं से मेल-मुलाकातों का सिलसिला भी बदस्तूर जारी है। मगर उम्मीद की किरण कहीं भी नज़र नहीं आ रही है।’
वे आगे कहते हैं, ‘मैंने हार नहीं मानी है। ना ही मानूंगा। मरते दम तक हक की लड़ाई लड़ूंगा। देर हो रही है, लेकिन उम्मीद है - न्याय अवश्य मिलेगा।’
‘...हमें हमारा भुगतान करा दें बस’
संजय चतुर्वेदी कहते हैं, ‘एजेएल को 1981 में नवजीवन के प्रकाशन के लिए भोपाल में अलॉट की गई जमीन और उस पर खड़े किये गये भव्य कॉम्प्लेक्स को चाहे बीडीए ले ले, अथवा सरकार राजसात कर ले या फिर जिन्होंने यहां टुकड़ों-टुकड़ों में प्रॉपर्टी खरीदी है, कानूनी/आर्थिक कार्रवाईयों को पूरा कर संपत्तियां विधिवत उन्हें सौंप दी जाये या फिर पुनः एजेएल को दे दी जाये।’
वे कहते हैं, ‘हमें इस बात में कोई दिलचस्पी नहीं कि आज खुले बाजार में 150 करोड़ रुपये कीमत वाली एजेएल की यह जमीन और इस पर बने कॉम्प्लेक्स को किसे दिया जाता है! हमें तो मतलब, महज और महज अपने बकाया के भुगतान भर से है।’
वे आगे जोड़ते हैं, ‘जो भी इस जमीन-भवन को ले, वह न्याय की आस लगाये बैठे हमारे साथियों के समूचे बकाये का भुगतान कर दे, बस।’
‘ब्याज सहित 3 करोड़ के करीब बकाया है’
संजय चतुर्वेदी दावा करते हैं, ‘कर्मचारियों की बकाया राशि ब्याज मिलाकर आज तीन करोड़ के लगभग हो चुकी है।’ वे बताते हैं, 8 वर्ष पहले कानूनी तौर पर 1.75 करोड़ रूपयों के लगभग के मुआवजे का दावा हमने श्रम न्यायालय में ठोका था। यह मुआवजा दावा अब रिवाइज होना है। आठ साल की अवधि में ब्याज के साथ राशि 3 करोड़ के करीब पहुंच गई है, संजय जोड़ते हैं।’
‘कोर्ट के फैसले का इंतजार है’
भोपाल विकास प्राधिकरण के मुख्य कार्यपालन अधिकारी बुद्धेश वैद्य का कहना है, ‘भोपाल विकास प्राधिकरण एजेएल की लीज निरस्त कर चुका है। प्रॉपर्टी का उसे कब्जा लेना है। मामला कोर्ट में है। कोर्ट के फैसले का इंतजार प्राधिकरण कर रहा है। निर्णय के बाद वह आगे की कार्रवाई करेगा।’
बता दें, नेशनल हेराल्ड मामले की देशव्यापी गूंज के बीच नेशनल हेराल्ड की भोपाल और इंदौर की परिसंपत्तियों को खुर्द-बुर्द किये जाने से जुड़ी फाइल खुलवाने की घोषणा पिछले सप्ताह शिवराज सरकार ने की है। वरिष्ठ आईएएस से मामले की जांच कराने का एलान किया गया है।
कहा गया है, ‘एक महीने में रिपोर्ट मंगाकर दोषी पाये जाने वालों के खिलाफ कार्रवाई की जायेगी।’
‘राहुल की संपत्ति 15 करोड़ के ऊपर पहुंची’
भोपाल में बीते 30 सालों से अपने हक और पैसों के लिये नवजीवन अखबार के कर्मचारी एड़िया रगड़ रहे हैं, उधर नेताओं की संपत्ति निरंतर बढ़ती जा रही है। साल 2019 के लोकसभा चुनाव में वायनाड में संपत्ति संबंधी राहुल गांधी के हलफनामे में सामने आया था, उनकी संपत्ति बीते पांच सालों (2014 से 2019 के बीच) 68.93 प्रतिशत बढ़ी है। उनके पास 15.88 करोड़ रुपये से ज्यादा की चल-अचल संपत्ति हो गई है। राहुल के पास 5.8 करोड़ रुपये की चल और 9.2 करोड़ रुपये की अचल संपत्ति है।
राहुल गांधी ने 2014 के चुनावों में अपनी 9.40 करोड़ रुपये की कुल संपत्ति की घोषणा की थी। (जारी)।
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