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नेशनल हेराल्ड: 4200 करोड़ की जमीन ‘मुफ्त’ चाहते हैं मीडिया हाउसेस!

मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल एवं व्यावसायिक नगरी इंदौर के प्रेस कॉम्प्लेक्स में तत्कालीन सरकार द्वारा कौड़ियों के दाम अलॉट की गई जमीन को मीडिया हाउसेस और प्रेस मालिक एक बार फिर ‘मुफ्त’ के भाव चाहते हैं! जमीन की ‘लड़ाई लड़ रहे’ अखबार मालिकों की दलीलें और प्रयास साफ संकेत देते हैं कि भोपाल एवं इंदौर विकास प्राधिकरण द्वारा लगाई गई व्यावसायिक दरें, वे नहीं देने वाले हैं!

नेशनल हेराल्ड की भोपाल और इंदौर प्रेस कॉम्प्लेक्स की जमीनों की फाइलें खोलने का निर्णय मध्य प्रदेश सरकार ने लिया है। इस निर्णय के बाद दोनों प्रेस कॉम्प्लेक्सों में विभिन्न मीडिया हाउसेस को आवंटित की गई, जमीनों का मसला भी एक बार पुनः सुर्खियों में है। 

ज्यादातर मीडिया हाउसेस और अखबार मालिकों ने जमीन आवंटन की शर्तों का पालन नहीं किया है। मीडिया हाउसेस/अखबार मालिक जमीन का कॉमर्शियल उपयोग कर रहे हैं।

लीज निरस्तीकरण के साथ लीज के नियमितीकरण के लिये मौजूदा कलेक्टर गाइड लाइन से व्यावसायिक दरें चुकाने के नोटिस सभी को दिये गये हैं। 

सुप्रीम कोर्ट ने एक आदेश भी पारित किया था। उसी के आधार पर इंदौर में कार्रवाई हुई। बाद में भोपाल प्रेस कॉम्प्लेक्स की जमीन के मसले पर भी इसे लागू किया गया। लीज निरस्त होने के बाद से मीडिया हाउसेस/अखबार मालिक इस उधेड़बुन में जुटे हुए हैं कि जमीन आवंटन वर्ष वाली व्यावसायिक दर के हिसाब से सरकार मामले का ‘सेटलमेंट’ कर दे।

अर्जुन सिंह सरकार ने दी थी जमीन

बता दें, अर्जुन सिंह सरकार में 1981 में भोपाल प्रेस कॉम्प्लेक्स विकसित हुआ था। भोपाल विकास प्राधिकरण ने 39 मीडिया हाउसेस को 27.22 एकड़ जमीन अलॉट की थी। एक लाख रुपये प्रति एकड़ की दर से अलॉट की गई इस जमीन के अनेक सौदे खुले बाजार में 20 से 35 हजार रुपये प्रति स्क्वायर फीट की दर से हुए हैं। आज भी हो रहे हैं। भोपाल प्रेस कॉम्प्लेक्स की जमीन की कलेक्टर गाइड लाइन 8 हजार से लेकर 14 हजार रुपये प्रति स्क्वायर फीट है।

उधर, इंदौर प्रेस कॉम्प्लेक्स में आगरा-बॉम्बे रोड पर 19.12 एकड़ जमीन पर 24 भूखंड विकसित किये गए थे। अर्जुन सिंह सरकार में ही इंदौर प्रेस कॉम्प्लेक्स अस्तित्व में आया था। अलग-अलग आकार वाले भूखंड 2.95 रुपये से लेकर 7.71 रुपये प्रति स्क्वायर फीट की दर से अखबार मालिकों को आवंटित किये गये थे। इस जमीन का आज खुले बाजार में दाम 30 से 50 हजार रुपये प्रति स्क्वायर फीट बताया जा रहा है। 

इंदौर प्रेस कॉम्प्लेक्स की जमीन की कलेक्टर गाइड लाइन 12 हजार से लेकर 19 हजार 800 रुपये प्रति वर्ग मीटर है। 

National Herald Bhopal and Indore office Complex issue - Satya Hindi

अदालत में हैं मामले

अखबार का काम व्यावसायिक होने की दलील देकर इंदौर प्रेस कॉम्प्लेक्स के आवंटन को चुनौती देने वाली एक जनहित याचिका लगी थी। सुप्रीम कोर्ट का निर्णय आया था। निर्णय के बाद इंदौर विकास प्राधिकरण ने वर्ष 2006 में सभी भूखंडों के आवंटन निरस्त कर दिये थे। इनके नियमितीकरण के लिये व्यावसायिक दरों से भुगतान के नोटिस दिये गये थे। एक-दो को छोड़कर सेटलमेंट में किसी ने भी दिलचस्पी नहीं दिखाई थी। आईडीए ने 5 भूखंडों की लीज निरस्त करते हुए एकतरफा कब्जा लेने की कार्रवाई भी कर दी थी। सभी मामले आज कोर्ट में हैं। 

दरअसल, भोपाल और इंदौर के प्रेस कॉम्प्लेक्स अनेक मीडिया हाउसेस मल्टी स्टोरी फ्लैट्स, शॉपिंग मॉल और ऑफिस स्पेस बनाकर बेच चुके हैं। अनेक अखबार मालिकों की जमीनों पर बने भव्य भवन किराये पर भी चल रहे हैं। नेशनल हेराल्ड को भोपाल प्रेस कॉम्प्लेक्स में मिली एक एकड़ 14 डेसिमल जमीन से जुड़ा मसला भी कुछ ऐसा ही है। 

निजी बिल्डरों के जरिये भूमि पर कॉम्प्लेक्स और ऑफिस स्पेस बनाकर एजेएल (नेशनल हेराल्ड) बेच चुका है। 

निरस्त की लीज 

इंदौर प्रेस कॉम्प्लेक्स में प्रेस मालिकों को रियायती दरों पर जमीन आवंटन को अनुचित करार दिये जाने संबंधी सुप्रीम कोर्ट के निर्णय से पहले, 2003 में बीडीए के चेयरमेन ध्रुव नारायण सिंह (उमा भारती की सरकार थी) ‘बर्र के छत्ते’ में हाथ डाल चुके थे। उन्होंने लीज नहीं भरने और लीज की शर्तों के उल्लंघन के आरोप में भोपाल प्रेस कॉम्प्लेक्स के सभी 39 भूखंडों की लीज निरस्त कर दी थी।

मध्य प्रदेश के चर्चित मुख्यमंत्रियों में शुमार रहे स्वर्गीय गोविंद नारायण सिंह के पुत्र ध्रुव नारायण ने बतौर बीडीए अध्यक्ष सभी प्रेस मालिकों और मीडिया हाउसेस को बाजार दर से कीमतें चुकाने के नोटिस भी दे डाले थे। जमकर हड़कंप मचा था।

भोपाल विकास प्राधिकरण की कार्रवाई के बाद देश के एक बड़े पत्र समूह में शुमार मीडिया हाउस ने कॉमर्शियल रेट चुकाकर अपना प्लॉट बचाया था। अन्य मालिकान अपने-अपने स्तर पर जमीन बचाने की जुगत में लग गये थे। 

प्रयास सफल नहीं होने पर ‘प्रेस कॉम्प्लेक्स समाचार पत्र संघ भोपाल’ का गठन हुआ था। स्वदेश पत्र समूह के मुखिया राजेन्द्र शर्मा चेयरपर्सन बनाये गये थे। सरकार के नजदीकी माने जाने वाले शर्मा की अगुवाई में मामला उमा भारती और उनके बाद सीएम बने बाबूलाल गौर (अब जीवित नहीं हैं) के दरबार में ले जाया गया था। बात बनने के पहले गौर भी सीएम पद से हट गये थे।

शिवराज सिंह के सीएम बनाये जाने पर भोपाल प्रेस कॉम्प्लेक्स समाचार पत्र संघ, सतत मेल-मुलाकातें कर मामले को सुलझाने की मशक्कत करता रहा था। 

2010 में कैबिनेट के लिये प्रारूप बना था

शिवराज सिंह ने मामले को सुलझाने का गंभीर प्रयास किया था। वर्ष 2010 में मामला कैबिनेट में ले जाये जाने के लिये एक प्रारूप बना था। इस प्रारूप में प्रेस कॉम्प्लेक्स की जमीन को नये सिरे से आवंटित करने हेतु चार बिन्दुओं वाले फ़ॉर्मूले का प्रस्ताव बना था। कैबिनेट के लिये बनी संक्षेपिका में प्रस्तावित बिंदु कुछ इस तरह थे:- 

  1. भूमि आवंटन के बाद लंबे वक्त में जो भी मीडिया हाउस अलॉट जमीन पर निर्माण नहीं कर पाये हैं, उनसे जमीन वापस ले ली जाये।
  2. जमीन की लीज शर्तों का जिन्होंने खुला उल्लंघन किया है, उनसे व्यावसायिक दर से जमीन की कीमत और ब्याज वसूल कर कामर्शियल उपयोग के लिये लीज को नियमित कर दिया जाये।
  3. जिन मीडिया हाउसेस ने जमीन के कुछ हिस्से का व्यावसायिक उपयोग किया है और शेष पर प्रेस चला रहे हैं, ऐसे अखबार मालिकों/मीडिया हाउसेस से जमीन के उपयोग के अनुसार व्यावसायिक एवं सामान्य दर ब्याज के साथ वसूल कर लीज का नियमितीकरण कर दिया जाये। 
  4. जो अखबार मालिक जमीन पर महज और महज प्रेस भर चला रहे हैं, ऐसे मीडिया हाउसेस/अखबार मालिकों को पूर्व की दरों के अनुसार आगे भी लीज नियमित कर दी जाये।
बताते हैं, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह आसान किश्तों और न्यूनतम ब्याज लेकर आवंटन को नियमित करने का मन बना चुके थे, लेकिन अचानक मामला थम गया था!

सरकार ने पीछे खींचे कदम 

एक अखबार के मालिक ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया, कई विभागों की भूमिका/भागीदारी भोपाल प्रेस कॉम्प्लेक्स की जमीन के आवंटन और उसे विकसित करने में थी, एक महकमे के अफसर ने सीएम शिवराज सिंह के कान में फूंक दिया था, ‘मसला गंभीर है। प्रस्तावित चार बिन्दुओं के आधार पर कोई निर्णय लिया गया तो लोकायुक्त, ईओडब्ल्यू और कोर्ट-कचहरी से रूबरू होने की संभावनाएं बनेंगी! उंगलियां उठेंगी! जवाब देना मुश्किल भी हो सकता है?’

अखबार मालिक आगे बताते हैं, अफसर से मिले ‘ज्ञान’ के बाद सरकार ने कदम पीछे खींच लिये थे। हालांकि हमने हार नहीं मानी है। प्रयास करते रहे। आज भी कर रहे हैं। दुर्भाग्यवश हल नहीं निकल पा रहा है।’

सवालों के जवाब में उन्होंने बताया, ‘साल 2003 में 28 हजार स्क्वायर फीट भूमि के लिये 9 करोड़ रुपये चुकाने का नोटिस बीडीए ने दिया था। चक्रवृद्धि ब्याज मिलाकर यह राशि आज 40-45 करोड़ के आसपास हो चुकी होगी। विशुद्ध अखबार चलाते हैं, लिहाजा 9 करोड़ ही भारी था तो 45 करोड़ में जमीन लेने के बारे में सपने में भी नहीं सोच सकते हैं!’

‘सत्य हिन्दी’ ने अपनी पड़ताल में पाया है कि भोपाल में कुल 39 मीडिया हाउसेस/अखबार मालिकों में एक दर्जन के करीब जमीन पाने वाले सचमुच ऐसे मालिकान हैं, जो उन्हें आवंटित जमीन पर आज भी सिर्फ और सिर्फ प्रेस से जुड़ी गतिविधियों का ही संचालन कर रहे हैं। ऐसे अखबार मालिकों के लिये करोड़ों का भुगतान सचमुच किसी भी सूरत में संभव नहीं है।

उधर, कौड़ियों के मोल मिली जमीन से जो मीडिया हाउसेस चांदी काट चुके हैं अथवा पूरे-पूरे भवन का कॉमर्शियल उपयोग कर रहे हैं, वे मामले को सुलझाने या सुलझवाने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखा रहे हैं। प्रेस कॉम्प्लेक्स समाचार पत्र संघ भोपाल की बैठकों में भी वे नहीं आते हैं।

प्रेस कॉम्प्लेक्स समाचार पत्र संघ के संयोजक और मध्य प्रदेश के विश्वसनीय पुराने समाचार पत्र देशबंधु अखबार के मालिक पलाश सुरजन ने ‘सत्य हिन्दी’ से कहा, ‘भोपाल विकास प्राधिकरण का एकतरफा लीज निरस्त करने का निर्णय पूरी तरह से अनुचित था। सभी अखबारों की लीज 30-30 साल के लिये थी। सुनिश्चित अवधि के पहले लीज निरस्त करते हुए व्यावसायिक दर से नोटिस देकर मामले को उलझाया गया।’

वे आगे कहते हैं, ‘सुप्रीम कोर्ट के जिस निर्णय के तहत हम पर बाजार दर लगाई गई, वस्तुतः वह इंदौर प्रेस कॉम्प्लेक्स के लिये था।’

सुरजन तर्क देते हुए कहते हैं, ‘भोपाल में जमीन सरकार ने अलॉट की थी। जब अलॉट की गई थी तो यह अविकसित थी। इसे हम प्रेस मालिकों ने विकसित किया। इंदौर प्रेस कॉम्प्लेक्स को इंदौर विकास प्राधिकरण ने विकसित भूमि पर आकार दिया था। दोनों मामलों के फर्क को स्थापित करने के लिये ही हम सरकार से बार-बार मिल रहे हैं। मामले के निराकरण का अनुरोध कर रहे हैं।’

पलाश सुरजन यह भी कहते हैं, ‘यह बात सरासर गलत है कि प्रेस मालिकों को रियायती दर पर सरकार ने जमीन दी। जो दरें उस वक्त थीं, उसी पर हमें जमीन मिली।’  उन्होंने कहा, ‘आज की कलेक्टर गाइड लाइन से व्यावसायिक दर की वसूली इसलिये भी अनुचित है क्योंकि यदि इतने ऊंचे दामों पर ही जमीन हमें लेनी होती तो हम उसी वक्त औद्योगिक क्षेत्र में जमीन लेते। लॉस ऑफ अपार्च्युनिटी, हम क्यों सहें?’

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प्रेस कॉम्प्लेक्स समाचार पत्र संघ भोपाल के चेयरपर्सन राजेन्द्र शर्मा ने भी ‘सत्य हिन्दी’ के साथ बातचीत में वही बातें कहीं जो पलाश सुरजन ने कही हैं। उन्होंने भी कहा, ‘भोपाल विकास प्राधिकरण का निर्णय अव्यावहारिक था।’ 

शर्मा ने बताया, ‘मुख्यमंत्री रहे कमल नाथ जी से आखिरी बार इस मसले पर बातचीत हुई थी। उन्होंने आश्वस्त किया था शीघ्र मसले का हल निकालेंगे। मामला अंजाम तक पहुंचता इसके पहले नाथ की सरकार चली गई।’

शर्मा कहते हैं, ‘हमने बीते 19 सालों में हर सरकार से यही अनुरोध किया है, व्यावसायिक दरों पर जमीन की लीज का नवीनीकरण करना अपरिहार्य ही हो तो आवंटन वर्ष वाली बाजार दर और उस पर साधारण ब्याज लगाकर मामले का निराकरण कर राहत प्रदान कर दी जाये।’

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फैसले को सही ठहराया 

बीडीए के तत्कालीन अध्यक्ष ध्रुव नारायण सिंह ने ‘सत्य हिन्दी’ से कहा, ‘बीडीए अध्यक्ष की हैसियत से 2003 का उनका फैसला पूरी तरह से सही था। अखबार घाटे का धंधा नहीं है। यह सेवकार्य भी नहीं है। विशुद्ध व्यावसायिक कार्य है। हमारी सोच और नोटिस के अनुसार बाद में सुप्रीम कोर्ट का निर्णय आया। जिससे हमारी कार्रवाई को और बल मिला।’

वे कहते हैं, ‘जब उन्होंने प्राधिकरण के अध्यक्ष पद का दायित्व संभाला था, तब प्राधिकरण में 1 तारीख को तनख्वाह बंटना मुश्किल होता था। प्राधिकरण का खजाना पूरी तरह से खाली था। सख्ती की तो पैसा आया। आर्थिक बदहाली को दूर करने वाली अनेक परियोजनाएं आरंभ हुईं। पैसा आया तो वक्त पर वेतन बंटने लगा। प्राधिकरण उड़ान भरने लगा। आर्थिक सुदृढ़ता आयी। पीपीपी मोड में भोपाल को अनेक महती योजनाएं दीं। पूरा कीं। पीछे मुड़कर नहीं देखना पड़ा।’

ध्रुव नारायण का कहना है, ‘प्रेस कॉम्प्लेक्स की लीज निरस्ती के अपने पुराने फैसले को लेकर किसी भी मीडिया हाउस और मालिक से खुले मंच पर चर्चा के लिये आज भी वे तैयार हैं। आ जायें, वह साबित कर देंगे उनका फैसला गलत नहीं था।’

भोपाल विकास प्राधिकरण के मुख्य कार्यपालन अधिकारी बुद्धेश वैद्य और इंदौर विकास प्राधिकरण के सीईओ रामप्रकाश अग्रवाल कहते हैं, ‘कई मामले कोर्ट में हैं, फाइनल डिसीजन आने के बाद आगे की कार्रवाइयां की जायेंगी।’

इधर, ‘सत्य हिन्दी’ ने पलाश सुरजन से पूछा, ‘भोपाल प्रेस कॉम्प्लेक्स में जमीन प्राप्त करने वाले  मालिक और मीडिया हाउसेस जमीन आवंटन वाले साल की व्यावसायिक दर और साधारण ब्याज पर आज जमीन का नियमितीकरण चाहते हैं, सरकार इसी हिसाब से मुआवजा देकर जमीन वापस लेना चाहे तो आप और अन्य प्रेस मालिक जमीनें लौटायेंगे? सुरजन मुसकुराते हुए जवाब देते हैं, ‘नहीं!’ (समाप्त)।

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संजीव श्रीवास्तव
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