कर्मचारियों को तनख्वाह बांटने के लाले पड़ने पर भी नेशनल हेराल्ड ने भोपाल में एक चर्चित कारोबारी को अपनी बेशकीमती संपत्तियां ‘दान’ में क्यों दीं? क्यों औने-पौने दामों पर रसूखदार लोगों को प्रॉपर्टीज ‘बेची’ गईं? क्यों हाईप्रोफाइल लोगों को प्रोजेक्ट से जोड़ा गया? ये और ऐसे अनेक सवालों के जवाब नये सिरे से खोजे जाने का सिलसिला आरंभ हुआ है।
नेशनल हेराल्ड को संचालित करने वाली एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड (एजेएल) को मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के प्रेस कॉम्पलेक्स में घटीदरों (एक लाख रुपये प्रति एकड़ की दर) पर 1981 में राज्य सरकार ने 1 एकड़ 14 डेसिमल बेशक़ीमती ज़मीन (आज बाजार मूल्य 200 करोड़ रुपये के लगभग है) आवंटित की थी। जमीन को ‘खुर्द-बुर्द’ करने का आरोप एजेएल पर है।
नेशनल हेराल्ड की देश भर की संपत्तियों में कथित हेरफेर से जुड़े मामलों की जाँच केन्द्रीय प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी कर रहा है। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी-राहुल गांधी कठघरे में हैं। ईडी की पूछताछ से मां-बेटे की मुश्किलें बढ़ी हुई हैं। एजेएल की प्रॉपर्टी से जुड़ा पूरा काम कांग्रेस के कोषाध्यक्ष मोतीलाल वोरा द्वारा देखा जाता रहने की दलीलें अपने जवाब में सोनिया-राहुल ने दी हैं।
इधर मध्य प्रदेश की शिवराज सिंह चौहान सरकार ने एजेएल को भोपाल और इंदौर प्रेस कॉम्पलेक्स में जमीन आवंटन से जुड़ी 40 साल पुरानी फाइलों को खोलने का फ़ैसला लिया है।
शिवराज सरकार में मंत्री भूपेन्द्र सिंह ने दो टूक कहा है, ‘जांच में दोषी पाये जाने वालों को दंडित करेंगे। एजेएल की प्रॉपर्टीज सील की जायेंगी।’ सरकार के फ़ैसले से उन लोगों में हड़कंप है, जिन्होंने दोनों ज़मीनों पर प्रॉपर्टीज को खरीदा है।
मीडिया से बातचीत में भूपेन्द्र सिंह ने भरोसा दिलाया है, कांग्रेस के मुखपत्र नवजीवन और नेशनल हेराल्ड बंद होने के बाद अपने भुगतानों के लिये दर-दर भटक रहे मध्य प्रदेश के पुराने मुलाज़िमों के स्वत्वों के भुगतान का रास्ता निकालने का प्रयास प्रदेश सरकार करेगी।
‘सत्य हिन्दी’ ने इस पूरे मामले की पड़ताल की है। पड़ताल में अनेक चौंकाने वाली जानकारियाँ सामने आयी हैं।
एजेएल ने भोपाल से प्रकाशित होने वाले नवजीवन और इंदौर से छपने वाले नेशनल हेराल्ड अख़बार को 1992 में अचानक बंद कर दिया था। बड़ी संख्या में कर्मचारी एक झटके में सड़क पर आ गये थे। बेरोजगार हो गये थे।
एजेएल ने माली हालत खस्ता होने की दलीलें दी थीं। अख़बार को बंद करने की भूमिका पूर्व से बना ली गई थी। देश के अन्य हिस्सों के प्रकाशन बंद किये जा रहे थे। भोपाल-इंदौर में तनख्वाह नियमित नहीं मिल पा रही थी। मगर कर्मचारियों को भोपाल-इंदौर संस्करण बंद होने की उम्मीद नहीं थी। ऐसा माना जा रहा था कि बेशकीमती जमीन को बचाये रखने के लिये अखबार निकलता रहेगा। कर्मचारियों के घर चलते रहेंगे।
एजेएल ने अखबार बंद करने के बाद जमीन को ‘ठिकाने’ लगाने के रास्ते बनाये। भोपाल की जमीन पर आलीशान कॉम्पलेक्स बनाकर बेच दिया गया। सरकार द्वारा 30 सालों की लीज पर जमीन एजेएल को दी गई थी। लीज की तमाम शर्तों में एक महत्वपूर्ण शर्त जमीन का व्यावसायिक उपयोग नहीं करना भी शामिल था। मगर इस शर्त का खुला उल्लंघन किया गया। साथ ही तमाम नियमों को दरकिनार कर जमीन का ‘खेल’ कर लिया गया।
वर्ष 2003 से 2018 तक बीजेपी प्रदेश की सत्ता में लगातार रही। तीनों टर्म में शिवराज सिंह सीएम रहे। अभी भी 23 मार्च 2020 से पुनः सीएम की कुर्सी पर विद्यमान हैं। एजेएल की ज़मीन पर ‘सिटी सेंटर’ बनाये जाने से जुड़ी अधिकांश मंजूरियाँ बीजेपी के ही राज में हुईं। बावजूद इसके सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी रही। राष्ट्रीय स्तर पर नेशनल हेराल्ड मामला उछला। ईडी एक्शन में आया तब कहीं जाकर मध्य प्रदेश सरकार की ‘नींद’ खुली! फाइलें खोलने का फ़ैसला हुआ।
नंदा को संपत्तियों का ‘दान’ करने की सही-सही वजह बता पाने वाले एजेएल के चेयरपर्सन रहे कांग्रेस के बड़े नेता मोतीलाल वोरा अब इस दुनिया में नहीं हैं।
बकौल नंदा, ‘ऋषिराज (वर्ष 2000 में देवास के पास सड़क दुर्घटना में मारे गये थे) से कुछ लेनदेन निकलता था, उस लेन-देन के एवज में एजेएल की प्रॉपर्टी उन्हें दान में मिली थीं।’
एजेएल के इस प्रोजेक्ट से जुड़े दस्तावेजों में कई जगह तनवंत सिंह के दूसरे पुत्र गुरुशरण सिंह का ‘जुड़ाव’ साफ दिखता है। मगर बड़ा सवाल यह है कि यदि स्वर्गीय ऋषिराज कीर से नंदा का कुछ लेनदेन निकलता भी था तो एजेएल की प्रॉपर्टी का ‘दान’ (वास्तव में एडजस्टमेंट) नंदा को आखिर कैसे हुआ? नरेंद्र कुमार मित्तल के हस्ताक्षरों से नंदा के नाम दानपत्र क्यों बना? यहां बता दें कि गुरुशरण सिंह कीर रीयल एस्टेट के कारोबार से जुड़े हुए हैं।
पूरे मामले को लेकर ‘सत्य हिन्दी’ द्वारा संपर्क करने पर गुरुशरण कीर ने पहले तो एजेएल से संबंधों को ही नकार दिया। उन्होंने दावा किया परोक्ष-अपरोक्ष रूप से वे कभी भी एजेएल या उसके प्रोजेक्ट से नहीं जुड़े। कभी पत्रकार भी नहीं रहे।
जब गुरुशरण को बताया गया कि एजेएल द्वारा एन.के. मित्तल को भोपाल की प्रॉपर्टी की पॉवर ऑफ अटार्नी दी गई थी, पर पिता तनवंत सिंह कीर के बतौर गवाह हस्ताक्षर, कीर द्वारा नर्मदा डूब क्षेत्र में बेची गई प्रॉपर्टी पर नियमानुसार राज्य में अन्य जगह प्रॉपर्टी खरीदी पर स्टाम्प ड्यूटी से छूट का लाभ एजेएल के भोपाल प्रोजेक्ट की प्रॉपर्टी के पंजीयन में लिये जाने, आपको (स्वयं गुरुशरण सिंह को) प्रोजेक्ट से जोड़ने, एजेएल द्वारा नेशनल हेराल्ड का ब्यूरो चीफ़ बनाये जाने संबंधी पत्र और इस लेटर के आधार पर प्रदेश सरकार से राज्य स्तरीय अधिमान्यता मिलने संबंधी दस्तावेज सबूत के तौर पर ‘सत्य हिन्दी’ के पास हैं, तो गुरुशरण सिंह ने थोड़ा नरम होते हुए कहा, ‘तमाम दस्तावेजों को देखने और अध्ययन करने के बाद ही वे विस्तृत और वांछित प्रतिक्रिया दे पायेंगे।’
...तो क्या, यह महज संयोग भर था!
एजेएल के प्रोजेक्ट को ज्यादातर मंजूरियाँ भाजपा की सरकार में मिलीं। शिवराज सरकार ने इस मामले की प्रस्तावित जांच में एजेएल को अलॉट जमीन के लैंड यूज को बदलने और कॉम्पलेक्स बनाने संबंधी नगर निगम, टाउन एंड कंट्री प्लानिंग एवं अन्य संबंधित एजेंसियों और परमिशन देने वाले अफसरों की भूमिका की जाँच की बात भी कही है।
दिग्विजय सिंह सरकार में स्थानीय शासन मंत्री और राज्य के प्रभावशाली कांग्रेस नेता रहे तनवंत सिंह कीर के पुत्र गुरुशरण सिंह एजेएल से जुड़े तमाम दस्तावेजी सबूतों को देखने और अध्ययन के बाद विस्तृत प्रतिक्रिया देने की बात कह रहे हैं, उधर नंदा का प्रॉपर्टी ‘दान’ में मिलने से जुड़ा वक्तव्य सीधे-सीधे अपरोक्ष रूप से कीर परिवार को ‘कठघरे’ में खड़ा कर रहा है।
नंदा को प्रॉपर्टी के ‘दान’ से जुड़े ‘रहस्य’ का एक दिलचस्प ‘पहलू’ यह भी है, ‘जब एजेएल को कॉम्पलैक्स निर्माण से जुड़ी तमाम ज़रूरी अनुमतियाँ मिली थीं, तब भोपाल नगर निगम में सिटी प्लॉनर पद पर अशोक नंदा के भाई अनिल नंदा पदस्थ थे।’
(अगले अंक में जारी…)।
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