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मध्य प्रदेश की सत्ता की चाबी माने जाने वाले अन्य पिछड़ा वर्ग यानी ओबीसी को स्थानीय सरकार के चुनावों में आरक्षण देने के मसले पर सियासत और गर्मा गई है। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को लेकर लगी याचिकाओं पर सुनवाई का काम शुक्रवार को पूरा करते हुए फ़ैसला सुरक्षित रख लिया। कोर्ट अब 10 मई को मामले में अपना फ़ैसला सुनायेगा।
सुप्रीम कोर्ट अपने निर्णय में सुनिश्चित करेगा, ‘पंचायत और स्थानीय निकाय के चुनावों में अन्य पिछड़ा वर्ग को आरक्षण का लाभ दिया जाएगा अथवा नहीं?’ सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को मामले की सुनवाई करते हुए कई जानकारियों पर मध्य प्रदेश की सरकार को जोरदार फटकार लगाई थी। सुप्रीम कोर्ट ने दो साल से स्थानीय निकायों की क़रीब 24 हजार सीटें खाली रहने पर हैरानी जताते हुए दो टूक कहा था, ‘ओबीसी को आरक्षण नहीं देने पर आसमान नहीं गिर पड़ेगा।’
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा था कि प्रदेश में दो साल से इन सीटों पर पंचायत और नगर निकायों के लिए चुनाव नहीं होना ‘क़ानून के शासन का उल्लंघन’ है। अदालत ने कहा कि वह मध्य प्रदेश के लिए भी महाराष्ट्र की तरह आदेश पारित करेगी। सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार से पूछा था, ‘क्या उसने स्थानीय चुनाव में ओबीसी आरक्षण देने के लिए ट्रिपल टेस्ट मानदंडों को पूरा किया है?’
सुप्रीम कोर्ट ने तल्खी दिखाते हुए यह भी कहा था, ओबीसी वर्ग को आरक्षण नहीं देने पर ‘आसमान नहीं गिर पड़ेगा।’ अदालत ने स्पष्ट किया कि अगर वह संतुष्ट नहीं हुई तो वो प्रदेश में बिना देरी के ओबीसी आरक्षण के बिना ही चुनाव कराने के आदेश देगी। मध्य प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा चाही गई जानकारियों को शुक्रवार को अदालत के सामने रख दिया। सूत्रों के अनुसार मध्य प्रदेश सरकार की ओर से 110 पेज की रिपोर्ट और 600 पेज का एनेक्सचर पेश किया गया है। राज्य में 48 प्रतिशत ओबीसी आबादी बताते हुए 35 प्रतिशत आरक्षण देने का अनुरोध सरकार द्वारा किया गया।
पिछड़ा वर्ग से आने वाले पूर्व केन्द्रीय मंत्री और मध्य प्रदेश कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष अरुण यादव ने शुक्रवार को अलग-अलग ट्वीट करते हुए मध्य प्रदेश की बीजेपी सरकार को जमकर आड़े हाथों लिया।
यादव ने ट्वीट में कहा, ‘मध्य प्रदेश में पंचायत चुनाव आरक्षण को लेकर माननीय सुप्रीम कोर्ट ने अपना महत्वपूर्ण फ़ैसला सुरक्षित रख लिया है। मध्य प्रदेश की बीजेपी सरकार ने जिस तरह से असंगत आँकड़े माननीय उच्च न्यायालय के सामने प्रस्तुत किये हैं, उससे यह स्पष्ट है कि शिवराज सरकार पंचायत चुनाव में ओबीसी का आरक्षण समाप्त कराने का षडयंत्र रच रही है, जो आरक्षण माननीय कमल नाथ जी की सरकार ने दिया था उसे आरएसएस की विचारधारा साज़िश रचकर ख़त्म करना चाहती है।’
लेकिन कांग्रेस पार्टी को माननीय उच्चतम न्यायालय पर पूरा भरोसा है कि प्रदेश के अन्य पिछड़ा वर्ग के हितों का पूरा ध्यान रखेगा । जो भी फैसला आएगा, वह संवैधानिक मूल्यों और सामाजिक न्याय को मजबूत करेगा ।@ANI @IANSKhabar @PTI_News
— Arun Subhash Yadav 🇮🇳 (@MPArunYadav) May 6, 2022
अरुण यादव ने अन्य ट्वीट में कहा, ‘कांग्रेस पार्टी को माननीय उच्चतम न्यायालय पर पूरा भरोसा है कि प्रदेश के अन्य पिछड़ा वर्ग के हितों का पूरा ध्यान रखेगा। जो भी फैसला आएगा, वह संवैधानिक मूल्यों और सामाजिक न्याय को मजबूत करेगा।’
शिवराज सरकार के प्रवक्ता और राज्य के क़ानून मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने ओबीसी आरक्षण को लेकर क़ानूनी अड़चनों का ठीकरा कांग्रेस के सिर फोड़ा। उन्होंने कहा, ‘पूर्ववर्ती कमलनाथ सरकार ग़लतियाँ नहीं करती तो ओबीसी आरक्षण को लेकर आज आ रही दिक्कतें पेश ही नहीं आतीं।’
मिश्रा ने कहा, ‘शिवराज सरकार ने मध्य प्रदेश पिछड़ा वर्ग आयोग की ताज़ा रिपोर्ट को गुरुवार को पब्लिक डोमन में डाल दिया है। रिपोर्ट में सबकुछ स्पष्ट है। सरकार ओबीसी वर्ग और उसके हितों की लड़ाई में कोई कसर नहीं छोड़ रही है।’ कानून मंत्री एवं सरकार के प्रवक्ता मिश्रा ने यह भी कहा, ‘सुप्रीम कोर्ट के समक्ष सभी तथ्य रख दिए गए हैं। माननीय न्यायालय के निर्णय के बाद मध्य प्रदेश, ओबीसी वर्ग को देश में सबसे ज्यादा 35 प्रतिशत आरक्षण देने वाला सूबा बनेगा, हमें इस बात की पक्की उम्मीद है।’
ओबीसी वर्ग के आरक्षण को लेकर मध्य प्रदेश सरकार को फटकार लगाने वाली सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने गुरुवार को संकेतों में यह भी साफ़ किया था, ‘मध्य प्रदेश सरकार के संकलित आँकड़े और सर्वेक्षण अगर पूरे और संतोषजनक नहीं हुए तो वहाँ (मध्य प्रदेश में) भी महाराष्ट्र के लिए तय व्यवस्था के आधार पर चुनाव होगा।’
सुप्रीम कोर्ट के इसी संकेत के बाद से राज्य की नौकरशाही के साथ बीजेपी एवं उसकी सरकार में सकते का माहौल बना हुआ है। वे नौकरशाह खासे चिंतित बताए जा रहे हैं जिन्होंने मसले को सर्वोच्च न्यायालय में बेहतर तरीक़े से हैंडल कर लेने का भरोसा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह को दिलाया था।
दरअसल, सरकार की चिंता यह है कि महाराष्ट्र की तर्ज पर बिना ओबीसी वर्ग को आरक्षण दिए चुनाव का आदेश हो गया तो स्थानीय सरकार के चुनावों में बीजेपी को बड़ा राजनीतिक घाटा होने की संभावनाएं बढ़ेंगी ही, साथ में अगले साल होने वाले मध्य प्रदेश विधानसभा के चुनाव में भी इस वर्ग के खफा होने से भारी नुक़सान के आसार पैदा हो जायेंगे।
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