मध्य प्रदेश के राज्यपाल मंगूभाई पटेल के एक कार्यक्रम में स्वागत के तौर-तरीक़ों पर विवाद हो गया। राज्यपाल को बीजेपी के लोगों ने ‘कमलछाप’ गमछा गले में डालकर स्वागत किया। विरोधी इसी पर आपत्ति जता रहे हैं। सन् 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के क्रांतिवीर टंट्या भील के बलिदान दिवस पर इंदौर के महू में हुए कार्यक्रम के मुख्य अतिथि की हैसियत से पहुँचे पटेल का स्वागत ऐसे हुआ - मानो वे मध्य प्रदेश के गवर्नर नहीं, बल्कि बीजेपी के नेता हों!
मध्य प्रदेश में जन्मे जनजातीय समाज के क्रांतिकारी टंट्या भील को चार दिसंबर 1889 को जबलपुर जेल में फांसी दी गई थी। ऐसा माना जाता है फाँसी के बाद अंग्रेजों ने टंट्या भील का शव इंदौर के पास पातालपानी में फेंक दिया था। इसी वजह से पातालपानी में टंट्या भील का स्मारक बना।
आदिवासी वोटों को साधने के लिए मध्य प्रदेश की शिवराज सरकार और बीजेपी ने बड़ी मुहिम छेड़ी हुई है। राज्य विधानसभा की कुल 230 सीटों में 89 अनुसूचित जनजाति बाहुल्य वोटों वाली हैं। सरकार उसी दल की बनती है जो इन आदिवासी वोट वाली ज़्यादा सीटों को जीतता है।
बिरसा मुंडा की जयंती पर हाल ही में मध्य प्रदेश की सरकार ने भोपाल में बड़ा जलसा किया था। इस आयोजन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पहुँचे थे। केन्द्र और मध्य प्रदेश की सरकार ने अनेक लुभावनी घोषणाएँ अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए की थीं।
आदिवासी वोटों को साधने की ‘श्रृंखला’ में मध्य प्रदेश की बीजेपी सरकार और संगठन, टंट्या भील को लेकर पिछले सप्ताह भर से कार्यक्रम कर रहा है। खंडवा स्थित टंट्या भील के जन्मस्थल और कर्मस्थली रहे रतलाम से गौरव यात्राएँ निकाली गईं।
गौरव यात्रा का समापन आज इंदौर में हुआ। पहले यह यात्रा पातालपानी में समाप्त होने वाली थी। वहीं बड़ा जलसा रखा गया था। मुख्यमंत्री चौहान की चार दिसंबर को पातालपानी पहुंचने की अपील सप्ताह भर से राज्य के मीडिया में चल रही थी। देश में कोरोना के नये वैरियंट ओमिक्रॉन मिलने और मध्य प्रदेश में कोरोना के नये रोगियों की संख्या बढ़ने पर प्रदेश सरकार ने इस कार्यक्रम को इंदौर में शिफ्ट कर दिया था। चूंकि महू के पातालपानी में आयोजन की घोषणा थी, लिहाजा राज्य सरकार ने वहां भी एक आयोजन किया। सूबे के राज्यपाल मंगूभाई पटेल को साथ लेकर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह यहां पहुंचे।
पातालपानी के आयोजन के लिए बनाये गये हैलीपेड पर उतरते ही राज्यपाल का जोरदार स्वागत हुआ। स्थानीय विधायक और शिवराज काबीना की बेहद चर्चित सदस्य ऊषा ठाकुर एवं अन्य भाजपाइयों ने पार्टी चुनाव चिन्ह कमलछाप गमछे पहनकार राज्यपाल का स्वागत किया।
हैलीपेड पर हुए स्वागत के दौरान मुख्यमंत्री शिवराज सिंह भी राज्यपाल के साथ मौजूद रहे।
कांग्रेस ने जताई आपत्ति
महू हैलीपैड पर राज्यपाल के स्वागत के वीडियो वायरल होते ही बवाल मच गया। प्रतिपक्ष कांग्रेस ने राज्यपाल के स्वागत के तरीक़े पर तीखी आपत्ति जताई।
मध्य प्रदेश कांग्रेस के प्रवक्ता नरेंद्र सालूजा ने एक ट्वीट करते हुए कहा, ‘महामहिम राज्यपाल जी का पद संवैधानिक होता है। गरिमामय होता है, लेकिन मध्य प्रदेश के राज्यपाल जी का टंट्या मामा के कार्यक्रम में पहुंचने पर, अगवानी में स्वागत बीजेपी के चुनाव चिन्ह वाले गमछे से किया गया...? ना राज्यपाल जी ने रोका, और ना किसी अन्य ने, गले में भाजपा का गमछा डला रहा?’
महामहिम राज्यपाल जी का पद संवैधानिक होता है लेकिन मध्यप्रदेश के राज्यपाल जी का आज टंटया मामा के कार्यक्रम में पहुँचने पर,आगवानी में स्वागत भाजपा के चुनाव चिन्ह वाले गमछे से किया गया…?
— Narendra Saluja (@NarendraSaluja) December 4, 2021
ना राज्यपालजी ने रोका और ना किसी अन्य ने, गले में भाजपा का गमछा डला रहा , बेहद आपत्तिजनक…? pic.twitter.com/Jq9nytWb4C
छह बार बीजेपी के विधायक, मंत्री रहे हैं मंगूभाई
आदिवासी वर्ग से आने वाले 77 वर्षीय मंगूभाई पटेल भाजपा के पुराने ठाठी नेता हैं। वे दक्षिण गुजरात की नवसार विधानसभा सीट से पांच बार और एक बार गणदेवी से भाजपा के टिकट पर विधायक रहे। नौवीं तक शिक्षित मंगूभाई गुजरात विधानसभा के उपाध्यक्ष और सरकार में मंत्री भी रहे हैं।
इसी साल 6 जुलाई को उन्हें मध्य प्रदेश का राज्यपाल नियुक्त किया गया था। आठ जुलाई को उन्होंने राज्य के 23वें गवर्नर के तौर पर शपथ ली।
भोपाल में मोदी ने की थी मंगूभाई की तारीफ़
भोपाल में पिछले महीने बिरसा मुंडा जयंती पर हुए समारोह में प्रधानमंत्री मोदी ने राज्यपाल मंगूभाई की जमकर तारीफ की थी। मोदी ने कहा था, ‘मंगूभाई देश के पहले ट्राइबल गवर्नर हैं। आदिवासियों के लिए गुजरात में उन्होंने जो काम किए उसका लाभ मध्य प्रदेश को अवश्य मिलेगा।’
प्रधानमंत्री की तारीफ़ के बाद से मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने गवर्नर मंगूभाई से मेल-मुलाक़ात के सिलसिले को तेज किया है। इंदौर में आज हुए जलसे में मुख्य अतिथि के तौर पर राज्यपाल की मौजूदगी को भी पीएम द्वारा की गई तारीफ के नतीजों से जोड़कर देखा गया।
मध्य प्रदेश के राज्यपाल पद को संभालने के ठीक बाद मंगू भाई ने आदेश प्रसारित किया था, ‘उनके नाम को अब से मंगूभाई छ. पटेल लिखा जाये।’ बता दें कि आदेश के पूर्व तक मंगू भाई छगन भाई पटेल नाम लिखा जाता था।
राज्यपालों के रवैये पर सवाल नई बात नहीं!
राज्यपालों के रवैये में ‘बदलाव’ को लेकर सवाल उठना नई बात नहीं है। पिछले काफी वक़्त से गवर्नरों के कार्य-व्यवहार और आचरण पर सवाल उठ रहे हैं। संवैधानिक मर्यादाएँ भूलाने के आरोप भी राज्यपालों पर लग रहे हैं। खास तौर पर साल 2014 के बाद से राज्यपालों को लेकर देश के कई राज्यों में अनेक बड़े विवाद भी सामने आये हैं।
ख़ास विचारधारा से बंध जाने के आरोप भी राज्यपालों पर लगे हैं। प्रोटोकॉल को भूल जाने और सरकार के हाथों की कठपुतली बनकर कामकाज करने को लेकर भी कई सूबों के गवर्नर आरोपों के कठघरे में खड़ा किये गये हैं।
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