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मोहन मंत्रिमंडल में असंतोष फैला, एक को मनाया तो दूसरा हुआ बाग़ी

मध्य प्रदेश की मोहन यादव सरकार के मंत्री नागर सिंह चौहान बैकफुट पर आ गए हैं। मंगलवार देर रात भोपाल में मुख्यमंत्री और संगठन के पदाधिकारियों से बंद कमरे में चर्चा के बाद उन्होंने अपने कदम वापस खीचें हैं। चौहान ‘शांत’ हो गए, लेकिन अन्य असंतुष्ट ने आवाज बुलंद की है।

नागर इस्तीफा एपीसोड ने बीते दो दिनों से मध्य प्रदेश और दिल्ली में संगठन के साथ-साथ बड़े नेताओं को बेचैन कर रखा था। नागर एपीसोड की शुरुआत सोमवार को अलीराजपुर (इसी क्षेत्र से विधायक हैं) से हुई थी। नागर ने यह कहते हुए सनसनी फैलाई थी कि वे मंत्री पद से इस्तीफा दे रहे हैं। उनकी सांसद पत्नी (मध्य प्रदेश की रतलाम लोकसभा सीट से सांसद हैं) भी इस्तीफा देने जा रही हैं।

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नागर की नाराजगी रविवार को विभागों के फेरबदल की वजह से हुई थी। नागर के पास शनिवार तक तीन विभाग थे। तीन में से दो, वन तथा पर्यावरण महकमे वापस लेकर नये मंत्री रामनिवास रावत को दे दिया गया था। रावत कांग्रेस से भाजपा में आये हैं। लोकसभा चुनाव 2024 के दौरान उन्होंने पाला बदला था। श्योपुर जिले की विजयपुर सीट से वे विधायक थे। कुल 6 बार के विधायक रावत को मुरैना लोकसभा सीट जीतने के चक्कर में भाजपा ज्वाइन कराई गई थी।

भाजपा का दाँव सफल हुआ था। कांग्रेस से बगावत और भाजपा की मदद के एवज में रावत को बीती 8 जुलाई को मोहन यादव सरकार में मंत्री पद दिया गया। मंत्री पद मिलने के 13 दिनों तक कोई विभाग उन्हें नहीं मिला। बीते रविवार को नये सिरे से विभागों का बँटवारा हुआ। मुख्यमंत्री ने नागर के कुल तीन में से दो विभाग वापस लेकर रावत को दिए। किसी अन्य मंत्री को नहीं छेड़ा गया। नागर के पास अनुसूचित जाति कल्याण विभाग भर बचा।

दो अहम विभाग छिनने से कुपित आदिवासी वर्ग से आने वाले नागर ने बगावत का बिगुल फूंक दिया। उन्होंने तीखे तेवर दिखाते हुए सोमवार को अलीराजपुर में इस्तीफे का धमाका किया। मंगलवार को पहले भोपाल और बाद में उन्हें दिल्ली तलब किया गया। वे दिल्ली पहुंचे, लेकिन बात नहीं बनी। बड़े नेता नहीं मिले।
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मंगलवार दोपहर बाद नागर ने दिल्ली से एक वीडियो संदेश अपने फे़सबुक पर अपलोड किया। दरअसल झाबुआ जिले के भाभरा में जन्मे, शहीद चंद्रशेखर आज़ाद की मंगलवार को जन्म जयंती थी। हर जन्म जयंती पर भाभरा में रहने, लेकिन इस बार भाभरा में न होने की बात कहते हुए, अपलोड वीडियो में नागर ने दुःख प्रकट किया। साथ ही उन्हें श्रद्धासुमन भी अर्पित किये।

कुल सवा मिनट के इस वीडियो में नागर ने स्वयं को दो मर्तबा विधायक बताया। इससे संकेत मिले कि दिल्ली में बात नहीं बनी है। मामला आर-पार की लड़ाई वाला हो गया है।

ख़बर यह भी आयी कि संसद में बजट पेश होने के दौरान रतलाम से भाजपा सांसद एवं नागर की पत्नी अनिता नागर संसद से ‘नदारद’ हैं। हड़कंप मचा। बाद में मप्र के बड़े नेता और मोहन यादव सरकार में मंत्री कैलाश विजयवर्गीय आनन-फानन में दिल्ली रवाना हुए। हालांकि वीडी शर्मा ने देर शाम दावा किया, ‘अनिता नागर सदन में उपस्थित रहीं।’

दिल्ली के तमाम घटनाक्रम के बाद मामला भोपाल में सुलझा। भोपाल में मंगलवार आधी रात को मुख्यमंत्री निवास पर बैठक हुई। बैठक में मुख्यमंत्री मोहन यादव, भाजपा प्रदेशाध्यक्ष एवं खजुराहो से सांसद वी.डी. शर्मा, संगठन महामंत्री हितानन्द शर्मा और इस्तीफे की धमकी देने वाले नागर सिंह मौजूद रहे।

बंद कमरे में चली बैठक समाप्ति के बाद रात क़रीब 12.40 बजे (बुधवार का लग चुका था) मोहन यादव का मीडिया देखने वाले जनसंपर्क महकमे के अफसरों ने नागर और सीएम-संगठन की मुलाकात वाला वीडियो सोशल मीडिया के अपने अधिकृत प्लेटफार्म पर सेंड किया।

सूत्रों के हवाले से बताया गया, ‘नागर एपीसोड निपट गया है।’ सूत्रों ने यह भी दावा किया कि नागर को बेहतर भविष्य का आश्वासन दिया गया है। देर रात की बैठक के बाद अधिकारिक प्रतिक्रिया किसी की नहीं मिली। नागर ने बुधवार को एक मीडिया समूह से कहा, ‘सारे मसले और समस्याओं का समाधान हो जाएगा।’

सवालों के जवाब में नागर ने कहा, ‘विभाग वापसी का विषय सत्ता एवं संगठन का आंतरिक मसला है। पार्टी फोरम पर अपनी बातें रखी हैं। सभी बातों को सुना गया है। दिल्ली में पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा और केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह से बात हुई है। शिवराज सिंह चौहान और वीडी शर्मा से भी मिल लिया हूं। अब मैं अपने गुरुजी के पास गुजरात जा रहा हूं।’

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विधायक विश्नोई ने स्वयं को दुर्भाग्यशाली बताया

नागर सिंह चौहान और उनकी पत्नी के इस्तीफे से जुड़ा मामला भले ही निपट गया, लेकिन मप्र भाजपा से दूसरी आवाज सामने आयी। वरिष्ठ विधायक और पूर्व मंत्री अजय विश्नोई ने रामनिवास रावत को मंत्री बनाये जाने को स्वयं का दुर्भाग्य करार दिया। उन्होंने इस मामले को लेकर बातचीत के दौरान मीडिया के सवालों के जवाब में कहा, ‘कांग्रेस से आये नेताओं को मंत्री पद मिलना उनका (कांग्रेसजनों का) सौभाग्य और यह (वे और कई सीनियर, मंत्री पद से दूर रखे जायें) हमारा दुर्भाग्य है।

विश्नोई यही नहीं रुके और उन्होंने कहा, ‘दुर्भाग्य यह भी है कि संगठन में वरिष्ठ नेताओं का दुःख सुनने वाला कोई नहीं है।’ मोहन यादव सरकार में मंत्रिमंडल के गठन और विस्तार के दौरान, भाजपा के कई दावेदारों ने संकेतों में अपना दर्द बयां किया है। ऑफ द रिकार्ड ये दावेदार फट पड़ते हैं।

भाजपा के कई नेताओं ने सार्वजनिक तौर पर कहा है, ‘जिनसे जीवन भर भाजपा के लिए लड़े, आज उनके आगे हाथ फैलाना-गिड़गड़ाना बेहद दुःखी करता है।’ 

मध्य प्रदेश में स्थिति यह है कि मुख्यमंत्री सहित कुल 33 सदस्यों वाले मंत्रिमंडल में आधे दर्जन से अधिक पुराने कांग्रेसी मंत्री हैं। भाजपा में आने के बाद पहले विधायक का टिकट, जीत और फिर मंत्री पद मिलने के बाद बेहद अहम विभागों का दायित्व इन्हें मिला हुआ है।

एक दर्जन दावेदार किनारे, कांग्रेस से आये नेता पा गए मंत्री पद

मप्र में 2023 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 163 सीटें हासिल की थीं। कुल 230 सीटों में 163 सीटें जीत लेने के बाद लोकसभा चुनाव 2024 के दौरान तीन और कांग्रेसी विधायकों को भाजपा ने तोड़कर अपने खेमे में मिलाया।

टूटकर आने वाले रावत को मंत्री बनाया। उनके अलावा भाजपा में आये और हाल ही में छिन्दवाड़ा जिले की अमरवाड़ा सीट को पार्टी के लिए जीत दर्ज करने वाले कमलेश शाह भी मुख्यमंत्री की ओर ताक रहे हैं। उन्हें भी मंत्री बनाये जाने का आश्वासन भाजपा द्वारा दलबदल के समय देने की चर्चा रही थी।

उधर भाजपा में 9 बार के विधायक गोपाल भार्गव, छह बार के विधायक जयंत मलैया, भूपेन्द्र सिंह सहित दर्जन भर मंत्री पद के दावेदार बाहर बैठे हुए हैं। इन्हें मंत्री पद नहीं मिला है। आरएसएस के कई कृपापात्र भाजपा विधायक भी मंत्रियों वाली सूची में थे, लेकिन कांग्रेसियों के एडजस्टमेंट की आलाकमान (मोदी-शाह) की मंशा की वजह से भाजपाइयों को मंत्री पद नहीं मिल पाना कारण माना जाता रहा है।

मोहन यादव सरकार के कई मंत्रियों का दर्द है कि ज़्यादा भरोसेमंद और काबिल होने के बावजूद उन्हें कम महत्व वाले विभाग मिले हैं। फ्री हैंड नहीं है। कांग्रेस से आये नेता महत्वपूर्ण महकमे पा लेने के अलावा मुक्त होकर काम कर रहे हैं, इस दर्द को भी मंत्रीगण ऑफ़ द रिकॉर्ड मीडिया के मित्रों के सामने प्रकट करते हैं।

पुराने कांग्रेसी जो मोहन यादव सरकार में मंत्री हैं, उनमें तुलसी राम सिलावट, गोविन्द सिंह राजपूत, उदय प्रताप सिंह, ऐदल सिंह कंसाना और निर्मला भूरिया हैं। इनके अलावा हाल ही में रामनिवास रावत को मंत्री बनाया गया है। 

 

यद्यपि लोकसभा चुनाव नतीजों के बाद देश के कई हिस्सों से आवाजें उठी हैं, तथापि मोदी-शाह पर सीधा राजनीतिक हमला किसी ने नहीं बोला है। अलबत्ता मप्र में मंत्री द्वारा इस्तीफे की पेशकश को आलाकमान (मोदी-शाह) के खिलाफ ‘आवाज’ माना गया। फ़िलहाल नागर के असंतोष को बेहतर भविष्य की दुहाई देकर दबा दिया गया है, लेकिन नागर द्वारा दिखाई गई मुखरता से कुछ मिलने की संभावनाओं के बाद नई आवाजें बुलंद होने (विश्नोई का खुलकर मैदान में आना) का खतरा बढ़ गया है। 

‘गद्दार मंत्री, खुद्दार घर में’

भाजपा में चल रहे आंतरिक विवाद और घमासान को मप्र कांग्रेस हवा दे रही है। नागर एपीसोड (विभाग छिन लिए जाने और उनके मुखर होने) के बाद कांग्रेस का बयान आया है, ‘भाजपा में गद्दार कांग्रेसी मजे मार रहे हैं। मलाई खा रहे हैं। जबकि खुद्दार और सीनियर लीडरों को घर बैठा दिया गया है।’

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संजीव श्रीवास्तव
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