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व्यापमं में दोषियों को सज़ा दिलाने की बात करने वाले कमलनाथ के सरकार में आने के बाद कितने दोषियों को सज़ा मिल पाई है? यह सवाल इस बड़े स्कैम के एक बेहद अहम किरदार पूर्व मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा को कोर्ट से ‘क्लीनचिट’ मिल जाने के बाद मध्य प्रदेश में ज़ोर-शोर से ‘गूँज’रहा है। कोर्ट ने हाल ही में परिवहन विभाग की भर्तियों में घोटाले से जुड़े मामले में शर्मा को बरी किया है।
कोर्ट ने अपने ताज़ा फ़ैसले में न केवल शर्मा, बल्कि उनके ओएसडी रहे ओ. पी. शर्मा और कांग्रेस के नेता संजीव सक्सेना समेत कुल 14 लोगों को ‘क्लीन चिट’ दी है। चार सालों तक चली जाँच के बाद सीबीआई ने चार्जशीट पेश की थी। लंबी-चौड़ी चार्जशीट में सीबीआई ने बरी किए गए शर्मा समेत अन्य आरोपियों के ख़िलाफ़ कोई सबूत नहीं होने की बात कही। इसके बाद ही कोर्ट ने इस मामले से आरोपियों को दोषमुक्त क़रार दे दिया है।
फ़ैसला आने के बाद पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह ने सबसे पहले ट्वीट करके सवाल खड़े किए। उन्होंने अपने ट्वीट में कहा, ‘क्या जाँचकर्ता और आरोपी एक ही उद्देश्य से काम कर रहे हैं? इतना बड़ा घोटाला, इतनी सारी मौतें और कोई दोषी नहीं? उल्टा पैसे देकर भविष्य बनाने का सपना देखने वाले कठघरे में हैं! एमपी सरकार को इस मामले में हस्तक्षेप करना चाहिए।’
दिग्विजय सिंह अकेले नहीं हैं, व्यापमं घोटाले को लेकर कांग्रेस में सवाल लगातार उठते रहे हैं। मध्य प्रदेश की सत्ता में आने के पहले कांग्रेस के सुर कुछ ज़्यादा तेज़ थे।
सत्ता में आने के बाद सरकार में बैठे लोगों ने व्यापमं स्कैम की फ़ाइल दोबारा खोलने की बात तो बार-बार की है, लेकिन आठ महीनों में इस दिशा में सरकार की ओर से कुछ ‘ठोस’ क़दम उठता नज़र नहीं आया है।
मध्य प्रदेश का व्यावसायिक परीक्षा मंडल तमाम प्रवेश परीक्षाओं के साथ भर्तियों के लिए भी परीक्षा लेता है। व्यापमं घोटाले में मध्य प्रदेश में पहली एफ़आईआर 2009 में हुई थी। यह मामला 2013 में तब ज़्यादा सुर्खियों में आया जब इंदौर में 20 ‘मुन्ना भाई’ (पीएमटी के मूल प्रतियोगियों के बदले में परीक्षा देने के आरोप में) पकड़े गए। तब की शिवराज सरकार ने जाँच बैठाई। जाँच के चलते 2013 से 2015 के बीच 2 हज़ार से ज़्यादा लोग आरोपी बनाए गए। सैकड़ों गिरफ़्तारियाँ हुईं। कई आरोपी तो आज भी राज्य की अलग-अलग जेलों में बंद हैं।
शिवराज सरकार में मंत्री रहते लक्ष्मीकांत शर्मा की गिरफ़्तारी हुई। शर्मा के क़रीबी खनन क़ारोबारी सुधीर शर्मा और ओएसडी ओपी शर्मा गिरफ़्तार हुए। व्यापमं के धांधलीबाज़ अफ़सरों की लंबी फेहरिस्त सामने आयी। अनेक ऐसे लोगों को सीखचों के पीछे भेजा गया।
पूरे घोटाले में तत्कालीन सरसंघचालक के.एस.सुदर्शन, आरएसएस का बड़ा चेहरा सुरेश सोनी और पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती के नाम भी उछले। घपले की चपेट में मध्य प्रदेश के तत्कालीन राज्यपाल रामनेरश यादव का नाम भी आया। राज्यपाल के ओएसडी धनराज यादव को तो गिरफ़्तार भी किया गया।
महाघोटाले से जुड़े रहे लोगों में 50 की मौतें अब तक हुई हैं। ज़्यादातर मौतें संदेहास्पद क़रार दी गईं। तत्कालीन राज्यपाल रामनरेश यादव के बेटे शैलेश यादव की मौत को भी संदिग्ध माना गया। शैलेश व्यापमं की शिक्षक भर्ती परीक्षा में धांधली के आरोपी बनाये गये थे। मध्य प्रदेश की एसटीएफ़ ने 23 मौतों को संदिग्ध क़रार दिया था। कोर्ट ने भी समय-समय पर अनेक मौतों को संदेहास्पद मानते हुए जाँच एजेंसियों और सीबीआई से तमाम सवाल-जवाब किए हैं। नये सिरे से जाँच करके रिपोर्ट कोर्ट को देने के आदेश हुए।
पूर्व मुख्य मंत्री शिवराज सिंह चौहान और उनकी पत्नी साधना सिंह को भी व्यापमं घोटाले में कठघरे में खड़ा किया गया। दोनों के ख़िलाफ़ परिवहन आरक्षक भर्ती में कांग्रेस नेता के.के. मिश्रा ने दस्तावेज़ी ‘सबूत’ पेश किए। शिवराज इसके ख़िलाफ़ कोर्ट गए। उन्होंने मिश्रा पर मानहानि का मुक़दमा लगा रखा है। कांग्रेस नेता मिश्रा ने शिवराज-साधना के अलावा पूर्व मंत्री और बीजेपी के वरिष्ठ नेता जयंत मलैया की नेता पत्नी सुधा मलैया पर भी आरोप लगाए। पति-पत्नी (मलैया दंपत्ति) ने आरोपों को सिरे से ख़ारिज़ किया।
सरकार में आने के पहले मध्य प्रदेश कांग्रेस ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में कहा था कि सरकार बनी तो शिवराज और बीजेपी सरकार में हुए तमाम घपले-घोटालों की जाँच बिना देर किए कराई जाएगी। बीजेपी शासनकाल के भ्रष्टाचार की जाँच के लिए जन आयोग बनाया जायेगा। जन आयोग व्यापमं घोटाले की जाँच भी करेगा। कमलनाथ की सरकार बनने के क़रीब आठ महीने में भई जन आयोग की दिशा में कोई महत्वपूर्ण क़दम अभी नहीं उठाया गया है।
सवाल यह भी उठाये जा रहे हैं कि सीबीआई की लीपापोती को कमलनाथ सरकार आख़िर क्यों सह रही है? सीबीआई के चालानों के बाद कोर्ट से बड़े और नामी-गिरामी लोग दोषमुक्त क़रार दिये जा रहे हैं। ऐसे में कमलनाथ सरकार नये सिरे से जाँच शुरू करने में आख़िर देर क्यों कर रही है?
बीजेपी की सरकार में भोपाल में एक प्रेस कॉन्फ़्रेंस हुई थी। इसमें कांग्रेस से जुड़े बड़े वकील के.टी.एस. तुलसी ने भी संबोधित किया था। प्रेस कॉन्फ़्रेंस में कपिल सिब्बल और विवेक तन्खा भी मौजूद रहे थे। दिग्विजय सिंह इस कॉन्फ़्रेंस के सूत्रधार थे। हार्डडिस्क में छेड़छाड़ होने सहित अनेक आरोप इन्होंने लगाये थे। साक्ष्य भी दिये थे। इसमें दावा किया गया था, ‘हार्डडिस्क रिकवर की जायेगी तो शिवराज और उनका आधा मंत्रिमंडल तथा बीजेपी-संघ के अनेक बड़े चेहरों को जेल जाना पड़ेगा।’ पूरा मामला दबाने और कांग्रेस के सबूतों को नज़रअंदाज़ करने के आरोप भी जाँच एजेंसियों तथा सरकार पर लगाये गये थे। कुछ कांग्रेसी कह रहे हैं कि अपने इन नेताओं के साक्ष्यों को आधार पर ही कई बड़े चेहरे न केवल बेनकाब हो जाएँगे, बल्कि इन्हें जेल भी जाना पड़ेगा।’
व्यापमं घोटाले को शिद्दत से उठाने और कई अहम दस्तावेज़ी सबूत पेश करने वाले कांग्रेस के नेता के.के. मिश्रा ने ‘सत्य हिन्दी’ से कहा, ‘व्यापमं की जाँच नये सिरे से बेहद ज़रूरी है। मामला सीबीआई को लीपापोती की नीयत से सौंपा गया था। लीपापोती हो गई। मध्य प्रदेश सरकार नये सिरे से एसटीएफ़ की जाँच शुरू करवा सकती है।’
मध्य प्रदेश बीजेपी के मुख्य प्रवक्ता दीपक विजयवर्गीय कहते हैं, ‘बीजेपी और पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की नीयत में कभी खोट नहीं रही। व्यापमं की गड़बड़ियाँ सामने आते ही एफ़आईआर कराई गई। एसटीएफ़ से जाँच बैठाई गई। मामला व्यापक हुआ तो सीबीआई को सौंपने में देर नहीं की गई।’ वह आगे कहते हैं, ‘देश की सबसे बड़ी और निष्पक्ष जाँच एजेंसी पर भी कांग्रेस का भरोसा नहीं होना उसकी कुत्सित मानसिकता को दर्शाता है।’
बीजेपी और आरएसएस के बड़े चेहरों को बचाने के आरोपों पर विजयवर्गीय कहते हैं, ‘हर एंगल से जाँच हुई है। बीजेपी अथवा संघ का कोई नेता कहीं भी दागदार नहीं मिला है। मामले में जो भी लिप्त या दोषी मिले, उनके ख़िलाफ़ एक्शन लेने में बीजेपी ने देर नहीं लगाई। ऐसे लोगों को बिना देर पार्टी से बाहर तक किया गया। इससे ज़्यादा बीजेपी क्या कर सकती है?’
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