मध्य प्रदेश के इंदौर में मानसिक और शारीरिक रूप से कमजोर दिव्यांग बच्चों के एक आश्रम में आधा दर्जन बच्चों की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत और 50 बीमार हुए बच्चों के मामले से जुड़ी अंतरिम रिपोर्ट गुरुवार 4 जुलाई को आ गई। रिपोर्ट में स्पष्ट किया गया है, आश्रम प्रबंधन ने न केवल बच्चों की बीमारी छुपाई, बल्कि एक बच्चे की मौत को भी छुपाया। बिना पोस्टमार्टम के उसका अंतिम संस्कार करवा दिया।
मध्य प्रदेश के इंदौर में पंचकुइयां स्थित मानसिक दिव्यांग युग पुरुष धाम आश्रम तब सुर्खियों में आया था, जब उपचार के दौरान अस्पताल में एक ही दिन में आश्रम के 4 बच्चों की मौत हुई थी। घटनाक्रम 2 जुलाई को हुआ था। शाम होते-होते बीमार बच्चों के अस्पताल पहुंचने का सिलसिला चल पड़ा था। तीन दर्जन से अधिक बीमार बच्चों को एमवाय अस्पताल लाया गया था।
एक ही दिन में 4 मौतों से जुड़ी ख़बर मीडिया में आने पर प्रशासन हरकत में आया था। दो जुलाई के पहले 30 जून को भी एक बच्चे की मौत होना बताया गया था। आश्रम की संचालक अनिता शर्मा ने दावा किया था कि दो दिव्यांग बच्चों में मिर्गी की बीमारी थी। इससे मौत हुई। जबकि अन्य में खून की कमी और इन्फेक्शन बताया गया था। मामला सामने आते ही हड़कंप मच गया था।
दरअसल, इस आश्रम की स्थापना और बाद में संचालन के पीछे राम मंदिर ट्रस्ट के ट्रस्टी स्वामी परमानंद गिरी जी महाराज हैं। ट्रस्ट का अपना अस्पताल भी है। अस्पताल में ही बच्चों का उपचार होता था। हालात बेकाबू होने पर बच्चों को सरकारी अस्पताल में पहुंचाया गया था। सरकारी अस्पताल में मौतों एवं बीमारी के चलते मामला प्रकाश में आया था।
कांग्रेस ने लगाया सनीसनीखेज आरोप
मध्य प्रदेश कांग्रेस के महासचिव और इंदौर के निवासी राकेश सिंह यादव का आरोप है कि मामला हाईप्रोफाइल एवं राम मंदिर ट्रस्ट के ट्रस्टी से जुड़े होने के चलते लीपा-पोती हो रही है। एफ़आईआर दर्ज करने में प्रशासन आनाकानी कर रहा है। राकेश सिंह ने मौतों और बच्चों की बीमारी के पीछे ड्रग ट्रायल का अंदेशा भी जताया है। उन्होंने आश्रम और ट्रस्ट के अस्पताल में लगे सीसीटीवी की बीते तीन माह की रिकार्डिंग को ज़ब्त कर जाँच की मांग भी की है।
अंतरिम रिपोर्ट पेश करने की पुष्टि की
मामले को लेकर ‘सत्य हिन्दी’ ने जांच अधिकारी और 2016 बैच के आईएएस अफसर गौरव बैनल से बात की। उन्होंने इस बात की पुष्टि की कि वह अपनी अंतरिम रिपोर्ट आज दोपहर को इंदौर कलेक्टर को दे चुके हैं। सवालों के जवाब में बैनल ने स्वीकारा कि उन्होंने अपनी जांच में पाया है, ‘आश्रम के प्रबंधन ने बच्चों की बीमारी को छुपाया। पहली मौत को छुपाया। बिना पोस्टमार्टम कराये ही सबसे पहले मारे गए बच्चे का परिजनों के साथ मिलकर अंतिम संस्कार करवा दिया गया।’
बैनल ने एक अन्य सवाल पर कहा, ‘एफआईआर आदि का निर्णय कलेक्टर साहब या महिला बाल विकास विभाग को लेना है।’ उन्होंने सवालों के जवाब में यह स्वीकारा कि आश्रम प्रबंधन यदि समय रहते बच्चों के बीमार होने की सूचना एवं मौत की जानकारी प्रशासन तथा संबंधित विभागों को दे देता तो शायद मौतों की संख्या नहीं बढ़ती। ज़्यादा बच्चे बीमार नहीं पड़ते।
‘जितनी जुबान उतने कारण’
आश्रम में बच्चों के बीमार पड़ने एवं मौतों को लेकर हर जुबान से कारण अलग-अलग बताये जाते रहे। आश्रम संचालक ने कहा था कि बच्चों की मौत मिर्गी से हुई। इंदौर कलेक्टर ने मौत की वजह कालरा बताया। डॉक्टरों ने कहा कि कुछ बच्चे हार्ट अटैक से मारे गए हैं। अलग-अलग कारण और तथ्यों को छुपाये जाने के बाद अनेक सवाल खड़े हुए हैं।
प्रशासन द्वारा आश्रम के खिलाफ 48 घंटों बाद भी एफ़आईआर नहीं करने तथा कोई सख्त एक्शन नहीं लेना भी कई सवाल खड़े कर रहा है।
अब तक ये कमियां आयी हैं सामने
- आश्रम में 100 बच्चे (50- बालक, 50-बालिका) रखने की अनुमति थी, लेकिन 206 बच्चे रखे गए थे।
- एक हॉल या कमरे में 10-12 बच्चे रखे जाने थे, लेकिन 20 से 25 बच्चे रखे जा रहे थे।
- कमरे खुले-खुले और हवादार होने चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं था।
- आश्रम में वॉशरूम और डाइनिंग हाल की पर्याप्त व्यवस्था नहीं थी।
- दिव्यांग बच्चों को योग करने और बेसिक चलने फिरने के लिए छोटा गार्डन या खुली जगह नहीं थी।
- आश्रम में बच्चों को बिल्डिंग की पहली और दूसरी मंजिल में रखा जा रहा था।
- मानसिक दिव्यांग बच्चों की देखरेख के लिए आश्रम में नियमानुसार 5 बच्चों पर एक केयर टेकर होना जरूरी है, लेकिन आश्रम में 15-20 बच्चों पर एक केयर टेकर रखा गया था।
- खाने-पीने के सामान को रखे जाने की माकूल व्यवस्था नहीं थी।
मध्य प्रदेश का अनूठा आश्रम
मध्य प्रदेश का यह अनूठा आश्रम माना जाता था। दरअसल, मानसिक दिव्यांग ऐसे बच्चों जिनका कोई नहीं होता उन्हें एवं ऐसे माता-पिता जो दिव्यांग बच्चों को बोझ समझकर किनारा कर लिया करते हैं, उन्हें पालता-पोसता है। राज्य सरकार भी मोटा अनुदान सद्कार्य के लिए देती है। जाँच-पड़ताल में सामने आ रहा है कि मिल रहे अनुदान के अनुसार व्यवस्थाएं नहीं जुटाई जा रही थीं। लापरवाहियाँ चरम पर थीं।
कलेक्टर से नहीं आया जवाब
पूरे मामले के ताजा हालातों के लिए ‘सत्य हिन्दी’ ने इंदौर कलेक्टर आशीष सिंह को फोन लगाया, लेकिन नहीं उठा। ख़बर लिखे जाने के समय तक कोई प्रतिक्रिया नहीं आई। कलेक्टर को वाट्सऐप और एसएमएस के माध्यम से सवाल भेजे थे… लेकिन किसी भी प्रश्न का उत्तर उनसे नहीं मिल सका था। ये हैं सवाल:-
- एफआईआर हुई क्या?
- एफआईआर की गई है तो धाराएं क्या लगाई गईं?
- किन्हें आरोपी बनाया गया है?
- खाने-पीने के सैंपलों की जांच रिपोर्ट आयी क्या?
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