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फाइल फोटो

क्या कमलनाथ और दिग्विजय सिंह के कारण मध्य प्रदेश में हारी है कांग्रेस?  

इस वर्ष मध्य प्रदेश में कांग्रेस को विधनासभा चुनाव जीतने के लिए सभी अनुकूल परिस्थितियां थी। चुनाव की घोषणा से पहले लग रहा था कि कांग्रेस राज्य में काफी मजबूत है। इसके बावजूद कांग्रेस को बहुत बुरी हार का मुंह देखना पड़ा है। राजनैतिक विश्लेषकों का मानना है कि कांग्रेस की इस हार का एक बड़ा कारण कमलनाथ और दिग्विजय सिंह की गलतियां थी। इन दोनों नेताओं के कारण ही कांग्रेस ने जीती हुई बाजी हारी है। 
5 दिसंबर को हिंदुस्तान टाइम्स अखबार ने मध्य प्रदेश में कांग्रेस की हार को लेकर एक विश्लेषणात्मक रिपोर्ट छापी है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि  कैसे एक जहरीले चुनाव अभियान ने मध्य प्रदेश में कांग्रेस को नुकसान पहुंचाने का काम किया है। रिपोर्ट में कांग्रेस की इस शर्मनाक हार के लिए कमलनाथ और दिग्विजय सिंह की गलतियों को जिम्मेदार बताया गया है। 
हिंदुस्तान टाइम्स की यह रिपोर्ट कहती है कि यह शरद ऋतु मध्य प्रदेश में कांग्रेस के लिए संभावनाओं से भरपूर समय था। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) पिछले 20 वर्षों में से 18 वर्षों तक मध्य प्रदेश की सत्ता में रही है। चुनाव से पहले उसे राज्य में आंतरिक गुटबाजी का सामना करना पड़ा था। राज्य के हर इलाके से उसके पास शक्तिशाली नेता हैं। मध्य प्रदेश की भाजपा सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे थे। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर के संकेत दिखाई दे रहे थे। 
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि कांग्रेस ने हाल ही में कर्नाटक में एक ऐतिहासिक जीत हासिल की थी। कांग्रेस ने कर्नाटक में एक ऊर्जावान अभियान चलाकर अलोकप्रिय भाजपा सरकार को हटाया था। कर्नाटक चुनाव में पार्टी एक विविध सामाजिक गठबंधन बनाने और हाशिए पर पड़ी जातियों और समुदायों को एकजुट करने में कामयाब रही थी। ऐसे में पार्टी का मानना ​​था कि मध्य प्रदेश में भी वह  किसानों, दलितों और आदिवासियों के बड़े घटकों के साथ मौजूद है। 
रिपोर्ट कहती है कि मध्य प्रदेश विधानसभा के चुनाव में कांग्रेस पार्टी की ओर से जिन दो लोगों ने राज्य में अभियान की कमान संभाली थी वे पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ और दिग्विजय सिंह थे। 
इन्होंने मुद्दों पर आधारित जमीनी स्तर के अभियान को चलाने से मुंह मोड़ लिया। उन्होंने अपनी ऊर्जा को तीखी और नकारात्मक पिच में झोंक दिया। जिसमें अभियान के बहुमूल्य घंटे हमला करने में खर्च हो गए। जबकि वरिष्ठ नेताओं और यहां तक ​​कि सहयोगी दलों के समय का उपयोग ज़मीन पर पार्टी की पहुंच को बेहतर बनाने के लिए किया जा सकता था। 

व्यक्तिगत टिप्पणियों और विवादों में बिताया कीमती समय 

हिंदुस्तान टाइम्स की यह रिपोर्ट कहती है कि कांग्रेस एक दशक में अपने सबसे खराब प्रदर्शन पर पहुंच गई है जबकि भाजपा अपने उच्चतम वोट शेयर पर पहुंच गई है। इस चुनाव में भाजपा ने राज्य की 230 विधानसभा सीटों में से 163 सीटें जीतीं और कांग्रेस को 66 सीटों पर ले जाकर काफी पीछे छोड़ दिया है।  
कांग्रेस पार्टी के केंद्र और राज्य के नेताओं ने दो दशकों में भाजपा सरकार को उखाड़ फेंकने का सबसे अच्छा मौका गंवा दिया है। रिपोर्ट कहती है कि कांग्रेस नेताओं को अब एहसास हो रहा है कि उन्होंने कहां पर गलतियां की है। उन्हें एहसास हो रहा है कि उन्होंने मध्य प्रदेश के चुनाव अभियान में विरोधियों पर व्यक्तिगत टिप्पणियों और विवादों में बहुत समय बिताया है जो कि हार का एक प्रमुख कारण है। 
नाम न छापने की शर्त पर कांग्रेस के एक वरिष्ठ कांग्रेस नेता ने कहा है कि इस चुनाव में कांग्रेस ने कई अहम योजनाओं की घोषणा की थी। ये योजनाएं महिलाओं के लिए थी। छात्रों के लिए मुफ्त शिक्षा जैसी योजना थी जिनके बारे में अगर हमने बात की होती तो हमें फायदा हो सकता था। इसके बजाय, हमें ऐसा लगा कि चुनाव अभियान चलाने वाले कमलनाथ और दिग्विजय सिंह का ध्यान नकारात्मक अभियान पर था। 
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तीखा, नकारात्मक, अति आत्मविश्वासी था चुनाव अभियान

मध्य प्रदेश में कांग्रेस के इस चुनाव अभियान के दौरान व्याप्त नकारात्मकता पार्टी के भीतर जल्दी ही स्पष्ट हो गई। हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट में एक दूसरे नेता के हवाले से बताया गया है कि सितंबर में, जब उम्मीदवारों के चयन में गड़बड़ी हुई तो राज्य भर में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए। इसके कारण पार्टी नेतृत्व को कुछ निर्णयों से पीछे हटने के लिए मजबूर होना पड़ा। 
अपनी शिकायतों को लेकर कार्यकर्ताओं ने पार्टी मुख्यालय में आना शुरू कर दिया। इन नाराज कार्यकर्ताओं की समस्याओं को  सुनने और अभियान को एकजुट करने के बजाय कमलनाथ और दिग्विजय सिंह ने अहंकारी दृष्टिकोण अपनाया। 
दिग्विजय सिंह और कमल नाथ निरंकुश व्यवहार दिखा रहे थे। कमलनाथ ने अनुभवी को नजरअंदाज कर सभी समितियों में अपने चहेतों को शामिल किया। वह अपनी सर्वेक्षण रिपोर्ट दिखाकर नेताओं को डांट रहे थे वहीं दूसरी तरफ दिग्विजय सिंह भी बैठकों में दरवाजे बंद करके नेताओं को डांट रहे थे। रिपोर्ट कहती है कि यह बातें उस नेता ने कही है जो कमलनाथ के गृह क्षेत्र महाकौशल से हैं। 
उस नेता ने कहा कि इससे कार्यकर्ता बहुत परेशान हुए हैं। वे हमारी शिकायतें सुनने से ज्यादा हम पर हमला करने पर ध्यान केंद्रित कर रहे थे। इसका नतीजा सबके सामने है। 
रिपोर्ट कहती है कि चुनाव अभियान में इन दोनों नेताओं ने भाजपा के वरिष्ठ नेताओं पर निशाना साधने में अधिक समय बिताया, जबकि जमीनी स्तर से मिले फीडबैक में कहा गया था कि मतदाताओं को कांग्रेस के घोषणापत्र के वादों के प्रति आश्वस्त करने के लिए बेहतर संचार की आवश्यकता है। 
दिग्विजय सिंह ने 7 नवंबर को इंदौर में कहा था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने राज्य भाजपा में विश्वास खो दिया है। उन्होंने कहा था कि प्रधानमंत्री ऐसे प्रचार कर रहे हैं जैसे वह मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार हों। 
12 नवंबर को सागर में एक रैली में, कमलनाथ ने शिवराज सिंह चौहान पर हमला किया और कहा कि वह एक "अभिनेता" थे, जो मध्य प्रदेश में बेरोजगार होने के बाद भी मुंबई में सिनेमा में काम पाएंगे।
दिसंबर में, दिग्विजय सिंह ने केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया पर हमला किया और उन्हें गद्दार कहा। उन्होंने कहा था कि अब हमारे पास कोई सिंधिया नहीं बचा है। अब कोई गद्दार नहीं है। 
कमलनाथ ने आरोप लगाया कि सिंधिया ने पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार से लाभ लिया। उन्होंने संवाददाताओं से कहा था कि ''वह (सिंधिया) काला है या पीला, मुझे इसका जवाब नहीं देना है। 
इन दोनों कांग्रेस नेताओं के साथ ही पार्टी महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने भी सिंधिया पर निशाना साधते हुए उन्हें गद्दार बताया था। उन्होंने सिंधिया की पारिवारिक विरासत और कद के बारे में अपमानजनक व्यक्तिगत टिप्पणियां कीं थी। मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद सिंधिया ने पलटवार किया। उन्होंने कहा, "किसी ने मेरे कद को लेकर टिप्पणी की थी। ग्वालियर-मालवा के लोगों ने दिखा दिया है कि वे कितने लंबे हैं।" 
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आक्रामक अभियान का उल्टा असर हुआ 

हिंदुस्तान टाइम्स की यह रिपोर्ट बताती है कि कांग्रेस के इन नेताओं ने इंडिया गठबंधन के सहयोगियों को भी नहीं बख्शा था। 
कमलनाथ ने उपेक्षापूर्ण व्यवहार करते हुए गठबंधन के लिए सीपीआई (एम) और समाजवादी पार्टी (एसपी) के अनुरोधों को नजरअंदाज कर दिया था। उनके इस रवैये और सीट-बंटवारे से इनकार से नाराज सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने मध्य प्रदेश में चुनाव प्रचार किया। 
नाराज होकर अखिलेश ने 20 अक्टूबर को कहा था कि, अगर कांग्रेस इसी तरह व्यवहार करती रही तो उन पर कौन भरोसा करेगा? अगर हम मन में भ्रम के साथ भाजपा के खिलाफ लड़ेंगे, तो हम सफल नहीं होंगे। 
इन टिप्पणियों के बारे में पूछे जाने पर कमलनाथ ने बिना किसी हिचकिचाहट के मीडियाकर्मियों से कहा था कि अरे भाई, छोड़ो अखिलेश वखिलेश (अखिलेश को भूल जाओ)। उनकी बातों का मतलब निकाला गया कि सपा प्रमुख अखिलेश यादव को वह महत्वहीन मानते हैं। 
अब चुनाव के नतीजों से पता चला कि मध्य प्रदेश में कांग्रेस के इस आक्रामक अभियान का उल्टा असर हुआ है। इस चुनाव में जहां शिवराज सिंह चौहान के गृह क्षेत्र भोपाल-नर्मदापुरम में भाजपा ने 26 सीटें जीती हैं वहीं कांग्रेस ने मात्र पांच सीटें जीतीं हैं। कमलनाथ के गृह क्षेत्र महाकौशल में  कांग्रेस पार्टी 17 सीटों पर सिमट गई, जबकि भाजपा ने यहां 21 सीटें जीतीं है। 
उत्तर प्रदेश से लगे क्षेत्र बुन्देलखंड में कांग्रेस ने 7 और भाजपा ने 22 सीटें जीतीं है। पूरे राज्य में पांच सीटों पर भाजपा और कांग्रेस के उम्मीदवारों के बीच सपा के उम्मीदवारों ने अंतर पैदा किया है।
सबसे ज्यादा नुकसान सिंधिया के गृह क्षेत्र ग्वालियर-चंबल में हुआ, जो परंपरागत रूप से कांग्रेस का गढ़ रहा है। यहां कांग्रेस ने 14 सीटों पर जीत दर्ज करने के लिए अपनी 10 सीटें खो दीं, जबकि भाजपा छह सीटों से बढ़कर 17 पर पहुंच गई। 
हिंदुस्तान टाइम्स की इस रिपोर्ट में एक तीसरे कांग्रेसी नेता के हवाले से बताया गया है कि कमलनाथ का इंडिया गठबंधन के सदस्यों को टिकट देने से इनकार करना ध्यान भटकाने वाला दिखावा बन गया। उन्होंने कहा, "सपा चार सीटें और सीपीआई (एम) दो सीटें मांग रही थी। लेकिन नाथ उन्हें ये सीटें भी देने को तैयार नहीं थे और कह रहे थे कि कांग्रेस को उनकी जरूरत नहीं है।
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क़मर वहीद नक़वी
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