मध्य प्रदेश विधानसभा की 28 सीटों के लिए मैदान में उतरे उम्मीदवारों का सियासी भविष्य मंगलवार को ईवीएम में कैद हो गया। कुछ छिटपुट घटनाक्रमों को छोड़कर मतदान शांतिपूर्ण रहा। वोटों की गिनती 10 नवंबर को होगी। वोटिंग के बाद राजनीतिक विश्लेषकों की निगाह कांग्रेस से बीजेपी में आये पूर्व केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया 'फैक्टर' पर आकर टिक गई हैं। उपचुनाव के नतीजे सिंधिया और उनके समर्थकों का राजनीतिक भविष्य तय करेंगे।
मध्य प्रदेश में विधानसभा सीटों पर थोकबंद उपचुनाव की स्थिति ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके समर्थक विधायकों द्वारा की गई बगावत की वजह से ही बनी। कुल 25 विधायक बागी हुए थे। जबकि तीन सीटों पर उपचुनाव विधायकों के निधन के कारण हुआ।
राज्य की जिन 28 सीटों पर उपचुनाव हुआ, उनमें से 27 सीटें, साल 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने हासिल की थीं। सिर्फ़ आगर सीट बीजेपी के खाते में गई थी। साल 2018 के विधानसभा चुनाव नतीजों के हिसाब से देखें तो कांग्रेस के पास इस उपचुनाव में खोने के लिए बीजेपी की तुलना में बहुत कुछ है।
उपचुनाव में पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने जमकर पसीना बहाया है। कांग्रेस ने पूरे प्रचार को ‘बिकाऊ बनाम टिकाऊ’ पर केन्द्रित रखा। जबकि बीजेपी कमलनाथ सरकार के कथित भ्रष्टाचार और उस दौरान राज्य का विकास ठप होने का राग अलापती रही।
बीजेपी ने कांग्रेस के बाग़ी सभी पूर्व विधायकों को टिकट दिया। उधर, कांग्रेस ने बीजेपी के अनेक बागियों पर दांव खेला। पिछले चुनाव में जो कांग्रेस के टिकट पर लड़े थे, वे उपचुनाव में बीजेपी के प्रत्याशी हो गये। जबकि जो बीजेपी के प्रत्याशी रहे थे, वे कांग्रेस के टिकट पर मैदान में नज़र आये।
कांग्रेस की वापसी नामुमकिन!
उपचुनाव के दौरान प्रदेश में चुनाव प्रचार का जो दृश्य रहा, उसे देखते हुए कांग्रेस की सभी 27 सीटों (2018 में जीती थीं) पर वापसी नामुमकिन मानी जा रही है। इंदौर सट्टा बाजार तो सत्तारूढ़ दल बीजेपी को डेढ़ दर्जन और इससे भी कुछ ज्यादा सीटें, ‘देता-दिलाता’ नज़र आ रहा है।
कमलनाथ पूरे उपचुनाव में सीटों से जुड़े संभावित नतीजों को लेकर कुछ भी बोलने से बचते रहे। वोटिंग के बाद भी वे रिजल्ट और सीटों से जुड़ी संभावनाओं को लेकर कुछ नहीं बोले।
दिग्विजय सिंह निशाने पर
पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ईवीएम को लेकर जताई गई आशंका के कारण बीजेपी के निशाने पर रहे। दिग्विजय सिंह ने कहा, ‘ईवीएम की हैकिंग असंभव नहीं है। दुनिया में लोकतांत्रिक प्रक्रिया का पालन करने वाले ज्यादातर देश जब मतपत्र पर लौटे हैं, तब भारत में ईवीएम पर बने रहना कई तरह के सवाल खड़ा करता है।’
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और बीजेपी के प्रदेशाध्यक्ष वीडी शर्मा ने बिना देर किये दिग्विजय सिंह को निशाने पर ले लिया। शिवराज सिंह ने कहा, ‘तय हार नज़र आ जाने पर दिग्विजय सिंह फिर ईवीएम पर ठीकरा फोड़ने में जुट गये हैं।’ वीडी शर्मा ने भी दिग्विजय सिंह को जमकर आड़े हाथों लिया।
ग्वालियर-चंबल को लेकर आशंकाएं
उपचुनाव वाली कुल 28 सीटों में से 16 ग्वालियर-चंबल संभाग की हैं। वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में सभी 16 सीटें कांग्रेस को मिली थीं। सिंधिया ने स्वयं को जीत का जनक बताया था। बगावत हुई तो एक साथ सभी 16 ने कांग्रेस का साथ छोड़ दिया और सिंधिया के साथ आ गये।
उपचुनाव में जबरदस्त मेहनत के बावजूद ग्वालियर-चंबल संभाग की रिपोर्ट सिंधिया और बीजेपी के लिए पूरी तरह से ‘मंगल’ वाली नहीं बताई जा रही है। पांच से सात सीटें कम हो जाने की संभावनाएं जताई जा रही हैं।
सिंधिया-शिवराज को झटका लगेगा!
सिंधिया समर्थक आधा दर्जन से कुछ ज्यादा मंत्रियों की हालत भी उपचुनाव में खस्ता पायी गई है। सिंधिया के अलावा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने भी खूब पसीना बहाया है। बावजूद इसके 'गड्ढे' भर पाने में पूरी तरह से सफल हो पाने से इनकार किया गया है।शिवराज की नज़र नतीजों पर
मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री पद की चौथी पारी खेल रहे शिवराज सिंह के लिए भी उपचुनाव के नतीजे बेहद अहम रहने वाले हैं। सिंधिया के बाद उनका चेहरा इन उपचुनावों में सबसे आगे रहा है। बीजेपी के असंतुष्टों को साधने में वे कितना सफल रहे? उपचुनाव के नतीजे इस बात को भी स्पष्ट करेंगे।
बीजेपी के कुछ दिलजले तो यह भी संभावना व्यक्त कर रहे हैं कि - ‘उपचुनाव के नतीजों के बाद बीजेपी और सरकार में भी बड़े बदलाव होंगे।’
कोरोना के बावजूद ‘बंपर वोटिंग’
मध्य प्रदेश में भी कोरोना का प्रकोप बरकरार है। उपचुनाव प्रक्रिया के बाद कई क्षेत्रों से संक्रमितों के बढ़ने की सूचनाएं आयीं हैं। विशेषकर उपचुनाव वाले क्षेत्रों में रोगी बढ़े। बावजूद इसके वोटिंग को लेकर ‘उत्साह’ कम नहीं हुआ। प्रदेश में 67 प्रतिशत के लगभग वोटिंग की सूचना है।
80 फीसदी वोट भी पड़े
आगर-मालवा जिले की आगर सीट पर मतदान का आंकड़ा 80 प्रतिशत को पार कर जाने की सूचनाएं आयीं। कई विधानसभा क्षेत्र ऐसे रहे जहां 70 प्रतिशत और इससे कुछ अधिक वोट पड़े। जबकि सबसे कम वोट ग्वालियर पूर्व में 50 के आसपास बने रहने की सूचनाएं मिली थीं।
मध्य प्रदेश विधानसभा में सीटों का मौजूदा गणित बीजेपी को काफी बढ़त दिलाये हुए है। बीजेपी के पास अभी 107 सीटें हैं। जबकि कांग्रेस के पास 87 सीटें हैं। बीएसपी के पास दो, एसपी के पास एक और चार विधायक निर्दलीय हैं।
उपचुनाव के बीच में कांग्रेस के एक और विधायक राहुल सिंह लोधी ने इस्तीफा दिया है। वे दमोह से विधायक थे। वे इस्तीफा देकर बीजेपी में शामिल हो चुके हैं। दमोह सीट पर उपचुनाव बाद में होंगे। उपचुनाव के नतीजों के बाद विधानसभा में जोर-आजमाइश 229 सीटों के हिसाब से होगी। ऐसे में स्पष्ट बहुमत का आंकड़ा 115 होगा।
बीजेपी को चाहिए आठ सीटें
इस कोण (बहुमत के लिए 115 नंबर) से बीजेपी महज आठ सीट दूर है। यानी बीजेपी को केवल आठ सीटें मिल गईं तो भी वह सुस्पष्ट बहुमत में आ जायेगी। वैसे बीजेपी ने बीएसपी के दो, एसपी के एक और चारों निर्दलीय विधायकों को कमलनाथ सरकार के गिरने के बाद से ही साध रखा है। एक लाइन में कहें तो, ‘बीजेपी के हाथों से मध्य प्रदेश की सत्ता के फिसलने के आसार कतई नहीं हैं।’
कमलनाथ और कांग्रेस की सरकार में वापसी केवल उसी सूरत में हो सकती है जब वह सभी 28 सीटें जीतें। यदि ऐसा हुआ तो कांग्रेस 115 सीटें लेकर सबसे बड़ा दल हो जाएगी। कांग्रेस को सरकार बनाने के लिए बुलाना राज्यपाल की मजबूरी हो जाएगा।
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