क्या चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर शिवसेना को बिहार का फ़ॉर्मूला पढ़ा गए हैं? ऐसा इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि शिवसेना के रुख को देखकर तो यही लग रहा है। गुरुवार को शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने भारतीय जनता पार्टी को गठबंधन पर निर्णय लेने के लिए 48 घंटे का अल्टीमेटम दिया था। उसके बाद मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस मातोश्री भी गए थे, लेकिन जैसा अनुमान लगाया जा रहा था कि उसी दिन दोनों दलों में गठबंधन को लेकर फ़ैसला हो जाएगा, वैसा नहीं हुआ।
सीएम का आधा कार्यकाल माँगा
शिवसेना ने लोकसभा और विधानसभा की आधी-आधी सीटों के साथ-साथ मुख्यमंत्री के आधे-आधे कार्यकाल का फ़ार्मूला दिया है। शिवसेना का कहना है कि प्रधानमंत्री बीजेपी का है तो मुख्यमंत्री पद के पहले ढाई साल का कार्यकाल उसे मिलना चाहिए। इसके अलावा शिव सेना ने कहा है कि विधानसभा की 20 सीटें सहयोगी दलों को मिलें और वह बीजेपी अपने खाते से बाँटे।
शिवसेना को उम्मीद, झुकेगी बीजेपी
शिवसेना के फ़ॉर्मूले का इशारा बीजेपी द्वारा बिहार में किए गए गठबंधन की ओर जाता है। शिवसेना को यह भरोसा है कि लोकसभा में अपनी सीटें बढ़ाने के लिए बीजेपी उसके सामने झुक सकती है जैसे वह बिहार में नीतीश कुमार के आगे झुकी है।
राजनीतिक गलियारों में यह भी चर्चा है कि कहीं नीतीश के सलाहकार प्रशांत किशोर ही कोई ऐसा फ़ॉर्मूला तो नहीं बता गए जिससे शिवसेना का रुख कड़क हो गया है।
विरोधियों को क़रीब ला रहे पवार
दूसरी ओर, यह शरद पवार का राजनीतिक अनुभव और करतबबाज़ी ही है कि एक-दूसरे के धुर-विरोधी नेता भी ना सिर्फ़ मंच साझा कर रहे हैं बल्कि नई राजनीतिक संभावनाओं को भी तलाश रहे हैं। बुधवार को दिल्ली में शरद पवार ने मंच से पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से यह घोषणा करवा दी कि वह मोदी को हराने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर गठबंधन के साथ हैं। इसके साथ ही मुंबई में महाराष्ट्र नव निर्माण सेना (मनसे), कांग्रेस-राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी गठबंधन का कैसे हिस्सा बनेगी, इसका भी रास्ता बनाने में वह जुटे हैं।
मतों को बँटने से रोकने की कोशिश
शरद पवार की यह राजनीतिक करतब मोदी विरोधी मतों के विभाजन को रोकने या कम से कम करने की है। पवार महाराष्ट्र में मनसे को अपनी पार्टी या अपने खाते में लेकर कांग्रेस को अन्य प्रदेशों या मुंबई महानगर में होने वाली परेशानी से बचाने का प्रयास भी कर रहे हैं। प्रकाश अम्बेडकर की पार्टी से राष्ट्रवादी कांग्रेस के तार नहीं जुड़ते हैं लिहाजा वे उसे कांग्रेस के खाते में डाल कर उस टकराव को कम करने का प्रयास कर रहे हैं।
महाराष्ट्र में कांग्रेस और एनसीपी दोनों ही पार्टियाँ 20-20 के फ़ॉर्मूले पर चुनाव लड़ने वाली हैं। 8 सीटें सहयोगी दलों के लिए छोड़ी गई हैं। इन सहयोगी दलों में मनसे, भारिप बहुजन महासंघ, स्वाभिमानी पक्ष, शेतकरी कामगार पार्टी आदि शामिल हो सकती हैं।
35 सीटें जीतने की कोशिश
महाराष्ट्र की 48 में से क़रीब 35 सीटों पर जीत दर्ज करने की है। दिल्ली में राहुल गाँधी और शरद पवार की नज़दीकियों की वजह से पहले के चुनावों की तरह इस बार ज़मीन पर गठबंधन की पार्टियों में टकराव और बयानबाज़ी देखने को नहीं मिल रही है वहीं दूसरी ओर शिवसेना-बीजेपी के नेताओं के बीच आरोप-प्रत्यारोप का खेल जारी है।
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