राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) प्रमुख शरद पवार की मानें तो एग्ज़िट पोल सिर्फ़ नौटंकी हैं? पवार ने ना सिर्फ़ एग्ज़िट पोल पर सवाल उठाए हैं बल्कि पूरे इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की भूमिका पर भी निशाना साधा है। उन्होंने कहा कि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के पीछे बड़ी शक्तियाँ खड़ी हैं जिसकी वजह से वे एक अलग प्रकार की ही बात करते हैं, लेकिन दो दिन बाद सच सामने आ जाएगा। पवार कहते हैं कि इस प्रकार के एग्ज़िट पोल लोगों की चिंता बढ़ा देते हैं। इसके पीछे कारण यह है कि ज़मीनी स्तर पर जो हक़ीक़त है उसके ख़िलाफ़ जब कोई तसवीर दिखाई जाती है तो इस प्रकार के विचार आने स्वाभाविक हैं कि हम किस दिशा में जा रहे थे और अचानक यह कौन सा रास्ता आ गया।
पवार ने कहा कि उन्हें अनेक लोगों के फ़ोन आये और सबको वह यही समझाते रहे कि चिंता करने की कोई ज़रूरत नहीं है। पवार कहते हैं कि आज देश और देश के बाहर सब जगह यही चर्चा का केंद्र बिंदु है कि इन चुनावों के बाद भारत किस दिशा में आगे जाने वाला है, इसलिए भी इस प्रकार के एग्ज़िट पोल लोगों को चौंका रहे हैं।
पवार का बयान ऐसे समय में आया है, जब एग्ज़िट पोल आये हैं और सबने भारतीय जनता पार्टी और उसके गठबंधन की सत्ता में दमदार वापसी का दावा किया है। इन एग्ज़िट पोल का दावा साल 2014 की मोदी लहर में बीजेपी और उसके सहयोगियों को हासिल हुई सीटों से भी ज़्यादा मजबूत दिखाया गया। यानी पिछले लोकसभा चुनाव में बीजेपी और उसके सहयोगियों ने जितनी सीटें जीतीं थी इस बार उससे भी ज्यादा जीतेंगे।
यही मीडिया पिछले तीन महीने से किसी प्रकार की लहर नहीं होने और 2014 जैसी किसी जीत की संभावनाओं को एक सिरे से खारिज करता दिखा है। फिर सातवें चरण के मतदान के ख़त्म होते ही उसे यह लहर कहाँ से मिल गयी, यह एक बड़ा सवाल है।
क्या यह एग्ज़िट पोल किसी साज़िश का हिस्सा हैं? यह सवाल सिर्फ़ सोशल मीडिया ही नहीं नेताओं के वक्तव्यों में भी सुनाई दिया। कांग्रेस की महासचिव प्रियंका गाँधी ने इसे साज़िश बताते हुए पार्टी कार्यकर्ताओं से अपील की है की वे हौसला बनाये रखें। उन्होंने कहा कि यह हमारे हौसले को तोड़ने का खेल है इससे हिम्मत मत हारिये। कांग्रेस महासचिव ने कहा कि ऐसे में आपकी सावधानी और अधिक बढ़ जाती है, आप स्ट्रांग रूम और मतगणना के दौरान डटे रहियेगा।
ऐसी ही अपील समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने भी की है और कार्यकर्ताओं को सतर्क रहने की सलाह दी है। टेलीविजन चैनलों के एग्ज़िट पोल के जवाब में सोमवार को सोशल मीडिया पर अनेकों पत्रकारों के एग्ज़िट पोल भी छाये रहे। यही नहीं, थोड़ी देर बाद उत्तर प्रदेश, बिहार, हरियाणा, पंजाब, मध्य प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों से ईवीएम मशीनों की ख़बरें भी सोशल मीडिया पर छा गयीं।
उत्तर प्रदेश में चंदौली लोकसभा सीट की सकलडीहा विधानसभा, ग़ाज़ीपुर लोकसभा, प्रतापगढ़ लोकसभा, बिहार की पाटलिपुत्र सीट में ईंट के भट्टे पर चुनाव कर्मचारियों के साथ ईवीएम के मिलने, सारण और महाराजगंज लोकसभा क्षेत्र में ट्रक भरकर ईवीएम पकड़े जाने की ख़बरों से सोशल मीडिया भर गया। एग्ज़िट पोल को लेकर ममता बनर्जी ने कहा कि यह आंकड़े इसलिए बढ़ाकर दिखाए जा रहे हैं कि सरकार ईवीएम में हेराफेरी कर सके। इन बयानों को उस समय और बल मिलता है जब लोग सोशल मीडिया पर लावारिस हालत में, होटल में, किसी गोदाम या किसी गाड़ी में भरकर ले जाई जा रही ईवीएम मशीनों की तसवीरें या वीडियो शेयर करते हैं। कितने ही वीडियो ऐसे भी देखे जा सकते हैं जिनमें सरकारी अधिकारियों की मदद से ईवीएम को स्ट्रांग रूम तक पहुँचाने की बातें की जा रही हैं। यह सच हो सकता है कि ये ईवीएम रिजर्व श्रेणी की होंगी लेकिन यदि स्ट्रांग रूम को खोला जाता है तो क्या वे कागजी कार्रवाई पूरी की जा रही हैं जो चुनाव आयोग ने आदर्श आचार संहिता में निर्धारित कर रखी हैं? यदि ऐसा हो रहा होता तो इतना बवाल नहीं मचता।
ग़ाज़ीपुर, चंदौली की जो घटनाएँ बड़े पैमाने पर प्रकाश में आईं, उससे यह पता चल रहा है कि प्रत्याशियों तक को कोई जानकारी प्रशासन द्वारा नहीं दी गयी। ऐसे में जो सबसे बड़ा असर हो रहा है वह यह कि जनता और प्रशासन के बीच तनाव बढ़ रहा है।
जनता को सूचना नहीं दिए जाने से उसे लग रहा है कि प्रशासन पार्टी विशेष के इशारों पर काम कर रहा है। हमारे देश में ईवीएम पहले से ही विवादों में घिरी है। इस चुनाव के पहले या चुनाव के दौरान विपक्षी दलों ने बहुत बार चुनाव आयोग से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक अपनी गुहार लगाई लेकिन उन्हें कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिला।
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