आंध्र प्रदेश में सत्ता परिवर्तन हो गया है। जगन मोहन रेड्डी राज्य के नये मुख्यमंत्री होंगे। विधानसभा चुनाव में जगन की वाईएसआर कांग्रेस ने चंद्रबाबू नायडू की तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) को करारी मात दी है। चुनाव में वाईएसआर कांग्रेस को तीन-चौथाई से ज़्यादा बहुमत मिला है। कुल 151 सीटों पर वाईएसआर कांग्रेस की जीत हुई है, जबकि टीडीपी को केवल 23 सीटें ही मिल पायी हैं।
फ़िल्म स्टार पवन कल्याण की पार्टी जन सेना को केवल एक ही सीट मिली है। पवन कल्याण ने दो सीटों से चुनाव लड़ा था और वह दोनों ही सीटों से चुनाव हार गये। चुनाव में चन्द्रबाबू के बेटे लोकेश की भी हार हुई है। चंद्रबाबू मंत्रिमंडल में तीन को छोड़कर सभी मंत्री चुनाव हार गये हैं। विधानसभा अध्यक्ष और उपाध्यक्ष की भी हार हुई है।
लोकसभा चुनाव में भी वाईएसआर कांग्रेस का ही दबदबा रहा। आंध्र में लोकसभा की 25 सीटों में से 22 पर वाईएसआर कांग्रेस की जीत हुई जबकि सिर्फ़ 3 सीटें ही कांग्रेस के खाते में गयीं।
टीडीपी के लिए 1983 में पार्टी की स्थापना से लेकर अबतक की सबसे बुरी हार है। चुनाव नतीजों से साफ़ है कि इस बार आंध्र प्रदेश में जगन नाम की सुनामी रही। राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, राज्यभर में लोगों ने जगन मोहन रेड्डी के नाम पर वोट दिया। वाईएसआर के उम्मीदवारों को जगन मोहन रेड्डी के प्रतिनिधि के तौर पर देखा गया। इस बारे में दो राय नहीं कि इस बार चंद्रबाबू के ख़िलाफ़ लोगों का ग़ुस्सा चरम पर था। इसकी कई वजहें हैं। सबसे बड़ी वजह वे मुद्दे हैं जिनका नाम लेकर चंद्रबाबू ने एनडीए और मोदी सरकार से समर्थन वापस ले लिया था।
क़रीब 4 साल तक एनडीए सरकार/मोदी सरकार का हिस्सा रहने के बाद चंद्रबाबू ने अचानक समर्थन वापस ले लिया था। चंद्रबाबू का आरोप था कि प्रधानमंत्री मोदी जानबूझकर आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा नहीं दे रहे हैं।
इतना ही नहीं, चंद्रबाबू का यह भी आरोप था कि मोदी सरकार आंध्र प्रदेश के विकास के लिए ज़रूरी निधियाँ जारी नहीं कर रही है। जबकि मोदी सरकार ने इन आरोपों को झूठा करार दिया और कहा कि चंद्रबाबू ने ख़ुद आंध्र प्रदेश के लिए विशेष राज्य के दर्जे के बजाए विशेष पैकेज की माँग की थी। केंद्रीय मंत्रियों ने इस माँग की बाबत केंद्र को लिखे चंद्रबाबू के पत्र भी जारी किये। इतना ही नहीं, मोदी सरकार की ओर से आंध्र प्रदेश के लिए जारी सारी निधियों का भी ब्यौरा दिया गया। इस प्रकार जिन मुद्दों को लेकर चंद्रबाबू ने मोदी सरकार से बाहर आने का कारण बताया था वे मुद्दे भी उनकी हार का एक प्रमुख कारण बने।
बड़ी बात यह भी है कि जगन मोहन रेड्डी विशेष राज्य के दर्जे की माँग के समर्थन में लगातार संघर्ष करते रहे हैं। उन्होंने अपने सांसदों से इसी मुद्दे को लेकर लोकसभा से इस्तीफ़ा भी दिलवाया था।
जानकारों के अनुसार, चंद्रबाबू के हारने की एक और बड़ी वजह 'वायदाख़िलाफ़ी' है। 2014 के समय चंद्रबाबू ने चुनावी घोषणा पत्र में जो वायदे किये थे उनमें से कइयों को वह पूरा नहीं कर पाए। कई वायदों को पूरा करने की बात पर उन्होंने पलटी मार दी।
चंद्रबाबू की हार की एक और वजह उनका अपनी जाति के लोगों की ही मदद करने का आरोप है। चंद्रबाबू पर पहले महीने से ही यह आरोप लगने लगे थे कि वे सिर्फ़ और सिर्फ़ अपनी जाति के लोगों को सरकारी ठेकों, कामकाज में तवज्जो दे रहे हैं। उनपर जातिवाद और परिवारवाद को बढ़ाने का भी आरोप है। चंद्रबाबू नई राजधानी अमरावती बनाने और प्रतिष्ठित पोलावरम सिंचाई परियोजना को पूरा करने में भी नाकाम रहे। चंद्रबाबू पर लगातार बढ़ते आरोपों की झड़ी से भी जगन मोहन रेड्डी को फायदा हुआ। ऊपर से जगन और उनकी पार्टी ने पिछले पाँच सालों के दौरान जन-समस्याओं को लेकर सड़क से लेकर संसद तक संघर्ष किया। वह लगातार जनता के संपर्क में रहे।
जगन ने राज्यभर में 3000 से भी ज़्यादा किलोमीटर की पदयात्रा की और लोगों की समस्याओं को जाना। इस पदयात्रा के दौरान इन समस्याओं को हल करने का भरोसा दिया, वायदा किया। चुनाव के दौरान लोगों ने इन्हीं वायदों पर भरोसा कर जगन को महाजीत दिलाई। केंद्र की राजनीति में किंग या फिर किंगमेकर बनने की कोशिश में लगे चंद्रबाबू की अब तक की सबसे बुरी हार हुई है।
आंध्र प्रदेश के चुनाव में दो बड़ी राष्ट्रीय पार्टियाँ - बीजेपी और कांग्रेस कुछ भी ख़ास नहीं कर पायीं। दोनों को राज्य से विधानसभा और लोकसभा की एक भी सीट नहीं मिली। आंध्र में मोदी लहर नहीं चली। आंध्र में सिर्फ़ और सिर्फ़ जगन के नाम पर वोटों की सुनामी रही।
आंध्र प्रदेश में नये राजनीतिक युग की शुरुआत हुई है। 46 साल के जगन मोहन रेड्डी आंध्र की नयी पहचान बनकर उभरे हैं। केंद्र में भी उनकी हैसियत बड़ी हुई है। सीटों के लिहाज से जगन की पार्टी नयी लोकसभा में चौथी सबसे बड़ी पार्टी है।
जानकार कहते हैं कि जगन का मुख्यमंत्री के तौर पर लंबा कार्यकाल होगा। 69 साल के चंद्रबाबू का राजनीतिक महत्व कम हो गया है। जगन की टक्कर का कोई नेता दिखाई नहीं दे रहा है। एक मायने में यह आंध्र में जगन युग की शुरुआत कही जा सकती है। वैसे भी मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुँचने के लिए जगन ने काफ़ी संघर्ष किया है।अपने पिता, अविभाजित आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री और कद्दावर नेता वाई एस राजशेखर रेड्डी (वाईएसआर) के निधन के बाद जगन मुख्यमंत्री बनना चाहते थे लेकिन कांग्रेस आलाकामन ने उनकी नहीं सुनी। इससे नाख़ुश जगन ने अपने पिता के नाम पर अलग राजनीतिक पार्टी बना ली। इसके बाद भ्रष्टाचार के मामलों में उन्हें जेल भी जाना पड़ा। 2014 में हुए चुनाव में वह चंद्रबाबू से हार गये थे। लेकिन इस बार उन्होंने शानदार तरीक़े से हार का बदला लिया है।
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