डील-डौल और हाव-भाव में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी की प्रतिछाया लगने वाली प्रियंका गाँधी के औपचारिक रूप से राजनीति में आने से कांग्रेस के भीतर एक नई झँकार सुनाई देने लगी है। इससे कांग्रेस को एक स्थापित महिला नेता मिल गई है। दूसरी तरफ़ बीजेपी को कांग्रेस पर परिवारवाद का ठप्पा पुख़्ता करने का नया मौक़ा भी मिला है। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या प्रियंका गाँधी 2019 के लोकसभा चुनावों पर कोई असरदार छाप छोड़ पाएँगी। सवाल यह भी है कि आगे चलकर वह कांग्रेस अध्यक्ष और अपने भाई राहुल गाँधी के लिए कोई चुनौती तो साबित नहीं होगी।

प्रियंका गाँधी को कांग्रेस का महासचिव और पूर्वी उत्तर प्रदेश का प्रभारी बनाकर राहुल गाँधी ने एक बड़ा दाँव खेला है और एक बड़ा ख़तरा भी मोल लिया है। अपने सबसे मज़बूत गढ़ उत्तर प्रदेश में कमज़ोर होने के बाद कांग्रेस राष्ट्रीय राजनीति में लड़खड़ाने लगी थी।