चुनाव से पहले सरकार दो लाख करोड़ के ‘फ़्री गिफ़्ट’ बाँट सकती है। ये तोहफ़े ख़ास कर किसानों और मध्य वर्ग को दिए जाने वाले हैं क्योंकि ऐसा माना जा रहा है कि ये दो वर्ग सरकार से बहुत नाराज़ हैं। दूसरे यह कि सरकार अगर ऐसा करती है तो गाँवों और शहरी दोनों तरह की जनता को चुनाव के पहले ख़ुश करने की कोशिश करेगी।
हाल ही में राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव नतीजों के बाद सरकार अब अपनी रणनीति बदल रही है। बता दें कि इन तीन राज्यों में किसानों में ख़ासा रोष था और कई सर्वे में कहा गया है कि विधानसभा चुनावों में बीजेपी को इनके ग़ुस्से का सामना करना पड़ा। नए साल के पहले दिन दिए अपने इंटरव्यू में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी किसानों की आय बढ़ाने का ज़िक्र करते हुए कुछ योजनाओं की घोषणा के संकेत दिए थे। कई रिपोर्टों में कहा गया है कि सरकार किसानों के लिए कई योजनाएँ लाने पर विचार कर रही है।
किसानों को लुभाने की तैयारी
ख़बरें हैं कि सरकार इस पर विचार कर रही है कि किसानों को प्रति हेक्टेयर 2000-4000 रुपये प्रति फ़सल दी जाए। यानी किसान साल में उस ज़मीन से दो फ़सल उगाएगा तो इसकी दुगुनी राहत मिलेगी। यदि यह योजना लागू होती है तो सरकार पर क़रीब 1000 अरब रुपये का ख़र्च आएगा। बता दें कि तेलंगाना में किसानों को फ़सल के सीज़न से पहले ही 4000 रुपये प्रति एकड़ मिल जाते हैं।
- सरकार किसानों को बिना ब्याज के कर्ज़ देने पर विचार कर रही है। यदि ऐसा हुआ तो एक अनुमान के मुताबिक़ हर साल सरकार को क़रीब 120 अरब रुपये बैंकों को चुकाने होंगे। इतना ही नहीं, इसके अलावा जो अन्य योजनाएँ हैं उनपर भी क़रीब 400 अरब रुपये का ख़र्च आने का अनुमान है।
हालाँकि ऐसी रिपोर्टें हैं कि प्रति हेक्टेयर पैसे की राहत देने पर ब्याज रहित कर्ज़ नहीं देने पर भी विचार किया जाएगा।
शहरी मध्य वर्ग को साधने की तैयारी
मोदी सरकार ने जीएसटी छोटे व्यवसायों को कर देने से छूट दी है और अब आयकर सीमा को बढ़ाने पर विचार कर रही है। फ़िलहाल आयकर छूट की सीमा ढाई लाख रुपये है, जबकि इसे बढ़ाकर पाँच लाख रुपये किया जा सकता है।
आयकर सीमा को बढ़ाने और अन्य छूट दिए जाने की स्थिति में 250 अरब रुपये के राजस्व का नुक़सान हो सकता है।अन्य ख़र्चे भी बढ़ेंगे
हाल ही में घोषित किए गए 10 फ़ीसदी आरक्षण को एडजस्ट करने के लिए सरकार कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में सीटें बढ़ाने के लिए करोड़ों रुपये ख़र्च करने की योजना बना रही है। इसके अलावा भी कई अलग-अलग क्षेत्रों के लिए घोषणाएँ की जा सकती हैं। यानी ख़र्चे बढ़ेंगे ही।
तो इसलिए है रिजर्व बैंक के पैसे पर नज़र?
आरबीआई के 9.7 लाख करोड़ रुपये के रिजर्व में से कॉन्टिजेंसी फ़ंड 2.3 लाख करोड़ रुपये है जिसे बिल्कुल छुआ भी नहीं जा सकता है। सरकार आरबीआई से कॉन्टिजेंसी फ़ंड के इन रुपयों को माँग रही है जिससे कि 2-3 साल तक सरकार के ख़र्चे आसानी से चलते रहे।- सरकार ने इसके लिए काफ़ी दबाव भी बनाया, लेकिन आरबीआई इसे देने को तैयार नहीं था। इन्हीं ख़बरों के बीच केंद्रीय बैंक और सरकार के बीच तनाव की ख़बरें भी आई थीं। इसी दौरान तत्कालीन आरबीआई गवर्नर उर्जित पटेल ने इस्तीफ़ा दे दिया। तब मीडिया रिपोर्टों में कहा गया था कि इस्तीफ़े की एक बड़ी वजह यह भी है।
और छोटी-सी राहत
अब सरकार को जो थोड़ी राहत की उम्मीद है वह आरबीआई द्वारा दिए जाने वाले लाभांश से है। मार्च तक आरबीआई 400 अरब रुपये तक सरकार को दे सकता है। हालाँकि, सरकार के लिए यह ऊँट के मुँह में जीरा के समान होगा।
सरकार की चिंता क्या है?
दरअसल, सरकार की जितनी चिंता चुनावी लुभावने वादों की है उतना ही ज्य़ादा दबाव राजकोषीय घाटा को कम करने का भी है। सरकार का लक्ष्य है कि मार्च 2020 तक राजकोषीय घाटे को 3.1 और मार्च 2021 तक इसे 3 फ़ीसदी से नीचे लाया जाए। बजट 2018-19 में सरकार का अनुमान है कि इसकी आय क़रीब 23 लाख करोड़ रुपये होगी और ख़र्च 29 लाख करोड़ होगा। यानी 6.24 लाख करोड़ के राजकोषीय घाटे (जीडीपी का 3.3 फ़ीसदी) का लक्ष्य रखा गया। लेकिन हाल ही क्रेडिट रेटिंग एजेंसी ने अनुमान जताया है कि यह घाटा 3.4 फ़ीसदी तक पहुँच सकता है। यदि सरकार चुनाव में बड़ी घोषणाएँ करती है तो राजकोषीय घाटे को 3.3 फ़ीसदी के नीचे रखने का लक्ष्य पाना मुश्किल होगा। बता दें कि 2017-18 में राजकोषीय घाटा जीडीपी का 3.5 फ़ीसदी (5.9 लाख करोड़) रहा था।
सरकार यदि इन फ़ैसलों पर घोषणाएँ करती है तो अगले वित्त वर्ष में जिसकी भी सरकार बनेगी उसपर भारी आर्थिक दबाव रहेगा।
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