कोलकाता में हुई ममता बनर्जी की विशाल जनसभा 1977 की याद ताज़ा कर रही है। उस समय रामलीला मैदान में इंदिरा गाँधी के विरुद्ध इतनी ही जबर्दस्त जनसभा हुई थी। विरोधी दलों के नेता दहाड़ रहे थे और इंदिरा का सिंहासन डोल रहा था। सारा रामलीला मैदान खचाखच भरा हुआ था और हमें पास में स्थित हिंदी संस्था संघ की छत पर चढ़कर नेताओं के भाषण सुनने पड़े थे।
कोलकाता में ममता बनर्जी ने दिखाया आपातकाल
- चुनाव 2019
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- 21 Jan, 2019

कोलकाता में हुई ममता बनर्जी की विशाल जनसभा 1977 की याद ताज़ा कर रही है। उस समय रामलीला मैदान में इंदिरा गाँधी के विरुद्ध इतनी ही जबर्दस्त जनसभा हुई थी। क्या दोनों रैलियों में कोई समानता है?
- ममता की सभा में भी लाखों श्रोता थे और वक्ताओं के आक्रमण भी कम तीखे नहीं थे लेकिन यह समझ में नहीं आ रहा कि मोदी के ख़िलाफ़ इतनी तेज़ जहरीली हवा क्यों बह रही है? मोदी ने न तो आपातकाल थोपा, न विरोधी नेताओं को हथकड़ियाँ पहनाईं और न ही अख़बारों और टीवी चैनलों का गला घोंटा! तो फिर हुआ क्या?
हुआ यह कि 2014 में देश में पहली बार किसी एक विरोधी दल की स्पष्ट बहुमत की सरकार बनी। लोगों की आशाएँ-अपेक्षाएँ आसमान छूने लगीं। हिंदुत्ववादी सोचने लगे अब सावरकर और गोलवलकर के सपनों का भारत बनेगा। ग़ैर-राजनीतिक जनता ने सोचा कि एक मज़बूत नेता आया है, पहली बार। वह भारत का नक्शा ही बदल देगा।