भाजपा की राष्ट्रीय समिति के अधिवेशन पर मायावती और अखिलेश का गठबंधन काफ़ी भारी पड़ गया। गठबंधन की ख़बर अख़बारों और टीवी चैनलों पर ख़ास ख़बर बनी और उसे सर्वत्र पहला स्थान मिला जबकि मोदी और अमित शाह के भाषणों को दूसरा और छोटा स्थान मिला। भाजपा के अन्य वरिष्ठ नेताओं का तो कहीं ज़िक्र तक नहीं है। ऐसा क्यों हुआ? क्योंकि यह अकेला प्रादेशिक गठबंधन राष्ट्रीय राजनीति को नया चेहरा दे सकता है। मोदी के 80 मिनिट के भाषण में भी इसी गठबंधन का सबसे ज्यादा मज़ाक उड़ाया गया।
कौन मज़बूत और कौन मजबूर?
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- 18 Feb, 2019

हमारे प्रधान सेवकजी ने नोटबंदी, जीएसटी, फ़र्जीकल स्ट्राइक, बोगस आर्थिक आरक्षण, रफ़ाल-सौदा, हवाई विदेशी घुमक्कड़ी आदि कई कारनामे कर दिए। औरंगज़ेबी शैली में अपने पितृ तुल्य नेताओं को बर्फ में जमा दिया। पार्टी मंचों पर चाटुकारिता को उत्कृष्ट कला का दर्जा दे दिया। क्या यह मजबूती का प्रमाण है?
मजबूत यानी क्या ?
मोदी ने बिल्कुल ठीक सवाल देश के करोड़ों मतदाताओं से पूछा। उन्होंने पूछा कि आप कैसी सरकार चाहते हैं? मजबूत या मज़बूर? गठबंधन की सरकार यदि बन गई तो वह मजबूत तो हो ही नहीं सकती। वह तो मज़बूर ही रहा करेगी। मोदी यहां यह मानकर चल रहे हैं कि उन्हें 2019 की संसद में स्पष्ट बहुमत मिल जाएगा। कैसे मिल जाएगा, वह यह नहीं बता सकते याने अपने भविष्य को ही वे खुद देख नहीं पा रहे हैं। दूसरा प्रश्न यह भी कि मजबूत यानी क्या ?