भाजपा की राष्ट्रीय समिति के अधिवेशन पर मायावती और अखिलेश का गठबंधन काफ़ी भारी पड़ गया। गठबंधन की ख़बर अख़बारों और टीवी चैनलों पर ख़ास ख़बर बनी और उसे सर्वत्र पहला स्थान मिला जबकि मोदी और अमित शाह के भाषणों को दूसरा और छोटा स्थान मिला। भाजपा के अन्य वरिष्ठ नेताओं का तो कहीं ज़िक्र तक नहीं है। ऐसा क्यों हुआ? क्योंकि यह अकेला प्रादेशिक गठबंधन राष्ट्रीय राजनीति को नया चेहरा दे सकता है। मोदी के 80 मिनिट के भाषण में भी इसी गठबंधन का सबसे ज्यादा मज़ाक उड़ाया गया।
मजबूत यानी क्या ?
मोदी ने बिल्कुल ठीक सवाल देश के करोड़ों मतदाताओं से पूछा। उन्होंने पूछा कि आप कैसी सरकार चाहते हैं? मजबूत या मज़बूर? गठबंधन की सरकार यदि बन गई तो वह मजबूत तो हो ही नहीं सकती। वह तो मज़बूर ही रहा करेगी। मोदी यहां यह मानकर चल रहे हैं कि उन्हें 2019 की संसद में स्पष्ट बहुमत मिल जाएगा। कैसे मिल जाएगा, वह यह नहीं बता सकते याने अपने भविष्य को ही वे खुद देख नहीं पा रहे हैं। दूसरा प्रश्न यह भी कि मजबूत यानी क्या ?
कोई सरकार यदि पांच साल तक देश की छाती पर लदी रहे तो क्या उसे आप मजबूत कहेंगे ? ऐसी मजबूती को देश चाटेगा क्या ? ऐसी सरकारें अपनी मूर्खताएं बड़ी मजबूती से करती हैं। जैसे इंदिरा गांधी ने आपात्काल ठोक दिया था, राजीव गांधी ने भारत को बोफोर्स और श्रीलंका के दल-दल में फंसा दिया था और नेहरु चीन से मात खा गए थे।
औरंगज़ेबी शैली
हमारे प्रधान सेवकजी ने नोटबंदी, जीएसटी, फ़र्जीकल स्ट्राइक, बोगस आर्थिक आरक्षण, रफाल-सौदा, हवाई विदेशी घुमक्कड़ी आदि कई कारनामे कर दिए। औरंगज़ेबी शैली में अपने पितृ तुल्य नेताओं को बर्फ में जमा दिया। पार्टी मंचों पर चाटुकारिता को उत्कृष्ट कला का दर्जा दे दिया। क्या यह मजबूती का प्रमाण है? अटलजी की सरकार गठबंधन की सरकार थी और अल्पजीवी थी, लेकिन उसने भारत को परमाणु-शक्ति बना दिया। बाद में उसने कारगिल-युद्ध भी लड़ा और कश्मीर को हल के समीप पहुंचा दिया। जो मजबूत काम करे, वह सरकार मजबूत होती है, पांच-साल तक रोते-गाते घिसटनेवाली नहीं।
मोदी के नाम पर वोट नहीं
मोदी को अपने भविष्य का पता अभी से चल गया है, इसीलिए उन्होंने अपने कार्यकर्ताओं से साफ़-साफ़ कह दिया है कि अब मोदी के नाम पर वोट नहीं मिलने वाले हैं, आपको हर मतदान-केंद्र पर डटना होगा। वे तो डट जाएंगे. लेकिन वे वोटर कहां से लाएंगे? मोदी का यह कहना तो ठीक है कि गठबंधनों और महागठबंधन का लक्ष्य सिर्फ़ एक है, मोदी हटाओ। आपने भी कांग्रेस मुक्त भारत का नारा दिया था कि नहीं! इसमें भी शक नहीं कि सारे गठबंधन अवसरवादी होते हैं लेकिन क्या आप ख़ुद गठबंधन में नहीं बंधे थे? आपने भी सोनिया-मनमोहन हटाओ के अलावा क्या किया? जो फ़सल पहले आपने काटी, वही अब वे काटेंगे।
अपनी राय बतायें