उत्तर प्रदेश की सभी 80 सीटों पर अकेले चुनाव लड़ने के कांग्रेस आलाकमान के फ़ैसले से प्रदेश इकाई में ख़ासी बेचैनी है। प्रदेश कांग्रेस के तमाम छोटे-बड़े नेता और लोकसभा चुनाव लड़ने की इच्छा रखने वाले लोग इस फ़ैसले से हैरान और परेशान हैं। इन नेताओं का मानना है कि सपा-बसपा गठबंधन के बाद कांग्रेस का अकेले लोकसभा चुनाव लड़ने का फ़ैसला आत्मघाती क़दम है। नेताओं का मानना है कि अकेले चुनाव लड़कर कांग्रेस अमेठी और रायबरेली के बाहर शायद ही कोई और सीट जीत पाए। ऐसे में तमाम दिग्गज नेता लोकसभा चुनाव लड़ने से कतरा रहे हैं। लेकिन, उनका यह भी कहना है कि अगर आलाकमान ज़ोर देगा तो उन्हें चुनाव लड़ना ही पड़ेगा, चाहे नतीजा जो हो।
चुनाव अकेले लड़ने के फ़ैसले से यूपी कांग्रेस में बेचैनी
- चुनाव 2019
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- 18 Jan, 2019

उत्तर प्रदेश में अकेले चुनाव लड़ने के कांग्रेस आलाकमान के फ़ैसले से प्रदेश इकाई में ख़ासी बेचैनी है। छोटे-बड़े नेता और चुनाव लड़ने की चाहत रखने वाले लोग परेशान हैं।
यूपी के नेताओं से नहीं ली थी सलाह!
उत्तर प्रदेश के नेताओं में इस बात को लेकर भी काफ़ी रोष है कि पार्टी आलाकमान ने इतना बड़ा राजनीतिक फ़ैसला प्रदेश के नेताओं से सलाह-मशविरे के बग़ैर ही कर लिया। हालाँकि शनिवार को सपा-बसपा की साझा प्रेस कॉन्फ़्रेंस के फ़ौरन बाद उत्तर प्रदेश के प्रभारी कांग्रेस महासचिव ग़ुलाम नबी आज़ाद ने प्रदेश के सभी नेताओं के साथ अहम बैठक की थी। बताया जाता है कि इसी बैठक के बीच राहुल गाँधी ने उन्हें अगले दिन लखनऊ जाकर सभी 80 सीटों पर चुनाव लड़ने का एलान करने को कहा। ऐसा ही हुआ भी। सूत्रों के मुताबिक़ उत्तर प्रदेश कांग्रेस के तमाम नेता चाहते थे कि उत्तर प्रदेश में बीजेपी को पूरी तरह ख़त्म करने के लिए सपा-बसपा, कांग्रेस और रालोद का गठबंधन ठीक उसी तर्ज़ पर हो, जैसे 2015 में बिहार विधानसभा चुनाव में बीजेपी के सभी विरोधी दलों ने गठबंधन बनाकर बीजेपी का रास्ता रोक दिया था। - प्रदेश कांग्रेस के कई बड़े नेताओं का मानना था कि उत्तर प्रदेश में इन चारों के बीच गठबंधन हो जाए तो बीजेपी दहाई का अंक भी पार नहीं कर पाएगी। अब उनका आकलन है कि सपा-बसपा गठबंधन के बाद बीजेपी की सीटें ज़रूर आधी रह जाएँगी, लेकिन इससे कांग्रेस को कोई फ़ायदा नहीं है। कांग्रेस अकेले लड़कर दो-चार सीटों पर ही सिमट जाएगी। इससे बेहतर था कि गठबंधन में कम सीटें लेकर सभी सीटें जीतने की कोशिश करते।
कांग्रेस आलाकमान की अलग राय
वहीं कांग्रेस आलाकमान का मानना है कि अपने दम पर अकेले चुनाव लड़कर भी वह 10 से 15 सीटें जीत सकती है। कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व को लगता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ख़िलाफ़ राहुल गाँधी के आक्रामक रुख़ अपनाने के बाद देश भर में बीजेपी-विरोधी वोटों का झुकाव कांग्रेस की तरफ़ हुआ है और ख़ासकर मुसलिम समुदाय में यह संदेश गया है कि मोदी से सिर्फ़ राहुल गाँधी लड़ सकते हैं। इसीलिए कांग्रेस का केंद्रीय नेतृत्व मानता है कि लोकसभा चुनाव में मुसलिम समुदाय के वोटों का बड़ा हिस्सा क्षेत्रीय दलों के बजाय कांग्रेस को मिलेगा। इसी वजह से कांग्रेस ने राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भी बीएसपी और समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन नहीं किया था। कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व को लगता है कि उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव में मुसलिम वोटों का बड़ा हिस्सा कांग्रेस के परंपरागत सवर्ण वोट साथ मिलकर उसे अच्छी स्थिति में ला सकता है। इसी आधार पर राहुल गाँधी ने दुबई की प्रेस कॉन्फ़्रेंस में कहा था कि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस अकेले लड़ेगी और नतीजे चौंकाने वाले होंगे।