पूर्वी उत्तर प्रदेश में वाराणसी सीट से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जीत निश्चित मानी जा रही है, लेकिन वाराणसी के आसपास के क्षेत्रों में माहौल ऐसा नहीं है। वहाँ बीजेपी के उम्मीदवारों को हर मोड़ पर चुनौती मिल रही है। ज़मीन पर देखने से साफ़ पता लग जाता है कि दलित और पिछड़ी जातियों में एकजुटता है। यादव, जाटव और मुसलमान तो गठबंधन के साथ हैं ही, भदोही, जौनपुर और सुल्तानपुर में ग़ैर-यादव ओबीसी और ग़ैर-जाटव दलितों से उनके गाँव में जाकर बात करने से समझ में आ गया कि वे लोग भी गठबंधन के साथ हैं। दिल्ली में यह बात सभी कहते रहते हैं कि पासी, कुर्मी, नाई, कुम्हार, कहार, धोबी आदि जातियाँ यादव और जाटव एकाधिकार से नाराज़ हैं और वे गठबंधन का विरोध कर रही हैं लिहाज़ा बीजेपी के साथ हैं। बीजेपी के नेता/प्रवक्ता भी यही कहते हैं लेकिन ज़मीन पर जाँच करने से पता चला कि ऐसा नहीं है।
पूर्वी यूपी में विपक्षी एकता से पिछड़ी जातियाँ बीजेपी के ख़िलाफ़
- उत्तर प्रदेश
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- 10 May, 2019

वाराणसी के एक बहुत ही महँगे होटल में बहुत सारे पत्रकार ठहरे हुए थे। एक पत्रकार ने प्रतिपादित करना शुरू किया कि पासी जाति के दलित बीजेपी के साथ हैं। एक अन्य पत्रकार उनको समझाने की कोशिश कर रहा था कि ज़मीन पर ऐसा नहीं है। नाश्ता परोस रहा एक बैरा बीच में ही बोल पड़ा कि, ‘साहब मैं ख़ुद पासी हूँ और मेरे गाँव के सभी लोग गठबंधन के साथ हैं।’