उत्तर प्रदेश में पश्चिम से होते हुए पूरब तक पहुँचते ही बीजेपी, संघ और समर्थकों का नया शगल है - ग़ैर यादव पिछड़ों व ग़ैर जाटव दलितों की ज़बरदस्त गोलबंदी और इसके बूते भारी सफलता। यह एक एसा नैरेटिव है जो राजनीति शास्त्रियों से लेकर अपने कार्यकर्ताओं और पत्रकारों पर बख़ूबी काम करता है। इसके तर्क में 2014 लोकसभा से लेकर 2017 के यूपी विधानसभा चुनावों का हवाला भी दिया जाता है। नैरेटिव न केवल समझ में आता है बल्कि ज़मीन पर कई जगहों पर दिखने भी लगता है। मध्य उत्तर प्रदेश में चौथे चरण के चुनाव में कई जगहों पर यह ग़ैर यादव पिछड़ा और ग़ैर जाटव दलित का कार्ड चलता भी दिखा और शायद बीजेपी के लिए उत्तर प्रदेश में अब तक हुए पाँच चरणों के चुनाव में सबसे अच्छा चौथा चरण ही गया है। हालाँकि इस पूरे नैरेटिव पर बारीक़ी से नज़र डालने पर कई झोल भी नज़र आते हैं।
बीजेपी के अति पिछड़े वोट बनाम माया की सोशल इंजीनियरिंग
- चुनाव 2019
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- 9 May, 2019

यूपी में पूरब के इलाक़े में बीजेपी और संघ का नया नारा है कि उन्हें ग़ैर यादव पिछड़ों व ग़ैर जाटव दलितों का वोट मिल रहा है लेकिन गठबंधन ने इसकी काट निकाल रखी है।