प्रसिद्ध मराठी कवि यशवंत मनोहर ने इसलिए साहित्य सम्मान लेने से इनकार कर दिया क्योंकि कार्यक्रम में 'सरस्वती पूजा' की गई और माल्यार्पण किया गया। उन्होंने यह कहते हुए सम्मान स्वीकार करने से इनकार कर दिया कि 'ज्ञान की देवी का चित्र शोषण का प्रतीक' है और यह भी कि वह साहित्य के कार्यक्रम में धार्मिक कार्यक्रम के पक्षधर नहीं हैं।
यशवंत मनोहर को विदर्भ साहित्य संघ द्वारा लाइफ़टाइम एचीवमेंट अवार्ड के लिए चुना गया है। 'फ्री प्रेस जर्नल' की रिपोर्ट के अनुसार, विदर्भ साहित्य संघ को लिखे अपने पत्र में मनोहर ने लिखा है कि देवी का चित्र 'शोषण का प्रतीक था जो शिक्षा और ज्ञान से महिलाओं और शूद्रों को रोकता था। मैं साहित्यिक कार्यक्रमों में धर्म का पक्षधर नहीं हूँ।'
रिपोर्ट के अनुसार, कवि ने कहा है, ‘एक पुरस्कार के लिए मैं अपने आजीवन विचारों, अपने लेखन और अपने मूल्यों को दरकिनार नहीं कर सकता, इसलिए मुझे इसे अस्वीकार करना पड़ा।'
उन्होंने लिखा है, 'मेरी समझ यह थी कि विदर्भ साहित्य संघ एक लेखक और मेरे विचारों के रूप में मेरी भूमिका जानता होगा। मुझे बताया गया था कि देवी सरस्वती की एक छवि होगी। मैं अपने मूल्यों की उपेक्षा करके पुरस्कार स्वीकार नहीं कर सकता था, इसलिए मैंने विनम्रता से इसे अस्वीकार कर दिया।'
रिपोर्ट के अनुसार उन्होंने यह भी कहा, 'अगर विदर्भ साहित्य संघ के किसी व्यक्ति ने पिछले कुछ दिनों में मुझसे संपर्क किया होता तो हमें कोई रास्ता मिल जाता, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।' उन्होंने कहा कि उन्हें महिलाओं की शिक्षा के क्षेत्र में और महिलाओं की मुक्ति के लिए सावित्रीबाई फुले और कई अन्य लोगों का योगदान पता है। उन्होंने पूछा कि 'आप मुझे इस मामले में सरस्वती के योगदान के बारे में बताएँ। यदि आप मुझे तर्क से संतुष्ट कर देते हैं तो मैं अपनी भूमिका के बारे में सोचूँगा।'
उन्होंने कहा कि वह सभी लेखकों, कवियों, कलाकारों, राजनेताओं और महाराष्ट्र सरकार से अनुरोध करेंगे कि वे यह सोचें कि ऐसी साहित्यिक या सार्वजनिक कार्यक्रम के दौरान क्या देवी सरस्वती की जगह सावित्रीबाई फुले की तस्वीर और संविधान की प्रति रखना संभव होगा।'
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