इसाक बैबेल रूसी यहूदी लेखक थे। स्टालिन के शासन काल में सत्ता की कोप दृष्टि उनपर पड़ी। गिरफ़्तारी और निर्वासन के दौरान मृत्यु (हत्या?) के पहले उनकी प्रताड़ना के कई ब्योरे हैं। सोवियत संघ की कम्युनिस्ट पार्टी से जुड़े लेखक संघ की अनुमति के बिना किसी लेखक का प्रकाशित होना मुमकिन न था। उसके सामने एक बार बैबेल की पेशी हुई। उनकी विचारधारा की पड़ताल करने के लिए जो पूछताछ हुई उसमें उनसे पूछा गया कि तोल्स्तोय के बारे में उनका क्या खयाल है। बैबल इस प्रश्न का आशय समझने की कोशिश कर रहे थे। क्या तोल्स्तोय के बारे में उनके विचार लेखक संघ की आधिकारिक समझ के मेल में हैं? अगर नहीं तो उसका क्या नतीजा होगा? बैबेल ने उत्तर देने के पहले यह सब कुछ सोचा। फिर उत्तर दिया: 'तोल्स्तोय संसार को लिख रहे थे।'
प्रेमचंद 140 : 29वीं कड़ी : प्रेमचंद के कथा साहित्य में उनके ध्यान के केंद्र में स्त्री
- साहित्य
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- 12 Sep, 2020

प्रेमचंद के कथा संसार में न्याय और अन्याय का प्रश्न जीवन के हर प्रसंग में उठता है। सही क्या है और क्या गलत है? इसके फैसले में प्राय: औरत, स्त्री हमेशा अधिक मानवीय स्टैंड लेती नज़र आती है। वह अगर अपने मूल्यों को बदलती है तो फिर अपने रास्ते को लेकर किसी संशय में नहीं रहती। नैतिक उलझन फिर उसमें नहीं।