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अध्यक्ष बनने के बाद विजयेंद्र ने पिता के पैर छुए।

कर्नाटक भाजपा को 'येदियुरप्पा पावर', इसके कई मायने, संतोष भी किनारे

भाजपा कर्नाटक के कद्दावर लिंगायत नेता और पूर्व सीएम बीएस येदियुरप्पा के चरण छूने को तैयार हो गई है। भाजपा ने 78 साल के येदियुरप्पा को किनारे करने की कोशिश की और पिछला विधानसभा चुनाव पीएम मोदी के नाम पर लड़ा था। पार्टी कर्नाटक में बुरी तरह हार गई। लेकिन परिवारवाद का विरोध करने वाली पार्टी ने शुक्रवार को उनके 47 वर्षीय बेटे बीवाई विजयेंद्र को अपना प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त कर दिया। विजयेंद्र भाजपा विधायक हैं। पार्टी ने इस बार उन्हें टिकट भी दिया था। यानी कर्नाटक भाजपा अब फिर से येदियुरप्पा की छाया में है।

यह बदलाव भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव बीएल संतोष को दरकिनार किए जाने का भी संकेत है। मौजूदा प्रदेश अध्यक्ष नवीन कुमार कतील को उनके वफादार सहयोगी के रूप में देखा जाता था। कर्नाटक में पार्टी पर नियंत्रण हासिल करने के संतोष के प्रयासों के लिए कतील महत्वपूर्ण थे। लेकिन पार्टी की चुनावी हार ने संतोष की महत्वाकांक्षाओं पर बड़ा ब्रेक लगा दिया।


मौजूदा अध्यक्ष नलिन कुमार कतील का तीन साल का कार्यकाल अगस्त 2022 में समाप्त हो गया था और पार्टी ने उन्हें और विस्तार दिया था।कतील से पार्टी नाराज नहीं थी। वो पार्टी लाइन के साथ ही चल रहे थे और तमाम विवादास्पद बयानों की वजह से चर्चा में भी रहते थे। लेकिन उनके बयान पार्टी को वोट नहीं दिला पाए। मई में भारी हार के बाद 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले लिंगायतों में अपना आधार मजबूत करने के लिए भाजपा को येदियुरप्पा परिवार के पास लौटना पड़ा। ने के बाद विस्तार पर था।
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भाजपा का अब पूरा ध्यान 2024 के आम चुनाव पर है। उसने हाल ही में जेडीएस के साथ गठबंधन दूसरे प्रमुख समुदाय वोक्कालिगा के वोटों के मद्देनजर किया है। वोक्कालिगा समुदाय पर राज्य के कद्दावर नेता और पूर्व प्रधानमंत्री एच डी देवेगौड़ा और उनके बेटे एच डी कुमारस्वामी की अच्छी पकड़ है। विजयेंद्र की नियुक्ति ने लिंगायतों में भाजपा को मजबूत बना दिया है। इस तरह कर्नाटक के दो प्रमुख समुदायों को साधने की कोशिश की गई है। 
मई 2023 के विधानसभा चुनाव से भाजपा ने काफी कुछ सीखा है। भाजपा ने येदियुरप्पा और लिंगायत समुदाय के अन्य नेताओं को दरकिनार कर दिया था। भाजपा 121 सीटों से 66 सीटों पर सिमट गई। इसकी वजह लिंगायत और वोक्कालिगा माने गए। येदियुरप्पा लिंगायतों के सबसे बड़े नेता हैं, जिनकी राज्य की आबादी में 17% हिस्सेदारी है।
कर्नाटक में इस बदलाव का एक मतलब यह भी है कि कैडर आधारित भाजपा अब राज्य के नेताओं पर आश्रित रहने की योजना पर लौटेगी।भाजपा ने 2021 में सीएम पद से येदियुरप्पा को एक तरह से अपमानित करके और उनकी उम्र का हवाला देकर हटा दिया था। भाजपा की ओर से तब यह भी प्रचारित किया गया था कि येदियुरप्पा जैसे लोग पार्टी नेतृत्व पर अपनी शर्तें नहीं थोप सकते और पार्टी वंशवादी राजनीति के खिलाफ अपने रुख का हवाला बार-बार दे रही थी। इसी आधार पर भाजपा ने 2018 में विजयेंद्र को टिकट देने से भी इनकार कर दिया था और उन्हें 2021-2023 के बीच मंत्री पद से भी वंचित कर दिया था। लेकिन पिछले विधानसभा चुनाव में उसने टिकट दिया और अब प्रदेश भाजपा अध्यक्ष भी बना दिया।
येदियुरप्पा को दरकिनार किए जाने से पार्टी को राज्य में नुकसान हुआ था, इसलिए भाजपा ने आंशिक रूप से इसे स्वीकार कर लिया है। सबसे पहले, लिंगायत नेता को 2022 में भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में शामिल किया गया और फिर विजयेंद्र को टिकट दिया गया। येदियुरप्पा ने पार्टी के हारने के बाद चुनावी राजनीति छोड़ने की घोषणा के की थी।
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विजयेंद्र की नियुक्ति से पहले, येदियुरप्पा ने भाजपा को अपने नियंत्रण में रखने के लिए अपने सभी राजनीतिक दांवपेंच का इस्तेमाल किया। उन्होंने पर्याप्त संकेत दिए कि आंतरिक मतभेदों के कारण मई के चुनावों में भाजपा को कई सीटों का नुकसान हुआ था। हाल ही में, उनके करीबी सहयोगी सीएलपी नेता ने विधानसभा के शीतकालीन सत्र से दूर रह कर बता दिया कि कर्नाटक में येदियुरप्पा के बिना गाड़ी नहीं चलने वाली है।

परिवारवाद को प्रणाम

भाजपा कांग्रेस और अन्य दलों की परिवारवादी राजनीति पर हमला करती रही है। लेकिन उसने कभी अपने गिरेबान में नहीं झांका। पीएम मोदी के भाषण का प्रिय विषय परिवारवादी राजनीति पर हमला होता है। लेकिन यहां बताना जरूरी है कि येदियुरप्पा परिवार की छाया में पार्टी कैसे लौटी है, वो सब सामने है। येदियुरप्पा के बड़े बेटे बी वाई राघवेंद्र शिवमोग्गा से भाजपा सांसद हैं। वो एक दशक से अधिक समय से राजनीति में सक्रिय हैं। भाजपा 2024 के लोकसभा चुनाव में उन्हें टिकट देने को मजबूर है। भाजपा ने उनके छोटे बेटे को अब प्रदेश अध्यक्ष बना दिया है। विधायक को मई में बन ही चुके थे। येदियुरप्पा ने पार्टी को कर्नाटक में जिन्दा करने के लिए फिर से कोशिशें शुरू कर दी हैं। लोकसभा टिकटों के फैसले भी उनकी मर्जी से होंगे और भाजपा राज्य की सत्ता में येदियुरप्पा के जरिए ही लौटने का ख्वाब फिर से देख रही है।
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क़मर वहीद नक़वी
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